फीफा वर्ल्ड कप में भले ही भारत की भागीदारी न हो लेकिन लोगों में फुटबाल की दीवानगी ऐसी है कि मानो यह खेल भारत में ही हो रहा हो. भारत को वर्ष 1950 में ब्राजील की मेजबानी में वर्ल्ड कप खेलने का मौका तो मिला था लेकिन उस ने वह मौका गंवा दिया, क्योंकि उस दौरान भारतीय टीम के खिलाड़ी नंगे पांव खेलते थे जो अंतर्राष्ट्रीय फुटबाल नियमों के खिलाफ था. उस के बाद भारत के फुटबाल संघ ने सभी खिलाडि़यों के लिए जूता पहनना अनिवार्य कर दिया. तब से भारतीय खिलाडि़यों ने इस की आदत डाल ली और अपने खेल स्तर को बेहतर करने के लिए जीतोड़ मेहनत की. 4 वर्ष मेहनत करने के बाद फुटबाल महासंघ को लगने लगा कि अब हम विश्व कप के लिए तैयार हैं. वर्ष 1954 में भारत ने फीफा यानी फैडरेशन इंटरनैशनल डी फुटबाल ऐसोसिएशन के पास आवेदन भेजा कि हमें क्वालिफाइंग राउंड में खेलने की अनुमति दी जाए लेकिन फीफा ने भारत के आवेदन को अस्वीकार कर दिया. भारतीय खिलाडि़यों का सपना चूरचूर हो गया. उस के बाद भारतीय खिलाड़ी घरेलू मैदान पर ही खेलते रहे. 1986 के बाद भारत को कई बार वर्ल्ड कप के क्वालिफाइंग राउंड में खेलने के मौके तो मिले लेकिन एक बार भी वह अपना दमखम नहीं दिखा पाया. लेकिन लगातार 3 बार नेहरू कप जीतने के बाद भारतीय खिलाडि़यों की उम्मीद जगी और 2011 में एशिया कप खेलने का मौका मिला. तब भी यह टीम कुछ खास नहीं कर पाई.

हिमाचल प्रदेश व इलाहाबाद विश्वविद्यालय फुटबाल टीम के कोच इंद्रनील घोष कहते हैं कि भारतीय टीम के फीफा वर्ल्ड कप में नहीं पहुंच पाने के एक नहीं, कई कारण हैं. पिछले कुछ वर्षों से हम लगातार आगे तो बढ़ रहे हैं लेकिन हम से भी अधिक रफ्तार से विश्व स्तर के फुटबाल खिलाड़ी बढ़ रहे हैं. हमें थोड़ा वक्त अभी और लगेगा और भविष्य में हम विश्व कप में भाग ले सकेंगे.

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