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कनीजा बी एक सांवलीसलोनी एवं सुशील लड़की थीं. उन की नौकरी लगने के बाद जब उन के घर में खुशहाली आने लगी थी तो लोगों का ध्यान उन की ओर जाने लगा था. देखते ही देखते शादी के पैगाम आने लगे थे. मुसीबत यह थी कि इतने पैगाम आने के बावजूद, रिश्ता कहीं तय नहीं हो रहा था. ज्यादातर लड़कों के अभिभावकों को कनीजा बी की नौकरी पर आपत्ति थी.

वे यह भूल जाते थे कि कनीजा बी के घर की खुशहाली का राज उन की नौकरी में ही तो छिपा है. उन की एक खास शर्त यह होती कि शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ेगी, लेकिन कनीजा बी किसी भी कीमत पर लगीलगाई अपनी सरकारी नौकरी छोड़ना नहीं चाहती थीं.

कनीजा बी पिता की असमय मृत्यु से बहुत बड़ा सबक सीख चुकी थीं. अर्थोपार्जन की समस्या ने उन की मां को कम परेशान नहीं किया था. रूखेसूखे में ही बचपन से जवानी तक के दिन बीते थे. अत: वह नौकरी छोड़ कर किसी किस्म का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती थीं. कनीजा बी का खयाल था कि अगर शादी के बाद उन के पति को कुछ हो गया तो उन की नौकरी एक बहुत बड़े सहारे के रूप में काम आ सकती थी.

वैसे भी पतिपत्नी दोनों के द्वारा अर्थोपार्जन से घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सकती थी, जिंदगी मजे में गुजर सकती थी. देखते ही देखते 4-5 साल का अरसा गुजर गया था और कनीजा बी की शादी की बात कहीं पक्की नहीं हो सकी थी. उन की उम्र भी दिनोदिन बढ़ती जा रही थी. अत: शादी की बात को ले कर मांबेटी परेशान रहने लगी थीं.

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