वे 9 थे. 9 के 9 मूक और बधिर. वे न तो सुन सकते थे, न ही बोल सकते थे. पर वे अपनी इस हालत से न तो दुखी थे, न ही परेशान. सभी खुशी और उमंग से भरे हुए थे और खुशहाल जिंदगी गुजार रहे थे. वजह, सब के सब पढ़ेलिखे और रोजगार से लगे हुए थे. अनंत व अनिल रेलवे की नौकरी में थे, तो विकास और विजय बैंक की नौकरी में. प्रभात और प्रभाकर पोस्ट औफिस में थे, तो मुकेश और मुरारी प्राइवेट फर्मों में काम करते थे. 9वां अवधेश था. वह फलों का बड़े पैमाने पर कारोबार करता था.

अवधेश ही सब से उम्रदराज था और अमीर भी. जब उन में से किसी को रुपएपैसों की जरूरत होती थी, तो वे अवधेश के पास ही आते थे. अवधेश भी दिल खोल कर उन की मदद करता था. जरूरत पूरी होने के बाद जैसे ही उन के पास पैसा आता था, वे अवधेश को वापस कर देते थे. वे 9 लोग आपस में गहरे दोस्त थे और चाहे कहीं भी रहते थे, हफ्ते के आखिर में पटना की एक चाय की दुकान पर जरूर मिलते थे. पिछले 5 सालों से यह सिलसिला बदस्तूर चल रहा था.

वे सारे दोस्त शादीशुदा और बालबच्चेदार थे. कमाल की बात यह थी कि उन की पत्नियां भी मूक और बधिर थीं. पर उन के बच्चे ऐसे न थे. वे सामान्य थे और सभी अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे थे. सभी दोस्त शादीसमारोह, पर्वत्योहार में एकदूसरे के घर जाते थे और हर सुखदुख में शामिल होते थे. वक्त की रफ्तार के साथ उन की जिंदगी खुशी से गुजर रही थी कि अचानक उन सब की जिंदगी में एक तूफान उठ खड़ा हुआ. इस बार जब वे लोग उस चाय की दुकान पर इकट्ठा हुए, तो उन में अवधेश नहीं था. उस का न होना उन सभी के लिए चिंता की बात थी. शायद यह पहला मौका था, जब उन का कोईर् दोस्त शामिल नहीं हुआ था. वे कई पल तक हैरानी से एकदूसरे को देखते रहे, फिर अनंत ने इशारोंइशारों में अपने दूसरे दोस्तों से इस की वजह पूछी. पर उन में से किसी को इस की वजह मालूम न थी. वे कुछ देर तक तो खामोश एकदूसरे को देखते रहे, फिर अनिल ने अपनी जेब से पैड और पैंसिल निकाली और उस पर लिखा, ‘यह तो बड़े हैरत की बात है कि आज अवधेश हम लोगों के बीच नहीं है. जरूर उस के साथ कोई अनहोनी हुई है.’ लिखने के बाद उस ने पैड अपने दोस्तों की ओर बढ़ाया. उसे पढ़ने के बाद प्रभात ने अपने पैड पर लिखा,

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