लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
मैनेजर ने आंखें सिकोड़ीं, मानो वो बिना बताए ही सबकुछ समझने की कोशिश कर रहा था.‘‘अरे साहब, कोई जरूरी नहीं कि वह बच्चा अब भी यहां हो या उसे कोई आ कर गोद ले गया हो... इतने साल पुरानी बात आप आज क्यों पूछ रहे हैं... हालांकि मुझे इस बात से कोई लेनादेना नहीं है... पर, अब पुराने रिकौर्ड भी इधरउधर हो गए हैं... और फिर हम किसी अजनबी को अपनी कोई जानकारी भला दे भी क्यों?‘‘ मैनेजर ने अपनी हथेली खुजाते हुए कहा.
नमिता अपने बच्चे को देखने के लिए अधीर हो रही थी. उस ने अपने पर्स से सौ के नोट की एक गड्डी निकाली और मैनेजर की ओर बढ़ाई.
‘‘जी, ये लीजिए डोनेशन... और इस की रसीद भी हमें आप मत दीजिए. उसे आप ही रख लीजिएगा... बस आज से 15 साल पहले 10 अगस्त को एक लड़की को कोई आप के यहां दे गया था. आप हमें उस बच्ची से मिलवा दीजिए... हम उसे गोद लेना चाहते हैं.‘‘
नोटों की गड्डी को जेब के हवाले करते हुए मैनेजर ने अपना सिर रजिस्टर में झुका लिया और कुछ ढूंढ़ने का उपक्रम करने लगा.‘‘जी, आप जिस बच्ची की बात कर रही हैं... वह कहां है... देखता हूं...‘‘
कुछ देर बाद मैनेजर ने उन लोगों को बताया कि 10 अगस्त के दिन एक लड़की को कोई छोड़ तो गया था, पर अब वह लड़की उन के अनाथालय में नहीं है.‘‘तो कहां है मेरी बेटी?‘‘ किसी अनिष्ट की आशंका से डर गई थी नमिता.
‘‘जी, घबराइए नहीं. आप की बेटी जहां भी है, सुरक्षित है. आप की बेटी को कोई निःसंतान दंपती आ कर गोद ले गए थे.‘‘‘‘कौन दंपती? कहां हैं वो? आप हमें उन का पता दीजिए... हम अपनी बेटी उन से जा कर मांग लेंगे,‘‘ वीरेन ने कहा.
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