कुछ लोग अपने काम करने के तरीके, काम करने का जज्बा, शैली आदि के द्वारा समाज में ऐसी पहचान बना लेते हैं कि समाज उन्हें लंबे समय तक भुला नहीं पाता, बल्कि ऐसे लोग समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन जाते हैं. रेलवे सुरक्षा बल की सबइंसपेक्टर रेखा मिश्रा भी मुंबई में ऐसा ही काम कर रही हैं कि लोगों के लिए मिसाल बन चुकी हैं. इतना ही नहीं, इस महिला पुलिस अधिकारी के कारनामों को मराठी की 10वीं कक्षा के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाया जाएगा.
मुंबई ऐसा शहर है जिस की चकाचौंध से प्रभावित हो कर तमाम बच्चे घर से भाग कर यहां पहुंचते हैं. जब वे बच्चे मुंबई पहुंचते हैं तो उन के मन में कई तरह के सपने होते हैं. लेकिन यहां आने वाले सभी बच्चों के सपने पूरे नहीं होते, बल्कि वे धीरेधीरे गलत लोगों के संपर्क में पहुंच जाते हैं. फिर उन से कई तरह के गलत काम कराए जाते हैं, जिस से उन का भविष्य अंधकारमय हो जाता है.
रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की सबइंसपेक्टर रेखा मिश्रा ने एक शाम रेलवे स्टेशन पर कुछ बच्चों को नशे की हालत में देखा तो उन का मन द्रवित हो गया. वह सोचने लगीं कि जब इन बच्चों का जन्म हुआ होगा तो इन के घर में कितनी खुशियां मनाई गई होंगी. उस समय इन के मांबाप कितने खुश हुए होंगे लेकिन इन के गायब होने के बाद इन के मांबाप के दिल पर क्या गुजर रही होगी, इस दुख को वही जानते होंगे.
रेखा मिश्रा ने सोचा कि अगर इन बच्चों को किसी तरह इन के मांबाप तक पहुंचा दिया जाए तो एक तो उन्हें उन का बच्चा मिल जाएगा और दूसरे उन के बच्चों की जिंदगी भी बरबाद होने से बच जाएगी. समाजसेवा का उन का यह आइडिया था तो अच्छा लेकिन काम इतना आसान नहीं था क्योंकि उन्हें ड्यूटी की और भी जिम्मेदारियां निभानी थी.