‘‘अब क्या करोगी? घूमने चलोगी या आराम करोगी?’’ ईशान ने बाहर आ कर पूछा.
‘‘आराम कहां है मेरी जिंदगी में,’’ रौनी ने आह भर कर कहा.
‘‘देखो, अब ऐसी बातें मत करो. सामान्य होने की कोशिश करो,’’ ईशान ने अब अधिकार से उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मैं सोचता हूं, तुम्हें कुछ देर अब आराम करना चाहिए. चलो, तुम्हारे होटल छोड़ आता हूं. शाम को फिर मिलेंगे.’’
‘‘होटल,’’ रौनी से उदासी से कहा, ‘‘होटल तो मैं ने बहुत पहले छोड़ दिया था. रहने के लिए रुपया चाहिए और सारा रुपया पिताजी की जेब में था. वह तो होटल का मालिक इतना सज्जन था कि उस ने मुझ से कोई हिसाब नहीं मांगा.’’
‘‘तो फिर कहां रहती हो?’’ ईशान ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘कालीबाड़ी में. इतने सारे लोग रोज आतेजाते हैं, मुझे कोई परेशानी नहीं होती,’’ रौनी ने लापरवाही से कहा.
ईशान ने कुछ क्षणों तक सोचा और फिर कहा, ‘‘तुम्हें कालीबाड़ी में रहने की कोई जरूरत नहीं है. चलो, अपना सामान उठाओ और मेरे होटल में आ जाओ. मैं तुम्हारे लिए कमरा आरक्षित करवा दूंगा.’’
रौनी ने आशंका और अविश्वास से ईशान को देखा और कहा, ‘‘आप मेरे लिए इतना सब क्यों करेंगे? मैं नादान और कमसिन जरूर हूं पर भोली भी नहीं हूं.’’
ईशान के ऊपर बिजली सी गिर पड़ी. शीघ्रता से बोला, ‘‘विश्वास करो रौनी, मेरा कोई बुरा आशय नहीं है. मैं कोई नाजायज फायदा भी नहीं उठाना चाहता. हां, एक दोस्त की हैसियत से तुम्हें कुछ लमहे खुशी के दे सकता हूं तो इनकार कर के मेरा दिल तो न तोड़ो.’’
रौनी ने शरारतभरी मुसकराहट से कहा, ‘‘बुरा मान गए? दरअसल, हम लड़कियों को हर पल चौकन्ना और होशियार रहना पड़ता है. अच्छे और बुरे की पहचान करना कोई आसान काम है क्या?’’
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