पूर्व कथा
अनुज पत्नी सूजन के साथ अपने पिता तरुण के पास विदेश लौटने के लिए विदा लेने आता है. बेटेबहू के जाने से दुखी तरुण अपने अतीत में खो जाते हैं.
बचपन में स्कूल छोड़ते समय अनुज अपने पापा को वहां अकेला न छोड़ने के लिए कहता है. और आज वही अनुज बरसों बाद उसे छोड़ कर हमेशा के लिए अमेरिका चला जाता है. तरुण के कानों में वही शब्द, वही संवाद गूंजने लगते हैं जो अनुज ने उन से कहे थे पर तब वह उन के दर्द को नहीं समझ पाए थे.
बड़े चाव से तरुण के मातापिता उन का विवाह आधुनिक, सुंदर, नौकरीपेशा सुमी से कराते हैं. तेजतर्रार सुमी जल्दी ही अपने रंगढंग दिखाने लगती है. पैसा और शोहरत कमाने की दौड़ में युवा तरुण सुमी की खामियों को नजरअंदाज कर अपने मातापिता के साथ जबानदराजी करने लगता है. बेटे की उद्दंडता से दुखी हो कर वह गांव जाने का निर्णय लेते हैं. तरुण उन्हें रोकने का प्रयास करता है पर सफल नहीं होता.
उन के चले जाने के बाद सुमी और तरुण को उन की अहमियत का एहसास होने लगता है. और अब आगे...
अंतिम भाग सुमी ने कई बार सोचा भी कि अपनी हठधर्मी छोड़ कर वह स्वयं क्षमायाचना कर सासससुर को वापस लाने का प्रयास करे, किंतु मानव स्वभाव की फितरत इतनी आसानी से कहां बदलती है. बड़ों की स्नेहिल छाया से अधिक उसे अपनी आजादी प्यारी थी. न चाहते हुए भी आएदिन की तकरार की परिणति आखिर उन लोगों के अलगाव मेें ही हुई. इस का सब से गहरा असर बढ़ती वय के किशोर अनुज पर पड़ा जो अपने दादादादी से बेहद हिलामिला हुआ था. उन लोगों के जाने से अनुज वक्त से पहले ही गंभीर हो चला था. मातापिता की व्यस्तता व घर का एकाकीपन अकसर ही छुट्टियों में उसे दादादादी के पास खींच ले जाता.