देर शाम अनुष्का का फोन आया. कामधाम से खाली होती तो अपने पिता विश्वनाथ को फोन कर अपना दुखसुख अवश्य साझा करती. शादी के 3 साल हो गए, यह क्रम आज भी बना हुआ था. पिता को बेटियेां से ज्यादा लगाव होता है, जबकि मां को बेटों से. इस नाते अनुष्का निसंकोच अपनी बात कह कर जी हलका कर लेती.
‘‘पापा, आज फिर ये जोरजोर से चिल्लाने लगे,’’ अनुष्का ने अपने पति कृष्णा का जिक्र किया.
‘‘क्यों?’’ विश्वनाथ निर्विकार भाव से बोले.
‘‘इसी का जवाब मैं खोज रही हूं.’’ कह कर वह भावुक हो गई.
विश्वनाथ का जी पसीज गया. विश्वनाथ उन पिताओं जैसे नहीं थे जो बेटी का विवाह कर के गंगा नहा लेते थे. वे उन पिताओं सरीखे थे जिन्हें अपनी बेटी का दुख भारी लगता. तनिक सोच कर बोले, “उन की बातों को ज्यादा तवज्जुह मत दिया करो. अपने काम से काम रखो.’’
जब भी अनुष्का का फोन आता वे उसे धैर्य और बरदाश्त करने की सलाह देते. विश्वनाथ की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने अपनी तरफ से कभी बेटियों को निराश नहीं किया. उन की बात पूरी लगन से सुनते. वे चाहते तो कह सकते थे कि यह तुम दोनों का आपसी मामला है. बारबार फोन कर के मुझे परेशान मत किया करो. ज्यादातर पिताओं की यही भूमिका होती है. बेटियों की शादी कर दिया तो अपने बेटाबहू में रम गए.
विश्वनाथ की 3 बेटियां थीं और एक बेटा. उन्होंने बेटाबेटियों में कोई फर्क नहीं किया. अमूमन लोग बेटियों को बोझ समझते हैं. इस के विपरीत विश्वनाथ को लगता, उन की बेटियां ही उन की ताकत हैं. उन की पत्नी कौशल्या की सोच उन से इतर थी. उन्हें अपना बेटा ही हीरा लगता. वे बेटियों को जबतब कोसती रहतीं. विश्वनाथ को बुरा लगता. इसी बात पर तूतूमैंमैं शुरू हो जाती.
विश्वनाथ का जीवन अभावपूर्ण था. बड़े संघर्षो से गुजर कर उन्होंने अपनी औलादों को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाया कि वे अपने पैरों पर खडे हो गए. बड़ी बेटी की शादी से वे खुश नहीं थे क्योंकि दामाद का कामधाम कोई खास नहीं था. वे अच्छी तरह जानते थे कि उन की कामाऊ बेटी की बदौलत ही गृहस्थी की गाड़ी चलेगी. उन की मजबूरी थी. कहां से अच्छे वर के लिए दहेज ले आते? बेटी की शक्लसूरत कोई खास नहीं थी. हां, पढ़ने में तेज जरूर थी. पहली से निबटे तो दूसरी अनुष्का आ गई. सब बेटियों में 2 से 3 साल का फर्क था. अनुष्का देखनेसुनने के साथ पढ़ने में भी होशियार थी. उस ने साफसाफ कह दिया कि वह किसी भी सूरत में प्राइवेट नौकरी वाले लडके से शादी नहीं करेगी. सब चिंता में पड गए. कहां से लड़का ढूंढें.
ऐसे में उन के बड़े दामाद ने कृष्णा का जिक्र किया. वह सरकारी नौकरी में था. देखने में ठीकठाक था. रही पढ़ाई, तो वह अनुष्का की तुलना में औसत दर्जे का था तो भी क्या? सरकारी नौकरी थी. जिस आर्थिक अनिश्चितता के दौर से विश्वनाथ का परिवार गुजरा, उस से तो मुक्ति मिलेगी. यही सब सोच कर विश्वनाथ इस रिश्ते के लिए अपने दामाद की मनुहार करने लगे. साथसाथ, उन्होंने अपनी तीसरी बेटी के लिए भी सरकारी नौकरी वाले वर से करने का मन बना लिया.
लड़के को अनुष्का पसंद आ गई. दहेज पर मामला रुका, तो विश्वनाथ ने साफसाफ कह दिया कि उन की औकात ज्यादाकुछ देने की नहीं है. सांवले रंग के कृष्णा को जब गोरीचिट्टी अनुष्का मिली तो वह न न कर सका. इस के पहले उस ने काफी लड़कियां देखीं. किसी की पढ़ाई पसंद आती तो रूपरंग मनमाफिक न मिलता. रूपरंग होता तो पढ़ाई साधारण रहती. यहां सब था. नहीं था तो दहेज की रकम. कृष्णा को लगा अब अगर और छानबीन में लगा रहेगा तो उम्र निकल जाएगी, ढंग की लड़की न मिलेगी. लिहाजा, उसे भी गरज थी. शादी संपन्न हो गई.
अनुष्का फूले नहीं समा रही थी. उस ने जो चाहा वह मिल गया. बिना आर्थिक किचकिच के जिंदगी आसानी से कटेगी. शादी होते ही वह जयपुर घूमने निकल गई. बड़ी बहन लतिका को तकलीफ हुई. वह सोचने लगी, आज उस का भी पति ऐसी ही नौकरी में होता तो वह भी वैवाहिक जीवन की इस प्रथम पायदान पर चढ़ कर जिदगी का लुफ्त उठाती.
दोनों के विवाह का शुरुआती दौर बिना किसी शिकवाशिकायत के कटा. अनुष्का इस रिश्ते से निहाल थी. वहीं कृष्णा को लगा, उस ने जैसा चाहा उसे मिल गया. इस बीच, वह एक बेटे की मां बनी.
कृष्णा में एक खामी थी. उसे रुपए से बहुत मोह था. घरगृहस्थी के लिए खर्च करने में कोई कोताही नहीं बरतता तो भी बिना मेहनत के धन ही मिल जाए तो हर्ज ही क्या है. इसी लालच में उस ने अपना काफी रुपया शेयर में लगा दिया. अनुष्का ने एकाध बार टोका. मगर कृष्णा ने नजरअंदाज कर दिया.
एक दिन तो हद हो गई, कहने लगा, ‘‘मेरा रुपया है, जहां भी खर्च करूं.’’
कृष्णा को ऐसे तेवर में देख कर अनुष्का सहम गई. एकाएक उस के व्यवहार में आए परिवर्तन ने उसे असहज कर दिया. उस का मन खिन्न हो गया. मारे खुन्नस कृष्णा से बोली नहीं. कृष्णा की आदत थी, जल्द ही सामान्य हो जाता. वहीं अनुष्का के लिए आसान न था. चूंकि यह पहला अवसर था, इसलिए अनुष्का ने भी अपनी तरफ से भूलना मुनासिब समझा. मगर कब तक. जल्द ही उसे लगा कि कृष्णा अपने मन के हैं, उन्हें समझाना आसान नहीं. इस बीच, शेयर के भाव बुरी तरह से नीचे आ गए और उस के लाखों रुपए डूब गए. सो, अनुष्का को कहने का मौका मिल गया.