‘‘कोई घर अपनी शानदार सजावट खराब होने से नहीं, बल्कि अपने गिनेचुने सदस्यों के दूर चले जाने से खाली होता है,’’ मां उस को फोन करती रहीं और अहसास दिलाती रहीं, ‘‘वह घर से निकला है तो घर खालीखाली सा हो गया है.’’ ‘मां, अब मैं 20 साल का हूं, आप ने कहा कि 10 दिन की छुट्टी है तो दुनिया को सम झो. अब वही तो कर रहा हूं. कोई भी जीवन यों ही तो खास नहीं होता, उस को संवारना पड़ता है.’ ‘‘ठीक है बेबी, तुम अपने दिल की करो, मगर मां को मत भूल जाना.’’ ‘मां, मैं पिछले 20 साल से सिर्फ आप की ही बात मानता आया हूं. आप जो कहती हो, वही करता हूं न मां.’ ‘‘मैं ने कब कहा कि हमेशा अच्छी बातें करो, पर हां मन ही मन यह मनोकामना जरूर की,’’ मां ने ढेर सारा प्यार उडे़लते हुए कहा. वह अब मां को खूब भावुक करता रहा और तब तक जब तक कि मां की किटी पार्टी का समय नहीं हो गया.

जब मां ने खुद ही गुडबाय कहा, तब जा कर उस ने चैन पाया. बस कुछ घंटों में वह भवाली पहुंचने वाला था. अभी बस रामपुर पहुंची थी, किला दूर से दिखाई दे रहा था. कितनी चहलपहल और रौनक थी रामपुर में. उस ने बाहर झांक कर देखा. बहुत ही मजेदार नजारे थे. एक किशोरी नीबू पानी बेच रही थी. उस ने भी खरीदा और गटागट पी गया. बस फिर चल पड़ी थी. इस बार वह अपनी मरजी से बस में ही आया था. मां ने 50,000 रुपए उस के खाते में डाले थे कि टैक्सी कर लेना. पर वह टैक्सी से नहीं गया. दरअसल, वह सफर के पलपल का भरपूर मजा लेना चाहता था. नीबू पानी पी कर उस को मीठी सी झपकी आ गई और कहा कि रामपुर के बाद पंतनगर, टांडा का घनघोर जंगल, रुद्रपुर, बिलासपुर, काठगोदाम कब पार किया, उस को खबर ही नहीं लगी. ‘भवालीभवाली’ का शोर सुन कर उस की आंख खुली. वह पहली बार किसी पहाड़ी सफर पर गया था. जब उस ने सफेद बर्फ से संवरे ऊंचेऊंचे पहाड़ देखे, तो अपलक निहारता ही रह गया.

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