शेखर ने अपना ब्लडप्रैशर फिर चैक किया, काफी हाई था. अपनी हैल्थ को ले कर उन का चिंतित होना स्वाभाविक था. आसान तो है ही नहीं अजय के बिना जीना. कोशिश कर रहे हैं पर तनमन पर जैसे कोई बस ही नहीं. पूरीपूरी रात अजय के कमरे के चक्कर लगाते रहते हैं, कभी उस का सामान ठीक करने लगते हैं, तो कभी उस की अलमारी खोल कर खड़े रह जाते हैं. कुदरत ने क्रूर मजाक किया है उन के साथ. एक रिटायर्ड पिता का इकलौता बेटा जब कोरोना जैसी महामारी का शिकार हो गया हो, देखते ही देखते दुनिया छोड़ गया हो, तो जीना आसान होगा क्या?

उन की पत्नी रेखा भी बीमारी के बाद उन का साथ छोड़ चुकी थीं और अब अजय भी चला गया तो अकेले घर में बंद... न दिन में चैन आता, न रात को नींद. लौकडाउन का समय था. बहुत परेशान हो रहे थे शेखर. टीचर थे, साथ के कई दोस्त इस महामारी ने छीन लिए थे, जो बचे थे, एकदम डरे हुए अपनेअपने घरों में बंद थे. उन से फोन पर बात भी होती, तो वही विषय थे जिन पर बात कर के दिल घबरा जाता और बीमारी और मौत के अलावा कोई बात ही नहीं होती.

शेखर ने पड़ोस के अपने डाक्टर मित्रर रवि को फोन किया, ''रवि, तबीयत घबरा रही है, रात से सिरदर्द भी बहुत है, ब्लडप्रैशर हाई है, चैक किया है, क्या करूं?''

''बीपी की रोज की दवाई ले रहे हो न?''''हां.‘’''खाने का क्या कर रहे हो?''''कभी खिचड़ी बना लेता हूं, कभी दालचावल, मैड तो आजकल आ नहीं रही है, नहीं तो वही सब करती थी. एक टाइम कभी भी बना लेता हूं, वही खाता रहता हूं जब भूख लगती है, वैसे भूख भी नहीं लगती है.‘’

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