मैं एसडीएम बन कर जोधपुर गई तो मेरे मन में यह चाहत बलवती हो गई थी कि मुझे मिन्नी से जरूर मिलना है. मिन्नी मेरे मामू की लड़की है. जब वह 8वीं में पढ़ रही थी, ब्याह दी गई थी. वह बच्ची समाज की गंदी सोच की भेंट चढ़ गई थी. लड़कियों को न पढ़ाने की सोच, जल्दी ब्याह देने की सोच, पढ़ने से लड़कियां बिगड़ जाती हैं, ऐसी घटिया सोच. शहरों के कुछ परिवारों को छोड़ कर राजस्थान के अधिकांश गांवों में लड़कियों के लिए यही सोच चल रही है. पीढ़ीदरपीढ़ी यही हो रहा है. मैं यह भी कह सकती हूं कि देश के सभी गांवों में यही सोच बलवती है. मामूमामी ने वही किया जो उन के संस्कारों में था, जो उन के साथ हुआ था. मेरे लिए भी उन्होंने यही सोचा था लेकिन मैं ने विरोध किया. घर से बेघर हुई. रिश्तेनाते छूटे पर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया. अपने पांवों पर खड़ी हुई. आज मैं राजस्थान कैडर की आईएएस अफसर हूं.
मिन्नी जोधपुर जिले के रजनीमहल गांव में कहीं अपना जीवन व्यतीत कर रही है. मैं ने अपने एक विश्वासपात्र को उस का पता दे कर उस का हालचाल पूछने के लिए उस के गांव भेजा था. उस ने आ कर जो बताया, वह दुखदायी था, ‘मैडमजी, वह बहुत गरीब है. पति कहीं मजदूरी करता है. कोई रैगुलर आमदनी नहीं है. स्कूल जाने लायक 2 बच्चे हैं लेकिन गरीबी के कारण स्कूल नहीं जाते और भी रोज की चीजों के अभाव हैं. बाकी मैडमजी, आप वहां जा रही हैं, खुद देख लेना. मैं ज्यादा नहीं बता सकता.’