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‘‘क्या मतलब?’’ मां ने भौंहें ऊंची कर के पूछा. उन की सम?ा में सचमुच कुछ नहीं आया था.

‘‘अपने लिए वर ढूंढ़ने गई थी,’’ शिवानी ने साफसाफ बता दिया. सुन कर मां के तोते उड़ गए. कानों पर विश्वास नहीं हुआ. फटी आंखों से उसे देखती रही. फिर बोली, ‘‘तुम्हारी शादी के लिए पैसा कहां से आएगा?’’

‘‘क्यों, पापा की मृत्यु के बाद जो पैसा मिला था वह कहां गया? उस में मेरा भी तो आधा हिस्सा है.’’

‘‘उस के बारे में सोचना भी मत,’’ सुषमा ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘तुम भले ही घर से भाग कर शादी कर लो परंतु उस पैसे के बारे में सोचना भी मत. गौरव नया प्लौट खरीद रहा है. उस के लिए पैसे बचा कर रखे हैं.’’

शिवानी के मुंह में ढेर सारी कड़वाहट घुल गई. मुंह पर ‘थू’ का भाव लाते हुए बोली, ‘‘यही तो आप चाहती थीं कि मैं कहीं भाग जाऊं. परंतु बचपन में ऐसे संस्कार ही नहीं दिए. बेटी को अनिच्छा से पालना और बड़ा करना फिर उसे परदों में बंद कर के रखना ताकि कहीं मुंह काला कर के परिवार की ?ाठी मर्यादा को मटियामेट न कर दे. यही आप जैसी मांओं ने सीखा है.

आप की इसी गंदी सोच ने देश की बेटियों का भविष्य गर्त कर रखा है. मां, आप चिंता न करो. आप के पति और बेटे की कमाई का मु?ो एक ढेला भी नहीं चाहिए. जीवन में खुशियों से बढ़ कर कुछ नहीं होता. आप का पैसा मेरे किस काम का, जब मेरे जीवन में पति, परिवार और बच्चे का सुख नहीं है. सोच कर देखिए, अगर आप के मांबाप आप जैसी सोच के होते और आप की शादी न करते तो आप भाई के घर में कैसा महसूस करतीं और कैसा जीवन व्यतीत करतीं.’’

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