कई दिनों से सुन रहे हैं कि हमें अब जेल से रिहा किया जाएगा. रोज नईनई खबरें आतीं. एक बार टूटी आस फिर जागने लगती. रात कल के सपने बनने में बीत जाती है, फिर अगले दिन के सपनों के लिए मन यादों में भटकने लगता है.

हम 5 दोस्त बांगरमऊ से अहमदाबाद जा रहे थे. रवींद्र कई बार वहां जा चुका था. उसी ने बताया कि वहां बहुत काम है. यहां तो कानपुर और लखनऊ में कोई काम नहीं मिल पा रहा था.

रवींद्र अहमदाबाद के किस्से सुनाया करता था. वहां  नईनई कंपनियां खुल रही थीं. लोग हजारों रुपए कमा रहे थे.

हम पांचों दोस्त भी रवींद्र के साथ जाने को तैयार हो गए. वह जानकार था. कई सालों से वहीं पर काम कर रहा था. अच्छी गुजरबसर हो रही थी. परिवार भी खुश था.

अहमदाबाद पहुंच कर रवींद्र ने हमें तेल की एक फैक्टरी के ठेकेदार से मिलवाया. हमें दूसरे दिन से ही काम पर रख लिया गया. सुबह के 8 बजे से ले कर शाम के 7 बजे तक मुश्किल भरा काम होता था. बड़ीबड़ी मशीनें लगी थीं. बड़ा काम था.

हम पांचों ने वहीं फैक्टरी के पास ही एक झोंपड़ी बना ली थी, साथ ही बनातेखाते थे. कभीकभी हम समुद्र की ओर भी निकल जाते थे. तैरती हुई नावों को देखते.

नाविक समुद्र में बड़ा सा जाल डालते थे. मछलियां पकड़ते और नाव भरभर कर मछलियां ले कर जाते. कभीकभी उन नाविकों से बातें भी होती थीं.

3 महीने बाद ठेकेदार ने हमारी एक महीने की छुट्टी कर दी कि कहीं हम परमानैंट न हो जाएं. अब हमारे पास कमानेखाने का कोई साधन न था. रोज ही दूसरी फैक्टरियों के भी चक्कर लगाते, पर कुछ काम नहीं बन पा रहा था.

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