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जिया जगाधरी शहर की शाह यूटैंसिल्स फैक्ट्री के मालिक अजीत सिंह पांढनु की लाड़ली व बिगड़ैल इकलौती बेटी थी.

इस फैक्ट्री में स्टील की बालटियां बनाई जाती हैं. पूरे उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली और हरियाणा ही नहीं, देश के दूसरे हिस्सों में भी में शाह फैक्ट्री से ही बालटियां सप्लाई होती थीं. क्यों न हों, लाइफटाइम की गारंटी जो देते हैं स्टील खराब न होने की.

एक दिन में 100 टन रौ मैटीरियल स्टील शीट को बालटियों में प्रेस मशीनों से बालटियों की शेप में बनाया जाता, लगभग 300 वर्कर काम करते थे.

जिया अपने हर जन्मदिन पर फैक्ट्री जाती और सभी वर्कर्स को कभी कंबल, कभी कपड़े, कभी अन्य वस्तु, यानी जिस को भी जिस चीज़ की ज़रूरत होती वह उसे देती, सब को अपने हाथों से खाना परोसती और सब का आशीर्वाद लेती. उस के पास हर वर्कर की जानकारी रहती थी. उसे मालूम रहता कि कोई किस मुसीबत में है या किस का कुछ अच्छा हुआ है.

इतने अच्छे और शालीन स्वभाव के बावजूद एक कमी थी जिया में. वह यह कि ज़िद्दी बहुत थी, ज़िद्द तो मानो खून में शामिल था. जो कह दिया तो कह दिया. उस की हर ज़िद्द पूरी की जाती. 12वीं क्लास पास करते ही मम्मा ने कहा कि चंडीगढ़ के कालेज में एडमिशन दिलवा देते हैं, नज़दीक भी रहेगा, कभी जिया घर पे आ जाया करेगी और कभी हम जिया से मिलने जाया करेंगे.

 

लेकिन नहीं, जिया मैडम को तो मुंबई जाने का शौक चर्राया. वह बोली, "मुंबई के कालेज में एडमिशन लेना है." साथ में ऐक्टिंग का शौक भी वह वहां पूरा कर लेगी.

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