एक नए अध्ययन के मुताबिक यदि आप अपनी मानसिक सेहत दुरुस्त रखना चाहते हैं तो सोशल मीडिया पर  निश्चित समय से ज्यादा सक्रिय न रहें. अधिक से अधिक प्रतिदिन 30 मिनट तक का समय आप फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर गुजार सकते हैं. पर इस से अधिक इंवौल्वमेंट आप की मानसिक सेहत पर भारी पड़ सकती है.

सोशल एंड क्लीनिकल साइकोलौजी नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक. दिन में केवल 30 मिनट का समय सोशल मीडिया को देने से हमारी मानसिक सेहत बेहतर रहती है.

यूनिवर्सिटी औफ पेन्सील्वेनिया के शोधकर्ताओं ने कुल 143 अंडरग्रैजुएट स्टूडेंट्स को ले कर एक अध्ययन किया. इन प्रतिभागियों पर 2 ट्रायल किए गए. पहला ट्रायल स्प्रिंग सीजन में और अगला कुछ महीने बाद किया गया. प्रतिभागियों को तीन प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफौर्मस, फेसबुक, इंस्टाग्राम और स्नैपचैट पर 1 सप्ताह तक एक्टिव रहने को कहा गया. इस के बाद प्रतिभागियों की मानसिक सेहत का आकलन 7 फैक्टर्स के आधार पर किया गया. ये फैक्टर्स थे, सामाजिक सहयोग, अकेलापन, खो जाने का डर, सेल्फ एक्सपेक्टेशन, सेल्फएस्टीम, एंजायटी और डिप्रेशन.

इस के बाद प्रतिभागियों को अलगअलग 2 समूहों में बांट कर इन पर 3 सप्ताह तक अध्ययन किया गया.  एक समूह को कहा गया कि वह सोशल मीडिया का प्रयोग पहले जैसा करता रहे तो दूसरे समूह के सदस्यों को 1 दिन में एक प्लेटफार्म पर केवल 10 मिनट तक सक्रिय रहने की अनुमति दी गई.

इस तरह जिन प्रतिभागियों ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल केवल 30 मिनट तक सीमित रखा उन्होंने स्वयं को काफी बेहतर महसूस किया जबकि दूसरे समूह के प्रतिभागी कई तरह की मानसिक परेशानियों के शिकार पाए गए. उन्होंने अवसाद और अकेलापन अधिक महसूस किया.

सोशल साइट्स का बढ़ता जुनून

आज लोग अपने जीवन से जुड़े हर छोटेबड़े खूबसूरत लम्हे को सोशल साइट्स पर शेयर करने लगे हैं. मस्ती भरे पल हो या ग्रुप/ फैमिली आउटिंग, जौब से जुड़े अचीवमेंट्स हो या कोई फैमिली फंक्शन, बच्चों की नटखट अदाएं हो या किसी से बढ़ती नजदीकियां, हर ख़ुशी को दूसरों से शेयर करे बगैर लोगों का दिल नहीं मानता.

इधर दूसरों की हंसती मुस्कूराती जिंदगी देखते देखते हमारे अंदर का खालीपन बढ़ता जाता है. हम अवसाद के शिकार होने लगते हैं. हमारी मानसिक सहनशक्ति घटने लगती है.

झूठी जिंदगी जीते हैं हम

ऐसा नहीं है कि गम या परेशानियां केवल आप की जिंदगी में ही हैं और दूसरे लोग सिर्फ शानदार जिंदगी के मजे ले रहे हैं. हकीकत यह है कि लोग अपने दुख तकलीफ तनाव या परेशानी भरे लम्हों को न के बराबर शेयर करते हैं. जैसे हर कोई फोटो खिंचवाते वक्त मुस्कुराना पसंद करता है ताकि वह खूबसूरत दिख सके, वैसे ही सोशल मीडिया पर लोग केवल अपनी जिंदगी के बेहतर पहलू को ही शेयर करना पसंद करते हैं. झूठी जिंदगी का प्रदर्शन बड़े चाव से करते हैं. कभी भी अपने रोते  झगड़ते या गुमसुम, उदास बैठे चेहरे शेयर करना पसंद नहीं करते.

जब कि हमारा नजरिया अलग होता है. इन तस्वीरों और वीडियोज को देखते हुए हमें महसूस होता है जैसे हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं और दूसरों से कितने पीछे रह गए हैं. यह खलिश हमें मानसिक रूप से कमजोर बनाने लगती है.

दूसरों से तुलना करने की मनोवृत्ति से बचें

व्हाट्सएप, फेसबुक या इंस्टाग्राम पर दूसरों के हंसते खिलखिलाते, एंजौय करते चेहरे कहीं न कहीं हमें अंदर से अकेलेपन का एहसास कराते हैं. न चाहते हुए भी हम दूसरों की खुशहाल जिंदगी से अपनी बदहाल जिंदगी की तुलना करने लगते हैं और अंदर ही अंदर तनाव, एकाकीपन और घुटन महसूस करने लगते हैं.

दूसरों की तस्वीरें और वीडियोज देखते वक्त हम यह नहीं सोचते कि दुख और परेशानी सब की जिंदगी में होते हैं. मगर जब बात दूसरों के साथ शेयर करने की हो तो लोग केवल अपनी जिंदगी के खुशनुमा पलों को ही शेयर करते हैं.

इसलिए बेहतर है कि या तो इस हकीकत को समझते हुए दूसरों की प्रोफाइल देखें या फिर बेवजह सोशल साइट्स पर समय और ऊर्जा बर्बाद करने से बचें. यदि उतना वक़्त आप अपनी जिंदगी और रिश्तो को बेहतर बनाने में लगाएं तो आप की अपनी जिंदगी ज्यादा खूबसूरत हो जाएगी.

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