“मुक्ता, उठो. 7 बज गए हैं और अभी तक तुम सोई हुई हो?” अपनी पत्नी मुक्ता को उठाते हुए विवेक बोला.“ऊं... सोने दो न विवेक, आज संडे है,” नींद में ही मुक्ता बोली.
“पता है, मुझे आज संडे है, पर तुम भूल गई हो कि आज महिमा आने वाली है. उसे लाने नहीं चलना है?” विवेक बोला.लेकिन मुक्ता कहने लगी कि वह चला जाए, उसे बहुत नींद आ रही है.
“अरे, ये क्या बात हुई? बुरा लग जाएगा उसे. चलो उठो, तब तक मैं चाय बना लाता हूं,” कह कर विवेक किचन की तरफ चला गया.
‘ये महिमा की बच्ची भी न... नींद पर पानी फेर दिया मेरे. एक दिन तो छुट्टी मिलती है आराम से सोने के लिए, वो भी इस मैडम ने बिगाड़ दिया,’ मन ही मन बुदबुदाते हुए मुक्ता बाथरूम में घुस गई और जब तक वह फ्रेश हो कर निकली, विवेक चाय के साथ बिसकुट ले कर हाजिर हो गया.
महिमा की ट्रेन सुबह 9 बज कर 45 मिनट पर थी. लेकिन गाड़ी का कोई ठिकाना नहीं होता कि कभीकभी वह वक्त से पहले भी आ जाती है. यह सोच कर विवेक घर से एक घंटा पहले ही निकल गया, क्योंकि करीब 20-25 मिनट तो उसे स्टेशन पहुंचने में ही लग जाएगा.
“विवेक..." लंबी सी जम्हाई लेते हुए मुक्ता बोली, “क्यों इतनी जल्दी निकल आए हम घर से? गाड़ी आने में तो अभी डेढ़ घंटा बाकी है. इतनी देर कहां बैठेंगे हम बताओ? तुम भी न बहुत हड़बड़ाते हो,“ झुंझलाते हुए मुक्ता बोली, क्योंकि उसे सच में बहुत नींद आ रही थी. छुट्टी के दिन वह 12-1 बजे से पहले कभी नहीं उठती है. लेकिन आज उसे सुबह 7 बजे ही उठना पड़ गया तो भन्ना उठी.