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‘‘राजीव, आज इतने सालों बाद मिले हो, क्यों मेरे घावों को हरा करना चाहते हो?’’

‘‘मैं तुम्हारे घावों को हरा नहीं करना चाह रहा, मैं सिर्फ एक दोस्त के नाते तुम्हारी मदद करना चाहता हूं.’’ ‘‘जब मेरी अपनी परछाईं ही मेरा साथ छोड़ गई तो तुम मेरी क्या मदद कर पाओगे? मुझ से ज्यादा दुखी इस दुनिया में और कौन होगा?’’

‘‘दुख कह देने से दिल का भार कम हो जाता है चंद्रमणि.’’ वह बताने लगी, ‘‘मेरे बीकौम करने के बाद की बात है. एक दिन मेरे मातापिता ने वैष्णो देवी जाने का कार्यक्रम बनाया. दूसरे दिन वे ड्राइवर को ले कर निकल पड़े. लौटने समय ट्रक व गाड़ी की टक्कर में ड्राइवर सहित तीनों घटनास्थल पर ही खत्म हो गए. शक्ल तक पहचानी नहीं जा रही थी. कहने को तो सोनाचांदी, खेतखलिहान, हवेली सबकुछ था. लाखों की जायदाद थी पर वसीयत न होने से सबकुछ चाचा, ताऊ ने हड़प लिया.

‘‘ताऊजी ने अमीर खानदान के इकलौते वारिस से मेरी शादी करा दी क्योंकि लड़के वालों को दानदहेज की जरूरत तो थी नहीं, बस, मैं पसंद आ गई. बड़ी धूमधाम से हमारी शादी कर दी गई. मेरे पति राजेश मुझे से बहुत प्यार करते थे. सास, ससुर भी अच्छे ही लगे थे. शादी के 2 माह बाद ही की बात है. हमारा कमरा ऊपर था. राजेश रात को सोने ऊपर आए तो उन्हें चक्कर आने लगे. थोड़ी देर बाद ही बोले कि मेरा जी घबरा रहा है. मैं ने कहा कि छत पर जरा खुली हवा में बैठने से ठीक रहेगा. बस, इतने में ही उन्हें खून की उलटी हुई. यह देख कर मैं एकदम घबरा गई व दौड़ कर पिताजी को बताया. उन्होंने उसी समय डाक्टर को बुला लिया व उन्हें अस्पताल ले गए. 2-3 दिन की सारी जांच के बाद पता चला कि उन्हें ‘ब्लड कैंसर’ है. बस, उसी दिन से मुझे मनहूस माना जाने लगा. ‘‘डाक्टर ने मुझे सारी बातें बताईं. राजेश की जिंदगी के अंतिम पड़ाव में मैं उसे खुश रखूं, यह भी सलाह दी. अब तो मेरी अग्निपरीक्षा थी. घर पर सब का व्यवहार मेरे प्रति बेहद रूखा व तनावपूर्ण था. पर मैं सारी परेशानियों को अपने सीने में दफन किए मुसकराना सीख गई, क्योंकि राजेश को मेरा उदास चेहरा कभी नहीं भाया करता था. ‘‘राजेश की हालत बराबर गिरती जा रही थी, कई बार खून चढ़ चुका था पर उन्हें बीचबीच में खून की हलकीहलकी सी उलटी हो जाया करती थी. इस से ज्यादा परेशानियों का पहाड़ मुझ पर और भला क्या टूट सकता था.

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