कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

बहुत कुछ सोच कर वह चुप रही. सब फ्रैश हो गए तो संजय ने माधव को नाश्ता बनाने के लिए कहा. संजय बिलकुल सामान्य ढंग से कह रहा था, ‘‘चलो, नाश्ता कर के निकलते हैं… शिवानी की तबीयत ठीक नहीं लग रही है… यह घर जा कर डाक्टर को दिखा लेगी.’’

शिवानी ने संजय के चेहरे को भी ध्यान से देखा पर वह हमेशा की तरह हंसतामुसकराता ही लगा. शिवानी को सुस्त देख कर सब को उस की चिंता हो रही थी. मन ही मन कलपती शिवानी वापस घर आ गई. शिवानी को छोड़ने सब से पहले सब उसी के घर आए.

सुधा से लिपट कर वह रो दी तो रमेश घबरा गए. पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ तबीयत तो ठीक है?

रमन ने कहा, ‘‘अंकल, कल रात ही इस की तबीयत खराब हो गई थी.’’

‘‘अरे, क्या हुआ? फोन क्यों नहीं किया?’’

‘‘पापा, मैं जल्दी सो गई थी, सिर भारी था.’’

सुधा परेशान हो गईं, ‘‘चल, डाक्टर को दिखा लेते हैं.’’

‘‘नहीं मम्मी, अब थोड़ा ठीक हूं. बस आराम कर लूंगी.’’

सब चले गए. अजय भी शिवानी का हाल सुन कर परेशान हो गया. लता और उमा भी उस से मिलने आ गईं. शिवानी का दिल भर आया. उस की मनोदशा का तो किसी को अंदाजा ही नहीं था.

उमा कह रही थीं, ‘‘आराम ही करना, जब मन हो, आ जाना. वैसे तुम्हारे बिना हमारा मन नहीं लग रहा है. घर खालीखाली लगता है.’’

थोड़ी देर बैठ कर सब बातें करती रहीं. उन के जाने के बाद शिवानी का मन हुआ मां को सब सचसच बता दे पर उस की हिम्मत नहीं हुई, क्योंकि सुधा उस के जाने के पक्ष में ही नहीं थीं. किस मुंह से कहे, उन का डर सच साबित हुआ है.

वह फिर रोने लगी तो सुधा ने कहा, ‘‘चल बेटा, डाक्टर को दिखा लेते हैं.’’

‘‘नहीं मम्मी, अब तो ठीक हूं.’’

फिर वह स्वयं को सामान्य दिखाते हुए थोड़ी बहुत बातें करती रही. 1-2 दिन और बीत गए. सब उस से फोन पर संपर्क में थे ही.

शिवानी बेचैन थी. उस का मन हर समय घबराया, उलझा सा रहता था. वह सुधा से कहने लगी, ‘‘मम्मी, अब ससुराल चली जाती हूं. अजय नहीं हैं तो मैं भी यहां आ गई. अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘हां, ठीक है बेटा. जैसी तेरी मरजी.’’

रमेश ही उसे छोड़ने गए. उसे देखते ही सब के चेहरे खिल उठे.

उमा चहक उठीं, ‘‘अच्छा हुआ, आ गई बेटा. घर में बिलकुल रौनक नहीं थी.’’

रमेश भी हंसे, ‘‘संभालो अपनी बहू को आप लोग, अब इस का मायके में मन नहीं लगता.’’

शिवानी भी सब के साथ मुसकरा दी. रमेश चले गए.

डिनर करते हुए सब शिवानी के आने पर खुश थे. यह सब ने साफसाफ महसूस किया, पर उमा ने उसे टोक भी दिया, ‘‘बेटा, जब से आई ओ तब से मुंह उतरा हुआ है. अभी तक तबीयत ठीक नहीं लग रही है क्या?’’

‘‘नहीं मां, ठीक है.’’

विनय ने गौतम से कहा, ‘‘भैया, अजय का टूअर अब कम ही रखना, नहीं तो बहू ऐसे ही उदास रहेगी या इसे भी आगे से साथ ही भेजना.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा.’’

अगला पूरा हफ्ता शिवानी अपने साथ घटी घटना को भूलने की नाकाम कोशिश करती रही. अपने को काम में उलझाए रखती पर उस रात को भूलना बहुत मुश्किल था और सब से बड़ी बात थी, इस अपराधबोध के साथ जीना कि उस ने यह बात सब से छिपा ली. वह किसी से यह बात शेयर करना चाह रही थी पर किस से करे, यह समझ नहीं आ रहा था. अपनी मम्मी को बताना चाहती थी पर उस ने उन की बात नहीं सुनी थी, इसलिए हिम्मत नहीं हो रही थी.

अजय आ गया तो सब के चेहरे खिल उठे. लता ने कहा, ‘‘देखो, मेरी बहू कितनी उदास रही. अब जल्दी कहीं मत जाना.’’

अजय ने शिवानी को देखा. उस की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे, उस ने तो इन आंसुओं को इतने दिन की दूरी ही समझा. रात को एकांत में अजय के सीने पर सिर रख कर शिवानी बुरी तरह फफक पड़ी.

अजय परेशान हो गया, ‘‘मेरे पीछे तुम्हें कोई परेशानी हुई है क्या?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा तो कुछ नहीं है, एक बारगी तो शिवानी का मन हुआ इतने प्यार करने वाले पति से कुछ न छिपाए पर अंजाम सोच कर सिहर गई. अजय ने उस के रोने को फिर अपना जाना ही समझा.’’

कुछ दिन और बीते. शिवानी मन ही मन घुटती रही. वह चाह कर भी किसी से हंसबोल नहीं पा रही थी. एक अपराधबोध हर समय उस के मन पर हावी रहता था. उस ने सब से सच छिपा लिया था पर वह मन ही मन बहुत बेचैन रहने लगी थी.

इस बार जब तय समय पर उसे पीरियड्स नहीं हुए, तो उस का माथा ठनका. उस ने कुछ दिन और इंतजार किया. फिर एक दिन अजय के औफिस जाने के बाद उसे उमा से कहा, ‘‘मां, आज थोड़ी देर मम्मी से मिलने चली जाऊं?’’

‘‘हां, जरूर जाओ.’’

शिवानी ने रास्ते में ही प्रैगनैंसी चैक करने वाली किट खरीदी और मम्मी के यहां पहुंच गई. रमेश कालेज में ही थे. शिवानी से फोन पर बात होने के बाद सुधा अपने कालेज से जल्दी आ गईं. शिवानी का उतरा चेहरा देख परेशान हुईं, क्या बात है बेटा, तबीयत फिर खराब है क्या?

‘‘नहीं मम्मी, ठीक हूं.’’

दोनों थोड़ी देर बातें करती रहीं, फिर सुधा शिवानी के लिए कुछ चायनाश्ता बनाने किचन में चली गईं तो शिवानी ने बाथरूम में खुद ही टैस्ट किया. वह गर्भवती थी. उस के होश उड़ गए. माथे पर पसीने की बूंदे चमक उठीं. उस ने बारबार अपने पिछले पीरियड, अपने साथ हुए रेप और अजय के साथ बने संबंधों का हिसाब लगाया और वह इस परिणाम पर पहुंची कि यह बच्चा अजय का नहीं उसी का है, जिस ने उसे नशे में बेसुध कर उस के साथ जबरदस्ती संबंध बनाया था. वह रो पड़ी.

सुधा मन ही मन चिंतित थीं कि उन की बेटी को हुआ क्या है, उस का हंसनामुसकराना, चहकना सब कहां चला गया है.

हाथमुंह धो कर शिवानी बाहर आई तो सुधा को उस की सूजी आंखें देख कर झटका लगा, ‘‘क्या हुआ शिवानी, तुम कुछ बताती क्यों नहीं?’’

‘‘मैं चाय लाती हूं, तुम थोड़ा लेट लो.’’

शिवानी चुपचाप लेट कर मन ही मन इस फैसले पर पहुंची कि वह अबौर्शन करवा लेगी. वह इस अनहोनी का अंश अपने अंदर नहीं पनपने देगी. सुधा चाय लाई तो वह चुपचाप चाय पीने लगी.

सुधा ने कहा, ‘‘शिवानी, तुम्हें बहुत अच्छी ससुराल मिली है न?’’

‘‘हां, मां.’’

‘‘पर तुम कुछ परेशान सी दिखती हो आजकल?’’

‘‘कुछ नहीं है मां, यह सिरदर्द ही आज परेशान कर रहा है,’’ मां कुछ और न सोचे, यह सोच कर वह झूठ ही हंसनेबोलने लगी.

वापस जाते हुए रास्ते में शिवानी की मनोदशा बहुत अजीब थी. किसी को भी बिना बताए वह अबौर्शन का पक्का इरादा कर चुकी थी. घर पहुंच कर सब से सामान्य बातें करने में भी उसे बहुत मेहनत करनी पड़ रही थी. मन ही मन घुटती जा रही थी.

अगले दिन सुबह से ही उमा को तेज बुखार हो गया. उन की तबीयत काफी बिगड़ने लगी तो उन्हें हौस्पिटल में दाखिल करवाना पड़ा. सब उन की सेवा में जुट गए. शिवानी सब कुछ भूल कर उन की सेवा में लग गई. 3 दिन बाद उन की हालत कुछ संभली. अगले दिन ही उन्हें डिस्चार्ज किया जाना था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...