आरती अपने बेटेबहू से नाराज हो कर अपनी बेटी अंजलि के घर आ गई. अब आरती का अगला कदम जहां अपने बेटेबहू को अपनी अहमियत बताना था वहीं किसी और की भी अक्ल ठिकाने लगाने का काम उसे करना था.
अटैची हाथ में पकड़े आरती ड्राइंगरूम में आईं तो राकेश और सारिका चौंक कर खडे़ हो गए.
‘‘मां, अटैची में क्या है?’’ राकेश ने माथे पर बल डाल कर पूछा.
‘‘फ्रिक मत कर. इस में तेरी बहू के जेवर नहीं. बस, मेरा कुछ जरूरी सामान है,’’ आरती ने उखड़े लहजे में जवाब दिया.
‘‘किस बात पर गुस्सा हो?’’
अपने बेटे के इस प्रश्न का आरती ने कोई जवाब नहीं दिया तो राकेश ने अपनी पत्नी की तरफ प्रश्नसूचक निगाहों से देखा.
‘‘नहीं, मैं ने मम्मी से कोई झगड़ा नहीं किया है,’’ सारिका ने फौरन सफाई दी, लेकिन तभी कुछ याद कर के वह बेचैन नजर आने लगी.
राकेश खामोश रह कर सारिका के आगे बोलने का इंतजार करने लगा.
‘‘बात कुछ खास नहीं थी...मम्मी फ्रिज से कल रात दूध निकाल रही थीं...मैं ने बस, यह कहा था कि सुबह कहीं मोहित के लिए दूध कम न पड़ जाए...कल चाय कई बार बनी...मुझे कतई एहसास नहीं हुआ कि उस छोटी सी बात का मम्मी इतना बुरा मान जाएंगी,’’ अपनी बात खत्म करने तक सारिका चिढ़ का शिकार बन गई.
‘‘मां, क्या सारिका से नाराज हो?’’ राकेश ने आरती को मनाने के लिए अपना लहजा कोमल कर लिया.
‘‘मैं इस वक्त कुछ भी कहनेसुनने के मूड में नहीं हूं. तू मुझे राजनगर तक का रिकशा ला दे, बस,’’ आरती की नाराजगी उन की आवाज में अब साफ झलक उठी.