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मां ने जैसे अनिष्ट को भांप लिया हो, फिर भी साहस कर आशंकित हो कर पूछा, ‘‘क्या हुआ, दीदी? गानाबजाना क्यों बंद करा दूं? यह तो गलत होगा. जल्दी कहो, दीदी, क्या बात है?’’

‘‘बैठो सुमित्रा, बताती हूं. अब समय बहुत कम है, इसलिए तुरंत निर्णय ले लो. हिम्मत से काम लो और अपनी रत्ना को बचा लो,’’ मौसी ने बैठेबैठे ही मां की दोनों हथेलियां अपनी मुट्ठी में दबा लीं.

‘‘जल्दी बताओ दीदी, कहना क्या चाहती हो?’’ घबराहट में जैसे मां के शब्द ही सूख गए. चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे दिल का दौरा पड़ गया हो. मौसी भी घबरा गईं लेकिन समय की कमी देखते हुए उन्हें बात जल्दी से जल्दी कहनी थी वरना कोई और बुरा हादसा हो जाता. अभी तो ये अपनी बात कह कर सुमित्रा को संभाल भी लेंगी और जो सदमा देने जा रही थीं, उसे साथ रह कर बांट भी लेंगी.

‘‘सुनो सुमित्रा, जिस आनंद को तुम रत्ना का पल्लू से बांध रही हो वह पहले से ही शादीशुदा है.’’

सुमित्रा की भौंहें तन गईं, ‘‘क्या कह रही हो, दीदी? जिस ने यह शादी तय कराई है वह क्या इस बात को छिपा कर रखेगा?’’

‘‘हां सुमित्रा, शांत हो जाओ और धीरज धरो, या तो उस ने बात छिपाई होगी या लड़के वालों ने उस से बात छिपाई होगी. मैं तो कल ही आ जाती, लेकिन इस बात की सचाई का पता लगाने के लिए कल आरा चली गई थी. वहां मुझे दिनभर रुकना पड़ा, नहीं तो कल पहुंच जाती तो बात संभालने के लिए तुम लोगों को भी समय मिल जाता. खैर, अभी भी बिगड़ा कुछ नहीं है. किसी तरह समय रहते सबकुछ तय कर ही लेना है.’’

रत्ना के पैर थरथराने लगे. लगा कि वह गिर पड़ेगी. मौसी ने इशारे से रत्ना को पास बुलाया और हाथ पकड़ कर बगल में बिठा लिया.

‘‘दुखी मत हो बेटी, संयोग अच्छा है. समय रहते सचाई का पता चल गया और तुम्हारी जिंदगी बरबाद होने से बच गई.’’

मौसी के दिलासा दिलाने के बावजूद रत्ना को आंसू रोकना मुिश्कल हो रहा था.

रत्ना के पिता ने अधीर हो कर पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि आनंद शादीशुदा है?’’

समय की कमी देखते हुए मौसी ने जल्दीजल्दी बताया, ‘‘पटना में रत्ना के मौसा के दफ्तर में विष्णुदेवजी काम करते हैं. मैं यहां आने से ठीक एक दिन पहले उन के घर गई थी. उन्हें मैं ने बताया कि मैं अपनी बहन की लड़की की शादी में गया जा रही हूं. फिर उन्हें मैं ने बातोंबातों में आनंद के परिवार के बारे में भी बताया. बीच में ही उन की पत्नी उठ कर अंदर चली गईं. आईं तो एक एलबम लेती आईं. उस में एक जोड़े का फोटो लगा था, दिखा कर बोलीं, ‘यही आनंद तो नहीं है?’ फोटो देख कर मैं तो जैसे आकाश से गिर पड़ी. वह उसी आनंद का फोटो था. तुम ने मुझे देखने के लिए जो भेजी थी, वैसी आनंद की एक और फोटो उस एलबम में लगी थी. फिर जब सारे परिवार की बात चली तो शक की बिलकुल गुंजाइश ही नहीं रह गई, क्योंकि तुम ने तो सब विस्तार से लिख ही भेजा था.’’

 

रत्ना की मां आगे सुनने का धैर्य नहीं जुटा पाईं. वे अपनी बहन की हथेली पकड़ेपकड़े ही रोने लगीं, ‘‘हाय, अब क्या होगा? बरात लौटाने से तो पूरी बिरादरी में ही नाक कट जाएगी.’’

अब तक रत्ना भी जी कड़ा कर संयत हो गई थी. दुख और क्षोभ की जगह क्रोध और आवेश ने ले ली थी, ‘‘नाक क्यों कटेगी मां? नाक कटाने वाला काम हम लोगों ने किया है या उन्होंने?’’ रत्ना के पिता ने सांस भर कर कहा, ‘‘ये सारे इंतजाम व्यर्थ हो गए. अब तक का सारा खर्च पानी में…’’ बीच में ही उन का भी गला भरभराने लगा तो वे भी चुप हो गए.

इस समय पूरे घर का संबल जैसे रत्ना की बड़ी मौसी ही हो गईं, ‘‘क्यों दिल छोटा कर रहे हो तुम लोग? समय रहते बच्ची की जिंदगी बरबाद होने से बच गई. क्या इस से बढ़ कर खर्च का अफसोस है? यह सोचो कि अगर शादी हो जाती तो रत्ना कहीं की न रहती. तुम लोग धीरज से काम लो, मैं सब संभाल लूंगी. अभी कुछ बिगड़ा भी नहीं है, और समय भी है. मैं जा कर सब से पहले शामियाने वाले और सजावट वालों को विदा करती हूं. फिर इन लड़कियों और पड़ोसिनों को संभाल लूंगी. जो सामान बना नहीं है वह सब वापस हो जाएगा और जो पक गया है उसे हलवाइयों से कह कर होटलों में खपाने का इंतजाम करवाती हूं.’’

 

फिर तो मौसी ने सबकुछ बड़ी तत्परता से संभाल लिया. मांपिताजी और रत्ना तीनों को तो जैसे काठ मार गया हो. हमेशा चहकने वाला मुन्ना भी वहीं चुपचाप मां के पास बैठ गया. बाकी सगेसंबंधी समय की नाजुकता समझते हुए चुपचाप इधरउधर कमरों में खिसक लिए. सब तरफ धीमेधीमे खुसुरफुसुर में बात जानने की उत्सुकता थी पर स्थिति की नाजुकता को देखते हुए मुंह खोल कर कोई कुछ पूछ नहीं रहा था. सभी शांति से मौसी के आने के इंतजार में थे.

एकडेढ़ घंटे में सब मामला सुलझा कर, एकदो नजदीकी रिश्तेदारों को हर अलगअलग विभाग को निबटाने की जिम्मेदारी दे कर, मौसी अंदर आईं. अब इस थकान में उन्हें एक कप चाय की जरूरत महसूस हुई. महाराजिन से सब के लिए चाय भिजवाने का आदेश जारी करते हुए मां से बोलीं, ‘‘सुमित्रा, तुम जरा भी निराश मत हो. मैं रत्ना के लिए बढि़या से बढि़या लड़का ला कर खड़ा कर दूंगी. और वह भी जल्दी ही. जिस आनंद की तुम ने इतनी तारीफ लिख कर भेजी थी, वह दोदो शादियां रचाए बैठा है. विष्णुदेव के बड़े भैया की आरा में फोटोग्राफी की बहुत बड़ी दुकान है. उन्हीं की लड़की से शादी हुई थी उस धोखेबाज आनंद की. विष्णुजी के भैया ने खूब धूमधाम से अपनी बेटी की शादी की थी. लड़की भी बेहद खुश थी. एक हफ्ते ससुराल रह कर आई तो आनंद की खूब तारीफ की. आनंद 15 दिन रह कर अमेरिका चला गया. बहुत दिन तक आनंद के मातापिता कहते रहे कि बहू का वीजा बना नहीं है, बन जाएगा तो चली जाएगी. वैसे बहू को वे लोग भी प्यार से ही रखते थे.

 

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