जीजासाली का रिश्ता बड़ा ही पवित्र होता है, लेकिन इन में लड़ाईझगड़ा और नोकझोंक भी चलती रहती है. ठीक उसी तरह महिमा और विवेक का रिश्ता था. अकसर दोनों में नोकझोंक और शरारतें होती रहती थीं. लेकिन उन के बीच एकदूसरे के लिए प्रेम और सम्मान भी बहुत था. दोनों अकसर एकदूसरे की टांगखिंचाई करते, जिस से घर में मनोरंजन बना रहता था.
महिमा के बचपने पर कभीकभार मुक्ता उसे डांट देती, तो आगे बढ़ कर विवेक उस का बचाव करता और कहता कि खबरदार, कोई उस की प्यारी साली को डांट नहीं सकता.
कभी अपने पापा को याद कर महिमा उदास हो जाती, तो विवेक उसे बातों में बहलाता. जब कोई फैमिली मीटिंग या पार्टी वगैरह में महिमा बोर होने लगती, तो विवेक उसे बोर नहीं होने देता था. कितना भी व्यस्त क्यों न हो अपने काम में, महिमा के मैसेज का रिप्लाई वह जरूर करता था. महिमा को कालेज से आने में जरा भी देर हो जाती, वह फोन पर फोन करने लगता. उस के ऐसे व्यवहार से मुक्ता खीज भी उठती कि क्या वह बच्ची है, जो गुम हो जाएगी? और यह बिहार नहीं गुजरात है. इतना डरने की जरूरत नहीं है. लेकिन, फिर भी विवेक को महिमा की चिंता लगी रहती थी, जब तक कि वह घर वापस नहीं आ जाती. महिमा को वह अपनी जिम्मेदारी समझता था.
महिमा भी अपने बहनबहनोई का बहुत खयाल रखती थी. उन की गृहस्थी में खुशियां बनी रहे, यही उस की कामना होती थी. कभी किसी बात पर विवेक और मुक्ता में कहासुनी हो जाती और दोनों एकदूसरे से बात करना बंद कर देते, तब महिमा ही दोनों के बीच सुलह कराती थी, वरना तो इन के बीच कईकई दिनों तक बातचीत बंद रहती थी. जानती थी महिमा कि गलती उस की बहन की ही होती है ज्यादातर, फिर भी वह झुकने को तैयार नहीं होती. जिद्दी है एक नंबर की शुरू से ही.
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