अब तक बात सब जगह फ़ैल गई थी. जलज के कुछ स्टाफ मैम्बर्स भी हौस्पिटल पहुंच गए और उन की मदद से जलज की बौडी को एम्बुलैंस से घर लाने की कवायद हुई. कुछ महिलाएं कनिका को घर ले आईं और फिर जो कुछ हुआ वह तो अब तक कनिका की आंखों से रिस ही रहा है.
“वो लोग आ गए, चलो. पहले कनिका नहा ले, फिर एकएक कर बाकी तुम लोग भी नहा लो,” माधवी ने राखी को इशारा कर के कनिका को बाथरूम में ले जाने को कहा.
कनिका अपनी अलमारी में से कपड़े निकालने लगी.“पक्के रंग की साड़ी पहनना. कोई लेसवेस या गोटाकिनारी न लगी हो, यह जरूर देख लेना,” माधवी का यह स्वर सुन कर कनिका सोच में डूब गई. कच्चापक्का तो कभी सोचा ही नहीं. जलज तो उसे हर रंग के कपड़े ला कर देता था. काले से ले कर सफ़ेद तक. किसी रंग से उसे कोई परहेज नहीं था. माधवी ने आ कर एक बैगनी रंग की प्लेन साड़ी निकाल कर उस के हाथ में थमा दी. कनिका बाथरूम की तरफ चल दी.
शीशे में अपना चेहरा देख कर कनिका डर गई. सूनी मांग-माथे का चेहरा कितना डरावना लग रहा था. उस ने घबरा कर अपनी आंखें बंद कर लीं और शीशे पर तोलिया डाल कर उसे ढक दिया.
किसी तरह रात हुई. आसपड़ोस के लोग जा चुके थे. माधवी और राखी किसी खास मंत्रणा में मशगूल थीं. कनिका किसी मूर्ति सी लौबी में जड़ हुई बैठी थी. वह रोतेरोते थक चुकी थी. उस का शरीर अब आराम करना चाहता था. लेकिन माधवी ने कहा था- “बिना मुझ से पूछे कोई काम न करना. ऐसा न हो कि किसी की नासमझी के कारण दिवंगत आत्मा को कष्ट हो.” इसलिए कनिका सास की आज्ञा की प्रतीक्षा कर रही थी.