साल 2016 में निर्देशक राम माधवानी की फिल्म ‘नीरजा’ रिलीज हुई थी. आज पूरे 6 साल बीत चुके हैं लेकिन नीरजा की कहानी कहीं न कहीं सभी के जहन में जिंदा है. नीरजा भनोट की जिंदगी और बलिदान पर आधारित इस बायोपिक में नीरजा भनोट की भूमिका सोनम कपूर ने निभाई.

‘नीरजा’ लोगों को कितनी पसंद आई, कितनी सफल रही, फिल्म में कितना मसाला मिलाया गया, अगर कुछ देर के लिए इन बातों को दरकिनार कर दें तो यह सच है कि नीरजा एक बहादुर लड़की थी और उस ने अपनी जान की परवाह न कर के 359 लोगों की जान बचाई थी.

संदर्भवश हम यहां नीरजा भनोट की असली कहानी प्रस्तुत कर रहे हैं.

नीरजा का जन्म 7 सितंबर, 1963 को चंडीगढ़ में हुआ था. उन के पिता हरीश भनोट हिंदुस्तान टाइम्स के जानेमाने पत्रकार थे. उन के 3 बच्चे थे, 2 लडक़े अखिल और अनीश तथा एक बेटी नीरजा. एकलौती बेटी होने की वजह से नीरजा अपनी मां रमा भनोट और पिता हरीश भनोट की बहुत लाडली थी. पतिपत्नी उसे बेटों से भी ज्यादा चाहते थे, इसीलिए वे उसे लाडो कहते थे. नीरजा की शिक्षा चंडीगढ़ के सेक्रेड हार्ट कान्वेंट से शुरू हुई.

मार्च, 1974 में जब नीरजा करीब साढ़े 10 साल की थी और छठी कक्षा में पढ़ रही थी, हरीश भनोट का तबादला मुंबई हो गया. मुंबई में हरीश भनोट ने बेटी का दाखिला ख्यातनाम बौंबे स्कौटिश स्कूल में कराया. हाईस्कूल पास कर लेने के बाद नीरजा ने सेंट जेवियर कालेज में एडमिशन लिया और वहां से अर्थशास्त्र और सामाजिक विज्ञान विषयों से स्नातक की डिग्री ली.

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