“तुम सुनना नहीं चाहते और मैं यहां के लोगों की बातें सुनसुन कर थक गई हूं,  मुझे अब नीचे उतरते भी डर लगता है कि कब कोई मुझ से कुछ कह न दे.’’ मैं किचन में काम करतेकरते पति सक्षम को सुनाने के उद्देश्य से जोरजोर से बोलती जा रही थी पर किचन के सामने ही डायनिंग टेबल पर बैठे सक्षम मेरी हर बात को अनसुना कर के अपना पूरा ध्यान पेपर में लगाए थे मानो आज उसे न्यूजपेपर पर रिसर्च करनी हो.

‘‘तुम्हें सुनाई दे रहा है न कि मैं क्या बोल रही हूं,’’ अपनी बात का उधर कोई असर न होते देख मैं एकदम उस के पास जा कर जोर से बोली, “सक्षम, पेपर हटाओ सामने से, सुनाई पड़ रहा है न तुम्हें कि मैं क्या कह रही हूं.’’

और कोई चारा न देख कर सक्षम ने पेपर हटाया और अनजान बनते हुए बोला, ‘‘हूं, क्या कहा, मैं सुन नहीं पाया.’’

‘‘सक्षम, नाटक मत करो, तुम ने सब सुन लिया है. मुझे, बस, अपनी बात का जवाब चाहिए,’’ मैं एकदम सामने सोफे पर बैठती हुई बोली.

‘‘तो उत्तर यह है कि मैं एक भी पैसा नहीं दूंगा जब तक कि मेरा स्कूटर नहीं मिल जाता. जिस को जो करना है, कर ले.’’

यह कह कर सक्षम अपनी तौलिया उठा कर बाथरूम में चले गए. मैं अकेली ही बैठी बड़बड़ाती रही, ‘कैसे समझाऊं इन्हें, 2 बच्चों के बाप होने के बाद भी कुछ सुनने को तैयार नहीं. जब पिता का ही यह अड़ियल रवैया है तो बच्चे आगे चल कर क्या करेंगे.’ खैर, अभी तो फिलहाल ब्रेकफास्ट की तैयारी करती हूं वरना दुकान जाने में देर हो जाएगी, यह सोचते हुए मेरे कदम किचन की ओर बढ़ गए.

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