‘‘शु चि, ‘सा’ निकल रहा है, ‘सा’ क्यों छूटता है तुम्हारा, ऊपर, थोड़ा और ऊपर लो. ‘सा’ को पकड़ो तो सारे सुर अपनेआप पास रहेंगे.’’

संगीत क्लास में मेहुल की 18 वर्षीया छात्रा शुचि से यह कहते ही पास के कमरे से एक तीखा व्यंग्य तीर की तरह आ कर इन की पूरे क्लास को धुआंधुआं कर गया : ‘सा’ जिस का निकला जा रहा उसे तो अपना होश नहीं, किसी और का ‘सा’ पकड़ने चले हैं.’’

थोड़ी देर के लिए एक विकृत मौन पसर गया. मेहुल ने स्थिति संभाली, ‘‘राजन और दिव्या, तुम लोग शुचि के सम से अंतरा लो.’’

किसी के दिल में आग लगी थी. जन्नत से लटकती रोशनियों के गुच्छों से जैसे चिनगारियां फूटी पड़ती थीं. सांभवी कमरा समेटना छोड़ मुंह ढांप बिस्तर पर पड़ गई.

मन ही मन ढेरों उलाहने दिए, हजार ताने मारे, जी न भरा तो अपना फोन उठा लिया और स्वप्निल को टैक्स्ट मैसेज किया- ‘एक नई कहानी लिखना चाहती हूं, प्लौट दे रही हूं, बताएं.’ यही सूत्र था प्रख्यात मैगजीन एडिटर स्वप्निल सागर से जुड़े रहने का. और कैसे जिया जाए, कैसे जिया भरमाया जाए, कैसे भुलाए वह अपनी परेशानियों को?

टैक्स्ट देखापढ़ा जा चुका था, जवाब आया, ‘भेजो.’

लिखना शुरू किया उस ने. निसंदेह आज के समय की कमाल की लेखिका है वह.

कल्पना, भाषा, विचार और कहानियों की बुनावट में असाधारण सृजन करने की कला. पल में प्लौट भेजा और ओके होते ही लिखना शुरू.

सांभवी : 5 फुट हाइट, सांवलीसलोनी, हीरे कट का चेहरा, शार्प और स्मार्ट. उम्र करीब 28 वर्ष.

मेहुल को सोचते हुए उस के अंदर आग सी भड़क उठी, ‘वही मेहुल, वही आत्मकेंद्रित संगीतकार और वही उस के सिमटेसकुचे चेहरे की अष्टवक्र मुद्राएं, तनी हुई भौंहों और होंठों के बंद कपाट में फंसे हुए कभी न दिखने वाले दांत. मन तो हो रहा था उठ कर जाए और विद्यार्थियों के सामने ही वह मेहुल की पीठ पर कस कर एक मुक्का जमा आए. वह उठ कर गई मगर उस कमरे के बगल से निकल कर रसोई में जा कर चाय के बरतन पटकने लगी, यानी चाय बनाने का यत्न करते हुए गुस्सा निकालने की सूचना देने लगी किसी को.

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