Best Hindi Story : ‘जब मैं बादल बन जाऊं, तुम बारिश बन जाना. जो कम पड़ जाएं सांसें, मेरा दिल बन जाना.’
एक गाने की इन पंक्तियों को गाते हुए सुरेंद्र शिखा के बालों में उंगलियां फंसाता है और शरारती नजरों के साथ उस को को छेड़ता है.
"हटो जी, आज क्या सूझी है तुम्हें जो तुम यों गाना गा रहे हो? कुछ अपनी उम्र का भी खयाल रखो. तुम कालेज वाले लड़के नहीं रहे, 2 बच्चों के पिता बन चुके हो." शिखा ने सुरेंद्र के हाथों को अपने बालों से हटाते कहा.
सुरेंद्र और शिखा जवानी की दहलीज पार कर चुके थे और अधेड़ उम्र में ही बुढ़ापा हौले से अपनी आमद का एहसास कराने लगा था. उन के एक बेटा और एक बेटी थी. दोनों बच्चों से उन की दुनिया गुलजार थी. सुरेंद्र रांची यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर था और अभी दोतीन वर्ष ही हुए थे यहां ट्रांसफर हुए. इस कारण दोनों पतिपत्नी रांची में ही रहते थे.
आज रविवार की छुट्टी थी तो सुरेंद्र शिखा को अपनी चुहलबाजियों से परेशान कर रहा था और शिखा का चेहरा देख मुसकरा रहा था. "यह गाना न गाऊं तो फिर क्या गाऊं, बीते जमाने वाला-ऐ मेरी जोहरा जबीं, तुझे मालूम नहीं...," यह गुनगुनाते हुए सुरेंद्र हंसने लगता है.
"सुबहसुबह तुम सठिया गए हो," कहते हुए शिखा चाय बनाने के लिए उठने लगी. मगर सुरेंद्र ने उसे खींच कर पास बिठा लिया.
"ओफ्फो, जब देखो तब किचन में जाने को तैयार रहती है. आज मेरी छुट्टी है और साथ में घर के काम से तुम्हारी भी छुट्टी. आज कामवाली को भी फोन कर के न आने का कह दो. संडे उस की भी छुट्टी," सुरेंद्र ने कहा.
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