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‘क्यों, अपनी बहन की इतनी चिंता हो रही है. अपनी सगी बहन के अलावा दूसरी हर लड़की तुम लड़कों को अपनी इच्छापूर्ति का साधन लगती है और तुम उन्हें छेड़ना शुरू कर देते हो. कितनी गंदी मानसिकता है तुम्हारी. तुम्हारे जैसे आवारा कुछ नहीं कर सकते अपनी जिंदगी में. मैं अभी थाने जा रही हूं तुम्हारी रिपोर्ट करने. तुम्हें तो मैं कहीं का नहीं छोड़ूंगी.’

आंटी के क्रोध से वे बुरी तरह घबरा गए. और जब वे कुछ शांत हुईं तो धीरे से अपना बचाव करते हुए वे बोले, ‘आंटी, मैं आप के हाथ जोड़ता हूं, आप जो चाहे सजा दे लें. आप ही बताइए 2 वर्षों से मैं उसे पढ़ा रहा हूं, कभी ऐसा नहीं हुआ. दरअसल, आज उस ने कुछ अलग, अजीब से कपड़े पहने थे, सो, मैं डिस्ट्रैक्ट हो गया था.’

‘क्या कहा? कपड़े ऐसे पहने थे? तुम्हारा दिमाग खराब है क्या? अब क्या लड़कियां अपनी मरजी के कपड़े भी नहीं पहन सकतीं, क्योंकि उन्हें देख कर लड़के अपनेआप पर काबू नहीं रख पाते. खुद को काबू नहीं कर सकते तो सड़क पर नजरें नीचे कर के चला करो या घर में बैठो. पर मेरी बेटी वही पहनेगी जो उस का दिल करेगा. क्या तुम्हारी बहन तुम से पूछ कर कपड़े पहनती है? क्या अपनी बेटी को भविष्य में तुम ऊपर से नीचे तक तन ढकने वाले कपड़े पहनाओगे?’

आंटी की तर्कयुक्त बातों के आगे उन की तो बोलती ही बंद हो गई. वे दबी आवाज में बोले, ‘नहीं आंटी, ऐसी बात नहीं है. मैं अपनी गलती मानता हूं. मैं बहक गया था. पर मेरा यकीन मानिए मैं ने ऐसावैसा कुछ नहीं किया.’

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