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दौड़तेदौड़ते मेरी सांस भर आई थी और पुलिस लाइन के सामने जा कर मैं रुका था. अब डर तो जाता रहा था, पर देर तक सोचता रहा था कि वह कौन था, जो मुझे इशारे से बुला रहा था.

अगले दिन अब्दुल को मेरी बातों पर विश्वास नहीं हुआ था. स्कूल से लौटते समय वह मुझे खींच कर मसजिद में फिर से ले गया था. हमेशा की तरह मसजिद के किवाड़ बंद थे और सांकल बाहर से चढ़ी हुई थी. उस ने सांकल उतार कर दरवाजा खोला. मसजिद के अंदर भी ऐसा कोई निशान नजर नहीं आया कि कल यहां कोई आया होगा? उस दिन से मैं अब्दुल की निडरता का कायल हो गया था.
×××

वर्ष गुजरते गए और हम दोनों अब महाविद्यालय के विद्यार्थी हो गए थे. दोस्तों ने मिल कर अब्दुल को कालेज यूनियन के प्रेसिडेंट पद के लिए चुनाव में उतारा था. चुनाव प्रचार में हम लोगों ने दिनरात एक कर दिया था. जीत की पूरी उम्मीद थी कि अंतिम क्षणों में प्रतिद्वंद्वी गुट ने अब्दुल का अपहरण कर उस के बारे में दुष्प्रचार की अफवाह फैलाने की योजना बना ली थी. उन की इस योजना की भनक लगते ही हम लोग अंडरग्राउंड हो गए थे. एक पूरी रात हम लोगों ने भुतहा मसजिद में गुजारी थी, जिस के सामने से कभी गुजरते हुए हम भयभीत हो जाया करते थे. दूसरे गुट वाले रातभर अब्दुल को जगहजगह खोजते रहे थे, उन्हें कल्पना भी नहीं थी कि कोई भुतहा मसजिद में छिपा हो सकता है. फिर अंतिम समय प्रतिद्वंद्वी गुट ने हिंदूमुसलिम कार्ड खेल कर जीत हासिल कर ली थी.

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