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‘प्रिय राधा,

‘स्नेह, मैं सुषमा, तेरी सहेली, तेरी पड़ोसिन, तेरी कलीग. शायद तू मुझे भूल गई होगी पर इन

10 बरसों में कोई दिन ऐसा न था जब तेरा हंसताखिलखिलाता चेहरा जेहन में न उभरा हो. बहुत याद आती है इंडिया की, इंडिया के लोगों की. मुझे तुझ से एक फेवर चाहिए. मैं यूएस से इंडिया आना चाहती हूं. क्या मैं कुछ दिन तेरे पास रह सकती हूं? मेरा आना न आना, तेरी हां या न पर है. ईमेल का जवाब फौरन देना. मैं अगले महीने की 20 तारीख तक चलने का प्रोग्राम बना रही हूं. मेरी बात हो सकता है तुझे अजीब लगे, उस के लिए माफी चाहती हूं. सबकुछ आ कर बताऊंगी.

‘तेरी सुषमा.’

ईमेल सुषमा का था. 10 बरस पहले यूएस में अपने बेटों के पास जा बसी थी. आज इतने लंबे समय के बाद वापस आ रही है. पर क्यों? लोग तो वहां जा कर वापस आना ही नहीं चाहते. फिर यह

तो बेटों के बुलाने पर ही गई थी. सोचतेसोचते बरामदे में पड़ी कुरसी पर आ बैठी. अतीत सामने आ कर खड़ा हो गया.

सामने वाली दीवार के पीछे सुषमा का परिवार रहता था. लंबीचौड़ी कोठी थी, 10-15 लोग रहते थे. ठीक, राधा के परिवार की तरह. दोनों की छतें इस तरह जुड़ी थीं कि गरमी में रात को जब परिवार के बच्चेबूढ़े सोने आते तो पता ही नहीं लगता कि घरों का आदि कहां, अंत कहां है. वैसे भी दोनों परिवार में बहुत अपनापन था. बच्चे भी बहुत हिलमिल कर रहते थे. उसे आज भी याद है, जब भी दोनों घरों में कोई खुशी आती, सब मिलजुल कर बांटते. चाहे किसी बच्चे का जन्मदिन हो या किसी को कंपीटिशन में जबरदस्त कामयाबी मिली हो.

राधा और सुषमा एक ही स्कूल में नौकरी करती थीं. दोनों ने अपने और बच्चों से जुड़े किसी भी फैसले को कभी अकेला नहीं लिया. स्कूल से रिटायर होने के बाद भी वे एकदूसरे की सलाह लेने में कोताही नहीं करती थीं.

राधा के 2 बेटे हैं तो सुषमा 3 बच्चों की मां है. कोईर् वक्त था जब पढ़ाई में दोनों के बच्चों में होड़ सी लगी होती. जिन्हें देख कर दोनों परिवारों के दूसरे बच्चे भी इस होड़ में शामिल हो जाते. दोनों सहेलियों ने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के सपने देखे थे. वक्त के साथ सपनों में रंग भरने लगे. वैसे भी टीचर्स के बच्चों की सोच में सिर्फ और सिर्फ कैरियर होता है.

राधा के दोनों बेटों ने इंजीनियरिंग की और बाहर का रुख किया. सुषमा के तीनों बेटे भी मैडिकल की पढ़ाई कर के अमेरिका चले गए. कुछ वर्षों बाद तीनों भाइयों ने मिल कर एक हौस्पिटल का शुभारंभ किया. बेटों की तरक्की से दोनों माएं खुश थीं. यही नहीं, दोनों के परिवारों के बाकी बच्चे भी अच्छी नौकरी ले कर दूसरे शहरों में जा बसे थे. इतने बड़े घर में केवल राधा व राधा के पति कमलेश्वर थे. उधर, सुषमा व उस के पति रमेश रह गए थे. दोनों को रिटायर होने में समय था. सब के दिमाग में यही प्रश्न था, रिटायर हो कर वे कहां, क्या करेंगे?

बच्चों ने नए देश व माहौल में अपने को ढालने में देर न लगाई. दोनों दंपती जानते थे कि अब बच्चे वहीं बसेंगे, कोईर् यहां बसने नहीं आएगा.

राधा के बेटों ने मम्मीपापा को अमेरिका आ कर बसने का प्रस्ताव रखा. उन्होंने पहले तो इस प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिया पर जब बेटों ने बारबार कहा तो कमलेश्वर ने पत्नी से कहा, ‘बच्चों की भावनाओं को मैं समझता हूं, पर यह समझ लो, हम कहीं नहीं जाएंगे. जहां हम रह रहे हैं वही ठिकाना ही हमारा सम्मान है. साधु अपनी कुटिया में रहता है, तो चार लोग उस से मिलने आते हैं. कुटिया छोड़ कर घरघर भीख मांगने जाएगा तो लोग दुत्कार भी सकते हैं.

‘सो, हम अपनी इस कुटिया में ही भले. जिस को मिलना है, यहां आ कर मिल जाए. और फिर हम बूढ़े पेड़ की तरह हैं, एक जगह से उखड़ कर दूसरी जगह की मिट्टी में नहीं जम सकते. चिडि़या अपने बच्चों को उड़ना सिखाती है, सदा उन के साथ नहीं उड़ती. यह देख कर कि उन्होंने उड़ना सीख लिया है, वह उन्हें आजाद छोड़ देती है. हम ने भी बच्चों को अच्छी शिक्षा व संस्कारों के मजबूत पंख दिए हैं. उन्हें अब हमारी जरूरत नहीं है. हम दोनों ही अपने तरीके से जीने के लिए आजाद हैं.’

बच्चे इस बात को नहीं मानते. उन का कहना था, ‘आप दोनों का शरीर इस उम्र में आने वाली तकलीफोें को कैसे झेलेगा? कोई तो साथ होना चाहिए. यहां हमारे पास होगे तो किसी अनहोनी का डर तो न होगा.’

बच्चों की मजबूरी और कमलेश्वर का स्वाभिमानी तर्क, दोनों अपनी जगह ठीक थे. पतिपत्नी के हठ के आगे बच्चों को घुटने टेकने पड़े.

सुषमा व उस के पति रमेश की सोच इन से अलग है. उन के बच्चों ने दोनों को जब अमेरिका आने का निमंत्रण दिया, तो वे मना न कर सके. ‘राधा, मेरे तीनों बेटों ने एक हौस्पिटल खोला है. बड़े हौस्पिटल के मालिक होने के साथ एक होटल भी खरीदा है. होटल का उद्घाटन हमारे हाथ से कराना चाहते हैं. हम दोनों के न जाने पर बच्चे नाराज हो जाएंगे. सो, हम ने भी सोचा है कि हम सबकुछ बेच कर वहीं बच्चों के पास क्यों न रहें.’

जाने से पहले सुषमा, सहेली से मिलने आईर् थी. बहुत खुश थी. अमेरिका जाने की खुशी से चमकती आंखों में न जाने कितने ही सपने थे.

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