Writer- सिद्धार्थ जायसवार
वंदना महतो को अचानक रविवार की सुबह अपने घर आया देख मानसी मन ही मन चौंक पड़ी. ‘‘मेरी एक सहेली का घर पास में है. उस के बीमार बेटे का हालचाल पूछने आई थी तो सोचा आप से भी मिलती चलूं,’’ वंदना सकुचाई सी नजर आ रही थी.
‘‘ये आप ने अच्छा किया,’’ मानसी ने अपने मन में बेचैनी को अपनी आवाज में झलकने नहीं दिया.
‘‘तुम्हारे राजीव सर को तो पता ही नहीं है कि मैं यहां आई हूं,’’ वंदना के होंठों पर छोटी सी मुसकान उभरी.
‘‘तो अब फोन कर के बता दीजिए.’’
‘‘नहीं, अगर संभव हो तो मैं चाहूंगी कि तुम भी हमारी इस मुलाकात की चर्चा उन से ना करो.’’
‘‘तुम ऐसा क्यों चाहती है?’’ मानसी उस के चेहरे को बड़े ध्यान से पढ़ रही थी.
‘‘असल में मैं आज तुम्हारे साथ अपने पति के बारे में ही बाते करने आई हूं, मानसी. हम जो चर्चा करेंगे, वो उन के कानों तक ना पहुंचे तो अच्छा है,’’ वंदना कुछ शर्मिंदा सी दिखने लगी.
‘‘मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है कि राजीव सर के बारे में आप ऐसी कौन सी गोपनीय बात की चर्चा मुझ से करना चाहती हैं?’’
‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब मैं कुछ देर के बाद देती हूं, मानसी. फिलहाल तो मैं राजीव में आ रहे कुछ बदलावों को ले कर बहुत चिंतित हूं.’’
‘‘मैं कुछ समझी नहीं, मैडम.’’
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‘‘वो बहुत चिड़चिड़े और गुस्सैल हो गए हैं, मानसी. खासकर मेरे ऊपर तो बिना बात के चिल्लाते हैं. अपने दोनों बेटो के साथ पहले की तरह ना खेलते हैं, ना हंसतेबोलते हैं. उन के बदले स्वभाव के कारण घर में बहुत टैंशन रहने लगती है,’’ वंदना का अपना दुखदर्द बयान करते हुए गला भर आया.