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‘‘जानती हूं, बीए कर के मुझे क्या मिला? कौनसी नौकरी कर रही हूं. बीटैक कर के बेटी भी क्या कर लेगी. शादी कर के बच्चे पैदा करेगी, उन्हें पालपोस कर बड़ा करेगी, घर संभालेगी और बैठीबैठी मोटी होगी, बस. इस के अलावा लड़कियां क्या करती हैं, बताओ?’’ ‘‘जो लड़कियां नौकरी कर रही हैं और ऊंचेऊंचे पदों पर बैठी हैं, वे भी किसी की बेटियां, पत्नियां और मां होंगी. उन के घर वाले अगर इसी तरह सोचते, तो आज कोई भी नारी घर के बाहर जा कर नौकरी नहीं कर रही होती. वे नौकरियां कर रही हैं और देश, समाज व परिवार के विकास में योगदान दे रही हैं,’’ केशव बाबू जोर दे कर बोले.

‘‘बस, रहने दो. 2-4 औरतों के नौकरी करने से देश का विकास नहीं होता, न समाज का भला होता. नौकरी करने वाली स्त्रियों के घर बिगड़ जाते हैं. वे अपनी संतानों की ठीक से देखभाल नहीं कर पातीं. परिवार, समाज और देश के विकास व उन्नति के लिए लड़कों का सक्षम होना परम आवश्यक है. हमें बेटे की शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए. वही हमारे बुढ़ापे का सहारा है.’’ केशव बाबू ने कटाक्ष किया, ‘‘तभी तो हमारे सुपुत्र पढ़ाई में कुछ ज्यादा ही ध्यान दे रहे हैं. 3-3 डिगरियां लिए बैठे हैं और नौकरी हाथ नहीं आ रही है. डिगरी ले कर चाटेगा?’’

‘‘आप तो पता नहीं क्यों बेटे के खिलाफ रहते हैं. देख लेना, एक दिन वही हमारा नाम रोशन करेगा. मुझे तो डर है, बेटी बाहर जा कर हमारी नाक न कटवा दे?’’

‘‘वह तो पता नहीं कब हमारा नाम रोशन करेगा, परंतु तुम्हारी घटिया सोच के चलते मैं बेटी के जीवन को अंधकारमय नहीं बना सकता. बेटे के लिए तुम हमेशा अपनी मनमानी करती रही, परंतु बेटी के संबंध में तुम्हारी एक भी नहीं चलने दूंगा. वह जहां तक पढ़ना चाहेगी, मैं पढ़ाऊंगा,’’ केशव बाबू उत्तेजना में उठ कर खड़े हो गए.

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