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‘‘मैं डरने लगा हूं अब उस से. उस का व्यवहार अब बहुत पराया सा हो गया है. पिछले दिनों उस ने यहां एक फ्लैट खरीदा है पर उस ने मुझे बताया तक नहीं. सादा सा समारोह किया और गृहप्रवेश भी कर लिया पर मुझे नहीं बुलाया.’’ ‘‘अगर बुलाता तो क्या तुम जाते? तुम तो उस के उस छोटे से फ्लैट में भी दस नुक्स निकाल आते. उस की भी खुशी में सेंध लगाते...अच्छा किया उस ने जो तुम्हें नहीं बुलाया. जिस तरह तुम उसे अपना महल दिखा कर खुश हो रहे थे उसी तरह शायद वह भी तुम्हें अपना घर दिखा कर ही खुश होता पर वह समझ गया होगा कि उस की खुशी अब तुम्हारी खुशी हो ही नहीं सकती. तुम्हारी खुशी का मापदंड कुछ और है और उस की खुशी का कुछ और.’’

‘‘मन बेचैन क्यों रहता है यह जानने के लिए कल मैं पंडितजी के पास भी गया था. उन्होंने कुछ उपाय बताया है,’’ विजय बोला. ‘‘पंडित क्या उपाय करेगा? खुशी तो मन के अंदर का सुख है जिसे तुम बाहर खोज रहे हो. उपाय पंडित को नहीं तुम्हें करना है. इतने बडे़ महल में तुम चैन की एक रात भी नहीं काट पाए क्योंकि इस की एकएक ईंट कर्ज से लदी है. 100 रुपए कमाते हो जिस में 80 रुपए तो कारों और घर की किस्तों में चला जाता है. 20 रुपए में तुम इस महल को संवारते हो. हाथ फिर से खाली. डरते भी हो कि अगर आज तुम्हें कुछ हो जाए तो परिवार सड़क पर न आ जाए.

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