लेखिका- आरती पांड्या
विभाजन के समय बेबे 13-14 साल की बच्ची थी और राजस्थान के एक गांव में रहती थी. उसे अपने गांव का नाम व पता तो अब याद नहीं है लेकिन इतना ज़रूर याद है कि उस के गांव में मोर बहुत थे और उसी बात के लिए उस का गांव मशहूर था. परिवार में अम्मा, बापू के अलावा 3 भाई और 1 बहन थी. बहन व भाइयों के नाम उसे आज भी याद हैं- बंसी, सरजू और किसना 3 भाई और बहन का नाम लाली.l उस का बापू कालूराम गांव के ज़मींदार के खेतों में काम करता था और अम्मा भी कुंअरसा ( ज़मींदार ) के घर में पानी भरने व कपड़ेभांडी धोने का काम करती थी. अपने छोटे बहनभाइयों को लक्ष्मी (बेबे) संभालती थी. बापू ने पास के गांव में लक्ष्मी का रिश्ता तय कर दिया था. लक्ष्मी का होने वाला बिनड़ा चौथी जमात में पढ़ता था और उस की परीक्षा के बाद दोनों के लगन होने की बात तय हुई थी.
उसी दौरान देश का विभाजन होने की खबर आई और चारों तरफ हड़कंप सा मचने लगा. उस के गांव से भी कुछ मुसलमान परिवार पाकिस्तान जाने की तैयारी करने लगे. लक्ष्मी के बापू ने उस की ससुराल वालों से हालात सुधरने के बाद लगन करवाने के लिए कहा, तो लक्ष्मी के होने वाले ससुर ने कहा कि ब्याह बाद में कर देंगे, पर सगाई अभी ही करेंगे.
सगाई वाले दिन हाथों में मेंहदी लगा व नया घाघराचोली पहन कर लक्ष्मी तैयार हुई. अम्मा ने फूलों से चोटी गूंथी तो लक्ष्मी घर के एकलौते शीशे में बारबार जा कर खुद को निहारने लगी. आंगन में ढोलक बज रही थी और आसपास की औरतें बधाइयां गा रही थीं. फिर उस की होने वाली सास ने लक्ष्मी को चांदला कर के हंसली व कड़े पहनाए और हाथों में लाललाल चूड़ियां पहना कर उस को सीने से लगा लिया. घर में गानाबजाना चल रहा था, तब मां की आंख बचा कर लक्ष्मी अपने गहने व कपड़े सहेलियों को दिखाने के लिए झट से बाहर भाग गई व दौड़ती हुई खेतों की तरफ चली गई. बहुत ढूंढा, पर उसे वहां कोई भी सहेली खेलती हुई नहीं मिली. हां, खेतों के पास से कई खड़खडों में भर कर लोगों की भीड़ कहीं जाती हुई ज़रूर दिखाई दी.
लछमी वापस लौटने लगी, तभी किसी ने उसे पुकारा. उस ने पलट कर देखा. उस की सहेली फातिमा एक खड़खड़े में बैठी उसे आवाज़ दे रही थी. लक्ष्मी दौड़ कर उस के पास गई और उस से पूछने लगी कि वह कहां जा रही है? फातिमा ने बताया कि वह पाकिस्तान जा रही है और अब वहीं रहेगी. लक्ष्मी अपनी सहेली से बिछुड़ने के दुख से रोने लगी. तभी फातिमा के अब्बू जमाल चचा ने लक्ष्मी को झट से हाथ पकड़ कर अपने खड़खड़े में बैठा लिया और कहा कि जब तक चाहे वह अपनी सहेली से बात कर ले, फिर वह उसे नीचे उतार देंगे. खड़खड़ा चल पड़ा और दोनों सहेलियां बातें करते हुए गुट्टे खेलती रहीं. बीचबीच में जमाल बच्चियों को गुड़ के लड्डू खिलाता जा रहा था. इन्हीं सब में वक्त का पता ही न चला और घर जाने का ख़याल लक्ष्मी को तब आया जब जमाल चचा ने उसे अपने खड़खड़े से उतार कर दूसरी ऊंटगाड़ी में बैठा दिया.
उस ने चारों तरफ निगाह घुमाई, तो देखा कि वह अपने गांव से बहुत दूर रेगिस्तानी रास्ते में है और वहां ढेर सारी भीड़ गांव से उलटी दिशा में चली जा रही है. लक्ष्मी यह देख कर ऊंटगाड़ी से कूदने लगी, तो गाड़ी में बैठे दाढ़ी वाले आदमी ने उस का हाथ कस कर पकड़ लिया और फिर एक रस्सी से उस के हाथपैर बांध कर अपनी अम्मा के पास बैठाते हुए बोला कि वह उस को अपने साथ पाकिस्तान ले जा रहा है क्योंकि उस ने जमाल को पूरे 30 रुपए दे कर लक्ष्मी को खरीदा है और अब वह उस की बीवी है. लाचार लक्ष्मी पूरे रास्ते रोती रही. पर न उस आदमी को रहम आया, न ही उस की बूढी अम्मा को.
गफूर नामक वह आदमी भी राजस्थान के किसी गांव से ही आया था. पकिस्तान पहुंच कर इस गांव में उस ने अपना डेरा डाल दिया और धीरेधीरे अच्छा पैसा कमाने लगा. आते ही गफूर ने यह मकान और कुछ खेत यह सोच कर ख़रीद लिए कि उस की गिनती गांव के रईसों में होने लगेगी और लोग उस की इज्ज़त करेंगे. मगर जिसे अपना असली मुल्क समझ कर वह आया था वहां, तो उसे हमेशा परदेसी का ही दर्जा दिया गया और अपनी इस घुटन व झुंझलाहट को वह अमीरन यानी लक्ष्मी पर उतारता था.
दिनभर उस की मां अमीरन को मारतीपीटती रहती और रात को गफूर अपना तैश उस बच्ची पर निकालता. उस की सास ने पहले तो उसे डराधमका कर गोश्त पकाना सिखाया और उस से भी मन नहीं भरा, तो मांबेटे ने कई दिनों तक भूखा रख कर उसे ज़बरदस्ती गोश्त खिलाना भी शुरू कर दिया और आखिर उस को लक्ष्मी से अमीरन बना कर ही दम लिया. जब तक अमीरन 20 वर्ष की हुई तब तक 3 बच्चे जन चुकी थी. धीरेधीरे खानदान बढ़ता गया और अमीरन के अंदर की लक्ष्मी मरती गई.
अमीरन (लक्ष्मी) के बच्चे छोटेछोटे थे, तभी गफूर की मौत हो गई और लक्ष्मी की परेशानियां और भी बढ़ गईं क्योंकि अकेली औरत जान कर गांव वालों ने उस के खेतों पर कब्ज़ा करने की कोशिश तो शुरू कर ही दी, साथ ही, कई लोगों ने उस को अपनी हवस का शिकार भी बनाना चाहा. और जब एक दिन खेत में काम करते समय बगल के खेत वाले अब्दुल ने उस को धोखे से पकड़ कर उस के साथ ज़बरदस्ती करनी चाही तो अमीरन के अंदर की राजस्थानी शेरनी जाग गई और उस ने घास काटने वाले हंसिए से अब्दुल की गरदन काट डाली.