और फिर जब अभिरूप आशाभरी नजरों से उन का उत्तर सुनने के लिए आए तो उन्होंने कहा था, ‘आप ठीक कह रहे हैं. जब सभी अपने सुखों में जी रहे हैं तो हम भी क्यों न जिएं,’ और उन की आंखों ने किसी झरने का रूप ले लिया था.
आखिरकार, बहुत सोचविचार कर पिछले हफ्ते ही दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली थी. विनय और अवनि ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी इस बात पर. विनय बहुत ही गंभीर मुद्रा में बैठा रह गया था.
अनुज ने बस इतना कहा था, ‘मां, जैसा आप ठीक समझें, आप का अकेलापन महसूस होता है मुझे. मुझे किसी बात से परेशानी नहीं है,’ उस ने अभिरूप से फोन पर ठीक तरह से बात भी की थी. अभिरूप और राधिका को विनय और अवनि के साथ रहने के बजाय राधिका के ही घर में रहना ठीक लगा था. वे राधिका के ही घर में शिफ्ट हो गए थे और आज दोनों हिमाचल घूमने जा रहे थे.
मुंबई से उन की चंडीगढ़ की फ्लाइट थी. चंडीगढ़ से उन्हें आगे जाना था. स्नैक्स सर्व होने की घोषणा हुई तो राधिका की तंद्रा भंग हुई. अभिरूप ने भी चौंक कर आंखें खोलीं, बोले, ‘‘अरे, बैठते ही शायद मेरी आंख लग गई थी, तुम भी सो गई थीं?’’
‘‘नहीं, मेरी आंख कभी नहीं लगती सफर में.’’
‘‘फिर क्या सोचती रहीं?’’
‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही.’’
‘‘मैं जानता हूं तुम क्या सोच रही थीं.’’
‘‘क्या, बताओ?’’
‘‘हम दोनों हनीमून पर जा रहे हैं, यही सोच रही थीं न?’’
राधिका बुरी तरह शरमाती हुई संकोच से भर उठीं, ‘‘नहींनहीं, ऐसा तो कुछ नहीं.’’
अभिरूप हंस दिए, ‘‘तुम तो मजाक पर घबरा गईं. वैसे, तुम्हें विनय, अवनि, रिमझिम कैसे लगे?’’
‘‘अच्छे हैं सब, पर पता नहीं मुझे कब अपनाएंगे, यही सोचती हूं. उन का भी तो दोष नहीं है. अचानक मुझे कैसे अपनी मां मान सकते हैं, समय तो लगेगा.’’
‘‘हां, बच्चे हमारे दोस्तों की तरह यही सोच कर तो खुश नहीं हो सकते न कि हम दोनों को एकदूसरे की जरूरत है. उन का अपना ढंग है सोचने का. मैं जानता हूं अपने बच्चों को. विनय को कुछ समय लगेगा फिर सब ठीक हो जाएगा.’’
राधिका कुछ नहीं बोलीं, इस बात से कुछ उदास तो मन था ही.
चंडीगढ़ पहुंच कर दोनों सनबीम होटल पहुंचे. अभिरूप ने 8 दिन का प्रोग्राम योजनाबद्ध किया था. हर जगह बुकिंग थी. 1 बज रहा था. दोनों फ्रैश हुए. लंच किया. तब तक टैक्सी आ गई. पहले रौकगार्डन गए, फिर सुखना लेक और फिर रोजगार्डन. राधिका को अपने अंदर एक नई औरत जन्म लेती दिख रही थी. रौकगार्डन में भूलभुलैया जैसे रास्तों पर अभिरूप उसे परेशान करने के लिए छिप गए, राधिका सहमी सी इधरउधर देख रही थीं. अभिरूप ने राधिका की कितनी ही फोटो लीं, फिर अचानक राधिका के पास जा कर उन्हें डराया तो राधिका का चेहरा देख अभिरूप हंस पड़े. राधिका उन के पास से आती मनमोहक खुशबू में खो सी गई थीं.
सुखना लेक में दोनों ने बोटिंग की, आसपास के लोगों को कैमरा दे कर अभिरूप ने राधिका के कंधे पर हाथ रखते हुए, कभी उन का हाथ पकड़ कर, कई फोटो खिंचवाईं, फोटोग्राफी के शौकीन अभिरूप का उत्साह देख कर राधिका को अच्छा लग रहा
था. रोजगार्डन में जा कर तो राधिका जैसे एक तरुण युवती बन गईं. लगभग 850 किस्म के गुलाबों के करीब 35 हजार पौधे थे. हर तरफ गुलाब ही गुलाब, बेहद खूबसूरत और साफसुथरा गार्डन था. एक जगह फौआरे के पास दोनों थोड़ी देर बैठ गए. वहां पर बहुत ही सुंदर लाल और पीले फूलों वाले व्यवस्थित पेड़ थे. पूरे गार्डन का चक्कर लगातेलगाते 8 बज रहे थे, दोनों डिनर कर के वापस होटल पहुंच गए.
एक हफ्ते से दोनों एकसाथ ही रह रहे थे लेकिन संकोचवश दोनों ने शारीरिक रूप से एक दूरी बना रखी थी. आज दोनों कपड़े बदल कर जब लेटे, राधिका ने कहा, ‘‘आज तो हम बहुत घूमे, अब थकान लग रही है.’’
‘‘हां, कुछ थकान तो है लेकिन तुम्हारे साथ ने मुझे दिनभर एक अलग स्फूर्ति से भर दिया था.’’
राधिका कुछ नहीं बोलीं, चुपचाप बैड के एक कोने में लेटी रहीं. अभिरूप ने आज पहली बार उन की कमर पर हाथ रखा. राधिका सिहर उठीं. पता नहीं कितने सालों से तनमन में दबा कुछ पिघलने लगा. वे सोचने लगीं, क्या उन्हें उस के शरीर से भी उम्मीदें होंगी. अभिरूप धीरेधीरे उन्हें सपनों की दुनिया में जैसे ले जा रहे थे, अब उन्हें महसूस हुआ शरीर की भी कुछ इच्छाएं, आकांक्षाएं थीं, उन्हें भी किसी के स्निग्धस्पर्श की कामना थी. राधिका के मन में बहुत कुछ चल रहा था. सोच रही थीं, सुना तो है कि पुरुष का पौरुष हमेशा सलामत रहता है पर स्त्री को ले कर पता नहीं क्यों हमेशा नकारात्मक भ्रांतियां ही पाली जाती हैं. क्या कभी किसी ने कहा है कि उम्रदराज औरत भी अपने शरीर का आनंद ले सकती है. फिर उस के मन के सारे संदेह, शंकाएं, तर्कवितर्क सब पता नहीं कहां विलुप्त होने लगे.
कुछ समय बाद दोनों की मनोदशा एक सी थी. दोनों को किसी के प्यार, किसी की चाहत ने जैसे एक नया जीवन दे दिया था. अब जैसे दोनों नया जीवन पूरी तरह जीने के लिए तैयार थे.
सुबह उठे तो दोनों कुछ देर तो एकदूसरे से नजरें चुराते रहे, फिर एकदूसरे को देख कर मुसकरा पड़े. आंखों में अब प्यार ही प्यार था. दोनों एकदूसरे से चिपक गए.
आज दोनों टैक्सी से नारकंडा के लिए निकल गए. थकान के बावजूद दोनों दिनभर कुछ अलग नए खयालों में खोए रहे. शाम को होटल पहुंचे, फ्रैश हुए, डिनर किया. फिर वही समय आ गया जिस की दिनभर उन्हें दिल ही दिल में प्रतीक्षा थी. एकदूसरे के सामीप्य से दोनों का रोमरोम पुलकित हो उठा था.