उस दिन दिलीप को कितनी खुशी हुई थी कि वह अपने बेटे अमित के डाक्टर बनने के सपने को पूरा कर पाएगा। आईएससी करने के बाद 1 साल अमित ने जम कर मैडिकल ऐंट्रैंस की तैयारी की थी। 1 वर्ष उस ने बीएससी में ऐडमिशन भी नहीं कराया था। पर जब सफलता नहीं मिली थी तो उस ने बीएससी में ऐडमिशन ले लिया था। पर तैयारी मैडिकल ऐंट्रैंस की ही करता रहा था।
दूसरे प्रयास में भी सफलता नहीं मिली थी। और यही परिणाम रहा था तीसरे प्रयास में भी। बस संतोष की बात यही थी की हर बार कटऔफ मार्क्स के ज्यादा नजदीक होता गया था वह। पर इस से ऐडमिशन तो नहीं मिलना था। निराश हो अमित ने अपना ध्यान बीएससी पर लगा दिया था। जितना दुख अमित को था उतना ही दुख दिलीप को भी था। उस की भी चाहत थी कि उस का बेटा डाक्टर बने। पर कुछ भी किया नहीं जा सकता था।
फरवरी में उस के पास किसी व्यक्ति ने कौल किया था। उस ने खुद को मैडिको हैल्प डेस्क का कर्मचारी बताया था। उस ने उसे आश्वस्त किया था कि वह उस के बेटे को एमबीबीएस में ऐडमिशन दिलवा देगा। इस के लिए उस ने 2 विकल्प सुझाए थे। महाराष्ट्र के कालेज में नामांकन के लिए ₹90 लाख और कर्नाटक के कालेज में नामांकन के लिए ₹95 लाख का भुगतान करना था। अफरात पैसे तो थे नहीं उस के पास कि कितने भी पैसे लगे दे देगा इसलिए ₹5 लाख कम होने के कारण उस ने महाराष्ट्र में ऐडमिशन करवाना बेहतर समझा।