जब से जस्टिस लोढ़ा समिति ने सुप्रीम कोर्ट को क्रिकेट से संबंधित रिपोर्ट सौंपी है तब से बीसीसीआई के अधिकारियों, सरकार के मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों की नींद गायब है. बीसीसीआई के आकाओं ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है. उन्होंने बोर्ड से संबद्ध सभी इकाइयों को पत्र लिख कर राय मांगी है कि वे अपनी राय बताएं वरना उन्हें अब यहां से बाहर कर दिया जाएगा.
लोढ़ा समिति के विरोध में अपनी आवाजें वही बुलंद कर रहे हैं जो वर्षों से खेल संघों में अपना दबदबा बनाए हुए हैं और उन की राजनीति से पूरा खेल चौपट हो चुका है. खेलों के जरिए अपनी तिजोरियां भरने वाले कोई और नहीं, बल्कि वही घाघ लोग हैं जो देश को चलाने का दंभ भरते हैं. देश को तो ये लोग लूट ही रहे हैं, अब वे सब से अमीर संस्था बीसीसीआई में भी कुंडली मार कर वर्षों से बैठे हुए हैं. वे क्रिकेट को कारोबार बना कर उस से मालामाल हो रहे हैं.
लोढ़ा समिति की प्रमुख सिफारिशें :
– किसी राजनीतिज्ञ को क्रिकेट संस्था का हिस्सा नहीं होना चाहिए.
– पदाधिकारियों की उम्र 70 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए.
– बीसीसीआई में एक राज्य का एक ही मत होना चाहिए.
– आईपीएल और बीसीसीआई के अलगअलग गवर्निंग काउंसिल हों.
– बीसीसीआई को सूचना अधिकार कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए.
– इन-बिल्ट मैकेनिज्म तैयार कर सट्टेबाजी को वैध कर दिया जाए.
अगर सुप्रीम कोर्ट लोढ़ा समिति की सिफारिश मान ले तो इन की जेबें गरम नहीं होंगी, इसलिए ये सभी तिलमिलाए हुए हैं और विरोध करने के लिए एकजुट होने लगे हैं. शरद पवार की अगुआई वाले मुंबई क्रिकेट संघ ने तो स्पष्ट कर भी दिया है कि वह पारदर्शिता और मुद्दे पर समर्थन तो करेगा पर बाकी चीजों पर एमसीए सहज नहीं है.
बीसीसीआई में हमेशा से दबदबा बड़े उद्योगपतियों का या फिर राजनेताओं का रहा है पर लोढ़ा समिति ने बीसीसीआई की कार्यप्रणाली में चारचांद लगाने के लिए बड़े बदलावों की सिफारिश की है तो इन के पेट में दर्द उठ रहा है. यानी ये नहीं चाहते हैं कि क्रिकेट का भला हो. इस का सीधा सा मतलब है कि बीसीसीआई में इन का वर्चस्व खत्म हो जाएगा, जो ये नहीं चाहते हैं.
लोढ़ा समिति की सिफारिश में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रीय खिलाडि़यों का चुनाव सिर्फ वही कर सकते हैं जो पूर्व टैस्ट खिलाड़ी हों, उन के पास गहरी जानकारी के साथसाथ अनुभव भी होते हैं और इस के 5 चयनकर्ताओं के बजाय सिर्फ 3 ही रहें. अभी तक खिलाडि़यों के चुनाव ऐसे व्यक्ति करते आए थे जिन्होंने न तो कभी क्रिकेट खेला और न ही उन्हें कोई गहरी जानकारी है. लोढ़ा समिति ने ऐसी रिपोर्ट की सिफारिश यों ही नहीं कर दी, इस के लिए न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा ने कई क्रिकेटरों व जानकारों से बातचीत की है, छोटीछोटी बातों को ले कर चर्चा की है और तब क्रिकेट की बेहतरी के लिए यह सुझाव दिए हैं. ऐसे में बीसीसीआई के पदाधिकारियों को इस का समर्थन करना चाहिए, न कि विरोध. एक तो ज्यादातर सरकारी कमजोरियां गठन के बाद सही निष्कर्ष पर पहुंचती नहीं, और जो पहुंचती हैं उन्हें रसूखदार अपने प्रभाव से दबा देते हैं. ऐसे में लोढ़ा समिति की सिफारिशों पर कितना गौर फरमाया जाता है, जटिल प्रश्न है.