नन्हीगौरैया ने बड़ी कोशिश से अपना घोंसला बनाया था. घास के तिनके फुरती से बटोर कर लाती गौरैया को देख कर दीपमाला के होंठों पर मुसकान आ गई. हाथ सहज ही अपने पेट पर चला गया. पेट के उभार को सहलाते हुए वह ममता से भर उठी. कुछ ही दिनों में एक नन्हा मेहमान उस के आंगन में किलकारियां मारेगा. तार पर सूख रहे कपड़े बटोर वह कमरे में आ गई. कपड़े रख कर रसोई की तरफ मुड़ी ही थी कि तभी डोरबैल बजी.
‘‘आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गई?’’ घर में घुसते ही भूपेश ने पूछा.
‘‘आज मन नहीं किया काम पर जाने का. तबीयत कुछ ठीक नहीं है,’’ दीपमाला ने जवाब दिया.
दीपमाला इस आस से भूपेश के पास खड़ी रही कि तबीयत खराब होने की बात जान कर वह परेशान हो उठेगा. गले से लगा कर प्यार से उस का हाल पूछेगा, मगर बिना कुछ कहेसुने जब वह हाथमुंह धोने बाथरूम में चला गया तो बुझी सी दीपमाला रसोई की ओर चल पड़ी.
शादी के 4 साल बाद दीपमाला मां बनने जा रही थी. उस की खुशी 7वें आसमान पर थी, मगर भूपेश कुछ खास खुश नहीं था. दीपमाला अकेली ही डाक्टर के पास जाती, अपने खानेपीने का ध्यान रखती और अगर कभी भूपेश को कुछ कहती तो काम की व्यस्तता का रोना रो कर वह अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेता. वह बड़ी बेसब्री से दिन गिन रही थी. बच्चे के आने से भूपेश को शायद कुछ जिम्मेदारी का एहसास हो जाए, शायद उस के अंदर भी नन्ही जान के लिए प्यार उपजे, इसी उम्मीद से वह सब कुछ अपने कंधों पर संभाले बैठी थी.
कुछ ही दिनों की तो बात है. बच्चे के आने से सब ठीक हो जाएगा, यही सोच कर उस ने काम पर जाना नहीं छोड़ा. जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि उस की और भूपेश की कमाई से घर मजे से चल रहा था. पार्लर की मालकिन दीपमाला के हुनर की कायल थी. एक तरह से दीपमाला के हाथों का ही कमाल था जो ग्राहकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई थी. दीपमाला के इस नाजुक वक्त में सैलून की मालकिन और बाकी लड़कियां उसे पूरा सहयोग देतीं. उस का जब कभी जी मिचलाता या तबीयत खराब लगती तो वह काम से छुट्टी ले लेती.
एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर भूपेश स्वभाव से रूखा था. उस के अधीन 2-4 लोग काम करते थे. उस के औफिस में एक पोस्ट खाली थी, जिस के लिए विज्ञापन दिया गया था. कंपनी में ग्राहक सेवा के लिए योग्यता के साथसाथ किसी मिलनसार और आकर्षक व्यक्तित्व की जरूरत थी.
एक दिन तीखे नैननक्शों वाली उपासना नौकरी के आवेदन के लिए आई. उस की मधुर आवाज और व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर और कुछ उस के पिछले अनुभव के आधार पर उस का चयन कर लिया गया. भूपेश के अधीनस्थ होने के कारण उसे काम सिखाने की जिम्मेदारी भूपेश पर थी.
उपासना उन लड़कियों में से थी जिन्हें योग्यता से ज्यादा अपनी सुंदरता पर भरोसा होता है. अब तक के अपने अनुभवों से वह जान चुकी थी कि किस तरह अदाओं के जलवे दिखा कर आसानी से सब कुछ हासिल किया जा सकता है. छोटे शहर से आई उपासना कामयाबी की मंजिल छूना चाहती थी. कुछ ही दिनों बाद वह समझ गई कि भूपेश उस पर फिदा है. फिर इस बात का वह भरपूर फायदा उठाने लगी.
उपासना का जादू भूपेश पर चला तो वह उस पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहने लगा. उपासना बहाने बना कर औफिस के कामों को टाल देती जिन्हें भूपेश दूसरे लोगों से करवाता. अकसर बेवजह छुट्टी ले कर मौजमस्ती करने निकल पड़ती. उसे बस उस पैसे से मतलब था जो उसे नौकरी से मिलते थे. साथ में काम करने वाले भूपेश के दबदबे की वजह से उपासना की हरकतों को नजरंदाज कर देते.
अपने यौवन और शोख अदाओं के बल पर उपासना भूपेश के दिलोदिमाग में पूरी तरह उतर गई. उस की और भूपेश की नजदीकियां बढ़ने लगीं. काम के बाद दोनों कहीं घूमने निकल जाते. उसे खुश करने के लिए भूपेश उसे महंगे तोहफे देता. आए दिन किसी पांचसितारा होटल में लंच या डिनर पर ले जाता. भूपेश का मकसद उपासना को पूरी तरह से हासिल करना था और उपासना भी खूब समझती थी कि क्यों भूपेश उस के आगेपीछे भंवरे की तरह मंडरा रहा है.
पहले भूपेश औफिस से घर जल्दी आता था तो दोनों साथ में खाना खाते, अब देर रात तक दीपमाला उस का इंतजार करती रहती और फिर अकेली ही खा कर सो जाती. कुछ दिनों से भूपेश के रंगढंग बदल गए थे. औफिस में भी सजधज कर जाता. उधर इन सब बातों से बेखबर दीपमाला नन्हें मेहमान की कल्पना में डूबी रहती. उस की दुनिया सिमट कर छोटी हो गई थी.
एक रोज धोने के लिए कपड़े निकालते वक्त उसे भूपेश की पैंट की जेब से फिल्म के 2 टिकट मिले. उसे थोड़ी हैरानी हुई. भूपेश फिल्मों का शौकीन नहीं था. कभी कोई अच्छी फिल्म लगी होती तो दीपमाला ही जबरदस्ती उसे खींच ले जाती.
उस ने भूपेश से इस बारे में पूछा. टिकट की बात सुन कर वह कुछ सकपका गया. फिर तुरंत संभल कर उस ने बताया कि औफिस के एक सहकर्मी के कहने पर वह चला गया था. बात आईगई हो गई.
इस बात को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन भूपेश के बटुए में दीपमाला को सुनार की दुकान की एक परची मिली. शंकित दीपमाला ने भूपेश के घर लौटते ही उस पर सवालों की बौछार कर दी.
उपासना को जन्मदिन में देने के लिए भूपेश ने एक गोल्ड रिंग बुक करवाई थी, लेकिन किसी शातिर अपराधी की तरह भूपेश उस दिन सफेद झूठ बोल गया. अपने होने वाले बच्चे का वास्ता दे कर.
उस ने दीपमाला को यकीन दिला दिया कि उस के दोस्त ने अपनी पत्नी को सरप्राइज देने के लिए ही परची उस के पास रखवाई है. इस घटना के बाद से भूपेश कुछ सतर्क रहने लगा. अपनी जेब में कोई सुबूत नहीं छोड़ता था.
दीपमाला की डिलीवरी का समय नजदीक था. भूपेश ने उस के जाने का इंतजाम कर दिया. दीपमाला अपनी मां के घर चली आई. अपने मायके पहुंचने के कुछ दिन बाद ही दीपमाला ने एक बेटे को जन्म दिया. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस के दिनरात नन्हे अंशुल के साथ बीतने लगे. 4 दिन दीपमाला और बच्चे के साथ रह कर भूपेश औफिस में जरूरी काम की बात कह कर लौट आया. दीपमाला के न रहने पर वह अब बिलकुल आजाद पंछी था. उस की और उपासना की प्रेमलीला परवान चढ़ रही थी. औफिस में लोग उन के बारे में दबीछिपी बातें करने लगे थे, मगर भूपेश को अब किसी की परवाह नहीं थी. वह हर हालत में उपासना का साथ चाहता था.
कुछ महीने बीते तो दीपमाला ने भूपेश को फोन कर के बताया कि वह अब घर आना चाहती है. जवाब में भूपेश ने दीपमाला को कुछ दिन और आराम करने की बात कही. दीपमाला को भूपेश की बात कुछ जंची नहीं, मगर उस के कहने पर वह कुछ दिन और रुक गई. 3 महीने बीतने को आए, मगर भूपेश उसे लेने नहीं आया तो उस ने भूपेश को बताए बिना खुद ही आने का फैसला कर लिया.
दरवाजे की घंटी पर बड़ी देर तक हाथ रखने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो दीपमाला को फिक्र होने लगी. ‘आज इतवार है. औफिस नहीं गया होगा. दरवाजे पर ताला भी नहीं है. इस का मतलब कहीं बाहर भी नहीं गया है. तो फिर इतनी देर क्यों लग रही है उसे दरवाजा खोलने में?’ वह सोचने लगी.
कंधे पर बैग उठाए और एक हाथ से बच्चे को गोद में संभाले वह अनमनी सी खड़ी थी कि खटाक से दरवाजा खुला.
एक बिलकुल अनजान लड़की को अपने घर में देख दीपमाला हैरान रह गई. वह कुछ पूछ पाती उस से पहले ही उपासना बिजली की तेजी से वापस अंदर चली गई. भूपेश ने दीपमाला को यों इस तरह अचानक देखा तो उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उस के माथे पर पसीना आ गया.
उस का घबराया चेहरा और घर में एक पराई औरत को अपनी गैरमौजूदगी में देख दीपमाला का माथा ठनका. गुस्से में दीपमाला की त्योरियां चढ़ गईं. पूछा, ‘‘कौन है यह और यहां क्या कर रही है तुम्हारे साथ?’’
भूपेश अपने शातिर दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा. उपासना उस के मातहत काम करती है, यह बताने के साथ ही उस ने दीपमाला को एक झूठी कहानी सुना डाली कि किस तरह उपासना इस शहर में नई आई है. रहने की कोई ढंग की जगह न मिलने की वजह से वह उस की मदद इंसानियत के नाते कर रहा है.
‘‘तो तुम ने यह मुझे फोन पर क्यों नहीं बताया? तुम ने मुझ से पूछना भी जरूरी नहीं समझा कि हमारे साथ कोई रह सकता है या नहीं?’’
‘‘यह आज ही तो आई है और मैं तुम्हें बताने ही वाला था कि तुम ने आ कर मुझे चौंका दिया. और देखो न मुझे तुम्हारी और मुन्ने की कितनी याद आ रही थी,’’ भूपेश ने उस की गोद से ले कर अंशुल को सीने से लगा लिया. दीपमाला का शक अभी भी दूर नहीं हुआ कि तभी उपासना बेहद मासूम चेहरा बना कर उस के पास आई.
‘‘मुझे माफ कर दीजिए, मेरी वजह से आप लोगों को तकलीफ हो रही है. वैसे इस में इन की कोई गलती नहीं है. मेरी मजबूरी देख कर इन्होंने मुझे यहां रहने को कहा. मैं आज ही किसी होटल में चली जाती हूं.’’
‘‘इस शहर में बहुत से वूमन हौस्टल भी तो हैं, तुम ने वहां पता नहीं किया?’’ दीपमाला बोली.
‘‘जी, हैं तो सही, लेकिन सब जगह किसी जानपहचान वाले की गारंटी चाहिए और यहां मैं किसी को नहीं जानती.’’
भूपेश और उपासना अपनी मक्कारी से दीपमाला को शीशे में उतारने में कामयाब हो गए. दीपमाला उन दोनों की तरह चालाक नहीं थी. उपासना के अकेली औरत होने की बात से उस के दिल में थोड़ी सी हमदर्दी जाग उठी. उन का गैस्टरूम खाली था तो उस ने उपासना को कुछ दिन रहने की इजाजत दे दी.
भूपेश की तो जैसे बांछें खिल गईं. एक ही छत के नीचे पत्नी और प्रेमिका दोनों का साथ उसे मिल रहा था. वह अपने को दुनिया का सब से खुशनसीब मर्द समझने लगा.
दीपमाला के आने के बाद भूपेश और उपासना की प्रेमलीला में थोड़ी रुकावट तो आई पर दोनों अब होशियारी से मिलतेजुलते. कोशिश होती कि औफिस से भी अलगअलग समय पर निकलें ताकि किसी को शक न हो. दीपमाला के सामने दोनों ऐसे पेश आते जैसे उन का रिश्ता सिर्फ औफिस तक ही सीमित हो.
दीपमाला घर की मालकिन थी तो हर काम उस की मरजी से होता था. थोड़े ही अंतराल बाद उपासना उस की स्थिति की तुलना खुद से करने लगी थी. उस के तनमन पर भूपेश अपना हक जताता था, मगर उन का रिश्ता कानून और समाज की नजरों में नाजायज था. औफिस में वह सब के मनोरंजन का साधन थी, सब उस से चुहल भरे लहजे में बात करते, उन की आंखों में उपासना को अपने लिए इज्जत कम और हवस ज्यादा दिखती थी.
समाज में पत्नी का दर्जा क्या होता है, भूपेश और दीपमाला के साथ रहते हुए उसे इस बात का अंदाजा हो गया था. दीपमाला की जो जगह उस घर में थी वह जगह अब उपासना लेना चाहती थी. वह सोचने लगी आखिर कब तक वह भूपेश की खेलने की चीज बन कर रहेगी. कभी न कभी तो भूपेश इस खिलौने से ऊब जाएगा. उपासना को अब अपने भविष्य की चिंता होने लगी.
भूपेश के पास ओहदा और पैसा दोनों थे. उस के साथ रह कर उपासना को अपना भविष्य सुनहरा लग रहा था. उस ने अब अपना दांव फेंकना शुरू किया. वह भूपेश पर दीपमाला को तलाक देने का दबाव डालने लगी. शातिर दिमाग भूपेश को घरवाली और बाहरवाली दोनों का सुख मिल रहा था. वह शादी के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था. उस ने उपासना को कई तरीकों से समझाने की कोशिश की तो वह जिद पर अड़ गई. उस ने भूपेश के सामने शर्त रख दी कि या तो वह दीपमाला को तलाक दे कर उस से शादी करे या फिर वह सदा के लिए उस से अपना रिश्ता तोड़ लेगी.
कंटीली चितवन और मदमस्त हुस्न की मालकिन उपासना को भूपेश कतई नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने उपासना से कुछ दिन की मोहलत मांगी.
एक रात दीपमाला की नींद अचानक खुली तो उस ने पाया भूपेश बिस्तर से नदारद है. दीपमाला को बातचीत की आवाजें सुनाई दीं तो वह कमरे से बाहर आई. आवाजें उपासना के कमरे से आ रही थीं. दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं था. एक झिरी से दीपमाला ने अंदर झांका. बिस्तर पर उपासना और भूपेश सिर्फ एक चादर लपेटे हमबिस्तर थे. दोनों इतने बेखबर थे कि उन्हें दीपमाला के वहां होने का भी पता नहीं चला.
उस दृश्य ने दीपमाला को जड़ कर दिया. उस की हिम्मत नहीं हुई कुछ देर और वहां रुकने की. जैसे गई थी वैसे ही उलटे पांव कमरे में लौट आई. आंखों से लगातार आंसू बहते जा रहे थे. उस की नाक के नीचे ये सब हो रहा था और वह बेखबर रही. वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि इतना बड़ा विश्वासघात किया दोनों ने उस के साथ.
दीपमाला के दिल में नफरत का ज्वारभाटा उछाल मार रहा था. उस के आंसू पोंछने वाला वहां कोई नहीं था. दिमाग में बहुत से विचार कुलबुलाने लगे. अगर अभी कमरे में जा कर दोनों को जलील करे तो उस का मन शांत हो और फिर वह हमेशा के लिए यह घर छोड़ कर चली जाए. फिर उसे खयाल आया कि वह क्यों अपना घर छोड़ कर जाए. यहां से जाएगी तो उपासना जिस ने उस के सुहाग पर डाका डाला. अपने सोते हुए बच्चे पर नजर डाल दीपमाला ने खुद को किसी तरह सयंत किया और फिर एक फैसला ले लिया.
दीपमाला को नींद में बेखबर समझ बड़ी देर बाद भूपेश अपने कमरे में लौट आया और चुपचाप बिस्तर पर लेट गया मानो कुछ हुआ ही नहीं.
दूसरी सुबह जब उपासना औफिस के लिए निकली रही थी तभी दीपमाला ने उस का रास्ता रोक लिया. बोली, ‘‘सुनो उपासना अब तुम यहां नहीं रह सकती. इसलिए आज ही अपना सामान उठा कर चली जाओ,’’ दीपमाला की आंखों में उस के लिए नफरत के शोले धधक रहे थे.
‘‘यह क्या कह रही हो तुम? उपासना कहीं नहीं जाएगी,’’ भूपेश ने बीच में आते हुए कहा.
‘‘मैं ने बोल दिया है. इसे जाना ही होगा.’’
भूपेश की शह पा कर उपासना भूपेश के साथ खड़ी हो गई तो दीपमाला के तनबदन में आग लग गई.
एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी, उपासना की ढिठाई देख कर दीपमाला से रहा नहीं गया. गुस्से की ज्वाला में उबलती दीपमाला ने उपासना की बांह पकड़ कर उसे लगभग धकेल दिया.
तभी एक जोरदार तमाचा दीपमाला के गाल पर पड़ा. वह सन्न रह गई. एक दूसरी औरत के लिए भूपेश उस पर हाथ उठा सकता है, वह सोच भी नहीं सकती थी. उस की आंखें भर आईं. भूपेश के रूप में एक अजनबी वहां खड़ा था उस का पति नहीं.
किसी जख्मी शेरनी सी गुर्रा कर दीपमाला बोली, ‘‘सब समझती हूं मैं. तुम इसे यहां क्यों रखना चाहते हो… कल रात अपनी आंखों से देख चुकी हूं तुम दोनों की घिनौनी करतूत.’’
मर्यादा की सारी हदें तोड़ते हुए भूपेश ने दीपमाला के सामने ही उपासना की कमर में हाथ डाल दिया और एक कुटिल मुसकान उस के होंठों पर आ गई.
‘‘चलो अच्छा हुआ जो तुम सब जान गई, तो अब यह भी सुन लो मैं उपासना से शादी करने वाला हूं और यह मेरा अंतिम फैसला है.’’
दीपमाला अवाक रह गई. उसे यकीन हो गया भूपेश अपने होशोहवास में नहीं है. जो कुछ कियाधरा है उपासना का किया है.
‘‘तुम अपने होश में नहीं हो भूपेश… यह हम दोनों के बीच नहीं आ सकती… मैं तुम्हारी बीवी हूं.’’
‘‘तुम हम दोनों के बीच आ रही हो. मैं अब तुम्हारे साथ एक पल भी नहीं रहना चाहता,’’ भूपेश ने बिना किसी लागलपेट के दोटूक जवाब दिया.
दीपमाला अपने ही घर में अपराधी की तरह खड़ी थी. भूपेश और उपासना एक पलड़े में थे और उन का पलड़ा भारी था.
जिस आदमी के साथ ब्याह कर वह इस घर में आई थी, वही अब उस का नहीं रहा तो उस घर में उस का हक ही क्या रह जाता है.
बसीबसाई गृहस्थी उजड़ चुकी थी. भूपेश ने जब तलाक का नोटिस भिजवाया तो दीपमाला की मां और भाई का खून खौल उठा. वे किसी भी कीमत पर भूपेश को सबक सिखाना चाहते थे, जिस ने दीपमाला की जिंदगी से खिलवाड़ किया. रहरह कर दीपमाला को वह थप्पड़ याद आता जो भूपेश ने उसे उपासना की खातिर मारा था.
दीपमाला के दिल में भूपेश की याद तक मर चुकी थी. उस ने ठंडे लहजे में घर वालों को समझाबुझा लिया और तलाकनामे पर हां की मुहर लगा दी. जिस रिश्ते की मौत हो चुकी थी उसे कफन पहनाना बाकी था.