राइटर- सुमन बाजपेई

वे दोनों एक पेड़ के नीचे खड़े थे, एकदूसरे की आंखों में झांकते हुए, एकदूसरे का हाथ थामे. मीठी बयार के झोंके उस के रेशमी बालों को छेड़ रहे थे. बारबार लटें उस के गालों पर आ कर झूल जातीं, जिन्हें वह बहुत ही प्यार से पीछे कर देता. ऐसा करते हुए जब उस के हाथ उस के गालों को छूते तो वह सिहर उठती. कुछ कहने को उस के होंठ थरथराते तो वह हौले से उन पर अपनी उंगली रख देता. गुलाबी होंठ और गुलाबी हो जाते और चेहरे पर लालिमा की अनगिनत परतें उभर आतीं.

मात्र छुअन कितनी मदहोश कर सकती है. वह धीरे से मुसकराई. पेड़ से कुछ पत्तियां गिरीं और उस के सिर पर आ कर इस तरह बैठ गईं मानो इस से बेहतर कोमल कालीन कहीं नहीं मिलेगा. उस ने फूंक मार कर उन्हें उड़ा दिया जैसे उन लहराते गेसुओं को छूने का हक सिर्फ उस का ही हो.

वह पेड़ के तन से सट कर खड़ी हो गई और अपनी पलकें मूंद लीं. उसे देख कर लग रहा था जैसे कोई अप्रतिम प्रतिमा, जिस के अंगअंग को बखूबी तराशा गया हो. उसे देख कौन पुरुष होगा जो कामदेव नहीं बन जाएगा. उसे चूमने का मन हो आया. पर रुक गया. बस उसे अपलक देखता रहा. शायद यही प्यार की इंतहा होती है... जिसे चाहते हैं उसे यों ही निहारते रहने का मन करता है. उस के हर पल में डूबे रहने का मन करता है.

‘‘क्या सोच रही हो,’’ उस ने कुछ क्षण बाद पूछा.

‘‘कुछ भी तो नहीं.’’ वह थोड़ी चौंकी पर पलकें अभी भी मुंदी हुई थीं.

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