चमन, दौड़ता हुआ मंजूषा के पास पहुंचा. चमन को हांफते देख मंजूषा एकदम सकते में आ गई.

‘‘अरे...अरे, क्या हुआ चमन? किसी से झगड़ा हो गया क्या? भंवर भैया कहां हैं? जल्दी बताओ. तुम दौड़ते हुए क्यों आए हो?’’ मंजूषा ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘ब...बतलाता... हूं दीदी. पहले सांस तो ले लेने दो,’’ चमन एक पल को रुका. फिर गहरी सांस लेता हुआ बोला, ‘‘मंजूषा दी, मेरी बात ध्यान से सुनो...’’ चमन फुसफुसा कर मंजूषा के कान में कुछ कहने लगा.

 पूरी बात सुन कर मंजूषा होंठों ही होंठों में बुदबुदाई, ‘‘उस की यह मजाल...?’’

‘‘आप कुछ करें दीदी वरना बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा.’’

मंजूषा ने कुछ सोचते हुए चमन से कहा, ‘‘तुम जाओ, मैं सब संभाल लूंगी.’’

‘‘हां दीदी, कुछ करो, वरना गोपाल और भंवर आपस में जरूर टकरा जाएंगे,’’ इतना कह कर चमन चला गया.

मंजूषा ने अपनी किताबें लीं और झटपट कालेज जाने के लिए घर से निकल पड़ी. मंजूषा जल्दीजल्दी कदम बढ़ाती हुई सुरसी के घर की ओर चली जा रही थी. ‘कहीं सुरसी कालेज के लिए घर से निकल न पड़ी हो,’ सोच कर मंजूषा ऊपर से नीचे तक कांप जाती थी. उस के कदम पहले से और तेज हो गए. सुरसी के घर पर पहुंचते ही उस ने घंटी बजाई.

‘‘आती हूं, आती हूं,’’ और उसी समय दरवाजा खुल गया. सामने सुरसी की मां को खड़ी देख कर मंजूषा का दिल एकदम ‘धक्क’ रह गया. फिर संयत हो कर बोली, ‘‘नमस्ते आंटी, सुरसी कालेज चली गई क्या?’’

‘‘अभी नहीं गई. जाने ही वाली है बस, नाश्ता कर रही है. आओ, अंदर आओ,’’ सुरसी की मां ने कहा. यह सुन कर मंजूषा को बड़ी राहत महसूस हुई.

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