लेकिन उस के सासससुर बहुत अच्छे थे. उन्होंने उसे बहुत प्यार व अपनापन दिया. सास तो स्वयं ही उसे पसंद कर के लाई थीं, लिहाजा वे मानसी पर बहुत स्नेह रखती थीं. उन से मानसी का अकेलापन व उदासी छिपी नहीं थी. उन्होंने उसे हौसला दे कर अपनी पढ़ाई जारी रखने को कहा, जोकि शादी के चलते अधूरी ही छूट गई थी. मानसी ने कालेज जाना शुरू कर दिया. हालांकि राजन को उस का घर से बाहर निकलना बिलकुल पसंद नहीं था परंतु अपनी मां के सामने राजन की एक न चली. मानसी के जीवन में इस से बहुत बड़ा बदलाव आया. उस ने नर्सिंग की ट्रेनिंग पूरी की. पढ़ाई पूरी होने से उस का आत्मविश्वास भी बढ़ गया था. पर राजन के लिए मानसी आज भी अस्तित्वहीन थी.
मानसी का मन भावनात्मक प्रेम को तरसता रहता. वह अपने दिल की सारी बातें राजन से शेयर करना चाहती थी, परंतु अपने बिजनैस और उस से बचे वक्त में अपनी रंगीन जिंदगी जीते राजन को कभी मानसी की इस घुटन का एहसास तक नहीं हुआ. इस मशीनी जिंदगी को जीतेजीते मानसी 2 प्यारे बच्चों की मां बन चुकी थी.
बेटे सार्थक व बेटी नित्या के आने से उस के जीवन को एक दिशा मिल चुकी थी. पर राजन की जिंदगी अभी भी पुराने ढर्रे पर थी. मानसी के बच्चों में व्यस्त रहने से उसे और आजादी मिल गई थी. हां, मानसी की जिंदगी ने जरूर रफ्तार पकड़ ली थी, कि तभी हृदयाघात से ससुर की मौत होने से मानसी पर मानो पहाड़ टूट पड़ा. आर्थिक रूप से मानसी उन्हीं पर निर्भर थी. राजन को घरगृहस्थी में पहले ही कोई विशेष रुचि नहीं थी. पिता के जाते ही वह अपनेआप को सर्वेसर्वा समझने लगा. दिनोंदिन बदमिजाज होता रहा राजन कईकई दिनों तक घर की सुध नहीं लेता था. मानसी बच्चों की परवरिश व पढ़ाईलिखाई के लिए भी आर्थिक रूप से बहुत परेशान रहने लगी. यह देख कर उस की सास ने बच्चों व उस के भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपनी आधी जायदाद मानसी के नाम करने का निर्णय लिया.