लेखिका– डा. के. रानी
लंच के बाद वे फिर अपनेअपने कमरे में आ कर इतमीनान से टीवी देखते और आराम करते. कुछ ही महीने में उन दोनों को एकदूसरे से दूरी बना कर जिंदगी जीने की आदत सी पड़ गई. रेखा ज्यादा सुकून में थी. अब रमन उस की हर बात में दखलअंदाजी नहीं करते. उन्हें अब इस बात से भी ज्यादा मतलब नहीं था कि वह अपने कमरे में बैठ कर फोन पर किस से बातें करती है? रमन को भी घर पर अपने लिए एक अलग जगह मिल गई थी जिस में वह अखबार पढ़ने, टीवी देखने और मोबाइल फोन के साथ बहुत खुश थे. पूरे सात महीने बाद आशु घर आया. उस ने देखा कि पापा ने उस का सामान ऊपर की मंजिल में दीदी के कमरे में शिफ्ट कर दिया था और खुद उस के कमरे में रह रहे थे.
यह देख कर आशु बोला, “पापा, आप ने बहुत अच्छा किया. कम से कम इसी बहाने इस घर के 2 कमरे तो आबाद रहते हैं.” “हां बेटा, मुझे भी लगा कि कमरे खाली पड़े हैं, तो क्यों न उस का सदुपयोग कर खुल कर रहा जाए?”
आशु ऊपर कमरे में जा कर सो गया. सुबह उठ कर उस ने महसूस किया कि घर में एकदम शांति थी. पहले जैसी बात होती तो सुबह उठते ही मम्मीपापा की जोरजोर की आवाजें सुनाई देतीं. आज पहली बार सुबह के समय घर पर एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था. बचपन से ले कर हमेशा इस घर में सुबह उठते ही मम्मीपापा की आवाज सुनाई देने लगती थी. सो कर उठते ही वे दोनों बहस पर उलझे रहते. उन्होंने कभी किसी की परवाह नहीं की कि कोई उन के बारे में क्या सोचता है? लेकिन इस बार माहौल बिलकुल बदला हुआ था. मेज पर नाश्ता करते हुए भी मम्मीपापा एकदूसरे से उलझने के बजाय उसी से बात कर रहे थे. अब उन के लिए एकदूसरे की उपस्थिति कोई मायने नहीं रख रही थी.
आशु को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अचानक इतना बड़ा परिवर्तन कैसे आ गया? नाश्ता करने के बाद पापा कमरे में जा कर टीवी देखने लगे. मम्मी भी थोड़ी देर उस से बात करने के बाद घर के कामों में व्यस्त हो गईं. जब उन्हें फुरसत मिली, तो वे अपनी पसंद का धारावाहिक देखने लगीं.
दोपहर में खाने पर वे तीनों साथ बैठे थे. आशु बोला, “मम्मी, अब घर कितना सूना लगता है.””हां बेटे, घर पर रौनक तो बच्चों से रहती है. तुम दोनों अब बाहर चले गए हो, तो घर भी सूना हो गया.” आशु के जी में आया कि कह दे, ‘मम्मी रौनक तो आप दोनों की बहस से रहती थी. अब आप लोग शांत हो गए हैं, तो घर की रौनक ही चली गई.’
असली बात मन में दबा कर वह बोला, “मैं और दीदी तो वैसे भी पढ़ाई में लगे रहते थे. हमें इतना सब बोलने की फुरसत कहां थी?” इस बार घर आ कर आशु ने महसूस किया कि पहले आपसी मतभेदों के बावजूद मम्मीपापा के मध्य हमेशा एक आत्मीयता का रिश्ता बना रहता था. नोंकझोंक के बावजूद आत्मीयता अपनी जगह पर बनी रहती थी. इस सन्नाटे में वह भी कहीं गुम हो गई थी. अब दोनों को एकदूसरे से ज्यादा।मतलब न था. केवल खाना खाने और किसी से मिलने जाने के लिए दोनों साथ उठतेबैठते, वरना वे दोनों अपनी अलग जिंदगी जी रहे थे और उसी में खुश भी लग रहे थे.
आशु ने होश संभालने पर कई बार महसूस किया था कि मम्मी के मन में हमेशा इस तरह की ही जिंदगी जीने की तमन्ना थी. आज वह उसी जिंदगी का मजा ले रही थीं, पर उन्हें इस की कीमत भी चुकानी पड़ रही थी. इन सब में वह पापा से काफी दूर होती जा रही थीं. दोनों अपने में खोए हुए थे. एकदूसरे की भावनाओं से अब उन्हें ज्यादा मतलब न था. पहले वह साथ बैठ कर बहस करते हुए आत्मीयता की बातें भी कर लिया करते थे. भले ही उन दोनों की बातों मे छत्तीस का आंकड़ा रहता, लेकिन वे एकदूसरे का भी पूरा खयाल रखते थे. मम्मी को जरा सा कुछ हो जाता, तो पापा बड़े परेशान हो जाते. पापा की तबीयत थोड़ा भी खराब होती, तो मम्मी बड़बड़ करते हुए भी उन्हें ढेरों नसीहतें दे डालती और उन की पूरी देखभाल करती थी.
अब उन के रिश्ते की ताजगी और गरमाहट कहीं खो गई थी और उस में बहुत ठंडापन आ गया था. जीवन के इस पड़ाव में जब उन्होंने एकदूसरे के सुखदुख का सब से ज्यादा खयाल रखना था, तब वे अपनीअपनी दुनिया में ज्यादा व्यस्त हो कर एकदूसरे के प्रति उदासीन हो गए थे.
आशु को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था. उस ने यह बात रोमा को भी बताई. दोनों ने इस बारे में विचार किया. बहुत सोचसमझ कर वह बोला, “मम्मी, मैं चाहता हूं कि आप दोनों कुछ दिन के लिए हमारे साथ रहें.”
“लेकिन बेटा, यहां घर छोड़ कर जाना भी तो ठीक नहीं है.””घर कौन से कोई उठा कर ले जाएगा. थोड़ा सामान है उस की देखभाल के लिए बगल में शर्मा आंटी से कह देंगे. वे कभीकभी घर खोल कर देख लेंगी. बाकी यहां ऐसा है भी क्या ?”
“अपना घर तो अपना होता है बेटे.””आप की बात सही है मम्मी. मेरा घर भी तो आप का ही घर है. बच्चे भी आप को मिस कर रहे हैं. मैं चाहता हूं कि कुछ समय के लिए मेरे साथ चलें. मैं आप को ले जाने आया हूं.”
“यह बात तुम पहले बता देते, तो अच्छा रहता बेटे.””मैं आप को सरप्राइज देना चाहता था.”रेखा और रमन बेटे की बात को न टाल सके. उस ने एक हफ्ते की छुट्टी और बढ़ा ली और उस के बाद घर को ताला डाल कर आशु मम्मीपापा को ले कर बैंगलुरू आ गया. वहां उस के पास 3 बैडरूम वाला फ्लैट था. एक कमरे में वह और उस की पत्नी रीमा, तो दूसरे में बच्चे ऊधम मचाते. आशु ने तीसरे बैडरूम में मम्मीपापा की व्यवस्था कर दी थी.
महीनों से खुले घर में स्वछंद रहने की आदत के बाद रेखा और रमन को यह कमरा बहुत छोटा लगा. पर यहां मजबूरी थी. वे बेटे से कुछ कह भी नहीं सकते थे. वे अपने को इस कमरे में किसी तरह एडजस्ट कर रहे थे. आशु ने पूछा, “मम्मी कोई तकलीफ तो नहीं है?”
” नहीं बेटा. अपनों के बीच में कैसी तकलीफ? बच्चों के साथ बहुत अच्छा लग रहा है.””उन्हें भी आप का साथ बहुत अच्छा लगता है मम्मी.””बेटा, एक बात कहनी थी.””कहो ना पापा, यहां कोई परेशानी है?””मैं चाहता था कि एक टीवी इस कमरे में भी लगा देते. समय काटना आसान हो जाता.”
“पापा, यहां पर समय काटने की दिक्कत कहां है? बच्चे हैं, मैं और रीमा हैं और साथ में मम्मी. इतने लोगों के साथ कमरे में टीवी की जरूरत क्या है? बैठक में लगा तो है. आप जब मरजी हो, वहां पर बैठ कर टीवी देख सकते हैं.”