औरत के संघर्ष को औरत ही बेहतर ढंग से समझ सकती है और आज अम्मा जी ने भी इस बात को अच्छी तरह समझ लिया था.
"मम्मी, मैं कालेज जा रही हूं. आज थोड़ा लेट जाऊंगी, सैमिनार है."
"ठीक है, अनु. जरा संभल कर जाना."
"क्या मम्मी, आप भी न आज भी मुझे छोटी सी बच्ची ही समझती हो, यहां मत जाया कर, वहां मत जाया कर."
"हांहां, जानती हूं कि तू बहुत बड़ी हो गई है पर मेरी लिए तो तू आज भी वही गोलमटोल सी मेरी प्यारी सी अनु है."
अनु के चेहरे पर मासूम सी मुसकराहट तैरने लगी
"अच्छाअच्छा, अब जल्दी भी कर, ज्यादा बातें न बना, कालेज पहुंचने में देर हो जाएगी."
मांबेटी में मधुर नोंकझोंक चल ही रही थी कि तब तक अम्मा जी हाथ में तुलसी की माला लिए प्रकट हुईं.
"कहां चली सवारी इतनी सुबहसुबह?"
"दादी, मेरी एक्स्ट्रा क्लासेस हैं, बस, कालेज के लिए निकल रही."
"ठीक है, ठीक है, पढ़ाईलिखाई तो होती रहेगी पर कभीकभी अपनी दादी के पास भी बैठ जाया कर, तेरी दादी का भी क्या भरोसा, कब प्रकृति के यहां से बुलावा आ जाए."
अम्मा जी ने दार्शनिकों की तरह कहा. यह रोज का ही किस्सा था. जब तक दादी दोचार ऐसी बातें न बोल दें तब तक उन को चैन नहीं मिलता था. अनु ने दादी के गले में हाथ डाल कर कर कहा,
"मेरी प्यारी दादी, अभी आप इतनी जल्दी मुझे छोड़ कर नहीं जा रही. अभी तो आप को मेरी शादी में तड़काभड़कता डांस भी करना है."
"चल हट, तू भी न, जब देखो तब…"
अनु की बात सुन कर अम्मा लजा गईं. तभी अनु ने जया की तरफ रुख किया,