अपने कुदरती खजाने के लिए मशहूर शांत राज्य केरल में शादी का एक ऐसा मामला गरमाया हुआ है, जिस ने ‘लव जिहाद’ के जिन को बोतल से दोबारा बाहर निकाल दिया है. हालांकि वह जिन भी शर्मिंदा है कि प्यार जैसी पाक चीज को समाज की नाक की खातिर क्यों बारबार बलि का बकरा बनाया जाता है?
मामला कुछ यों है कि केरल के कोट्टायम जिले के टीवीपुरम इलाके की रहने वाली अखिला अशोकन ने एक मुसलिम नौजवान शफीन से निकाह करने के लिए अपने धर्म को बदला और हादिया बन कर उस की जीवनसंगिनी बन गई.
हादिया और शफीन ने निकाह तो कर लिया था, पर उन के आगे की राह कांटों भरी थी, क्योंकि हादिया के पिता अशोकन ने इस मामले को ‘लव जिहाद’ का नाम दे कर केरल हाईकोर्ट का रुख कर लिया था.
अशोकन ने यह आरोप लगाया कि उन की बेटी अखिला यानी हादिया से जबरदस्ती धर्म बदलवाया गया है और उसे ले कर चिंता जताई कि हादिया को आतंकवादी संगठन आईएस में शामिल कराने के लिए सीरिया भेज दिया जाएगा. यह भी कहा जा रहा है कि इसलामिक स्टेट ने हादिया को अपने यहां भरती किया है, शफीन तो मुहरा भर है.
बता दें कि निकाह के बाद शफीन हादिया को मस्कट ले जाने वाले थे, जहां उन के मातापिता भी रहते हैं, लेकिन चूंकि हादिया यानी अखिला के पिता अशोकन अदालत का दरवाजा खटखटा चुके थे, इसलिए अदालत ने शफीन के हादिया के साथ मस्कट जाने पर रोक लगा दी.
इतना ही नहीं, केरल हाईकोर्ट ने इस शादी को गैरकानूनी करार देते हुए इसे ‘लव जिहाद’ बताया और हादिया को उस के परिवार वालों के हवाले कर दिया. साथ ही, 16 अगस्त को मामले की जांच नैशनल इनवैस्टिगेशन एजेंसी को सौंप दी.
केरल हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देने के लिए शफीन ने सुप्रीम कोर्ट से नैशनल इनवैस्टिगेशन एजेंसी की जांच को बंद करने की गुजारिश करते हुए एक याचिका दायर की थी, जिस में एजेंसी पर निष्पक्ष जांच नहीं करने का आरोप लगाया गया था.
उस याचिका के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हादिया के पिता अशोकन को नसीहत देते हुए कहा था कि उन्हें अपनी बेटी की निजी जिंदगी में दखलअंदाजी करने का कोई हक नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, लड़की की उम्र 24 साल है और उसे अपने भविष्य के बारे में फैसला करने का पूरा हक है. मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की पीठ ने सवाल उठाया कि यह मामला ‘लव जिहाद’ का है या नहीं, यह बाद की बात है, लेकिन क्या हाईकोर्ट के पास संविधान के अनुच्छेद 226 में दिए गए अधिकार का इस्तेमाल कर के इस शादी को खारिज करने का हक है?
पीठ ने इस मामले की जांच नैशनल इनवैस्टिगेशन एजेंसी द्वारा कराने के आदेश के मुद्दे पर भी सवाल खड़ा किया. साथ ही, कोर्ट ने लड़की का ब्रेनवाश करने की संभावनाओं को तलाशने का निर्देश दिया.
इधर नैशनल इनवैस्टिगेशन एजेंसी ने बताया कि केरल में कई कट्टरपंथी समूह लोगों का धर्म बदलवाने की कोशिश में लगे हैं और वे ताजा मुसलिम बने लोगों को जिहाद के नाम पर अफगानिस्तान और सीरिया भेज रहे हैं. हादिया के मामले में भी ऐसा ही होने का शक जताया गया.
जब हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच की, तो पाया कि अशोकन की नई याचिका के बाद हादिया की जल्दबाजी में शादी करा दी गई थी. ऐसा भी लगा कि हादिया को अपने होने वाले पति के बारे में कोई खास जानकारी नहीं थी. हादिया का धर्म बदलवाने वाली औरत की संदिग्ध और आपराधिक गतिविधियों की बात भी कोर्ट के सामने आई.
जज इस नतीजे पर भी पहुंचे थे कि हादिया का दिमाग अपने काबू में नहीं है. उस पर कट्टरपंथ का इतना गहरा असर है कि वह सहीगलत सोचने की हालत में नहीं है.
नतीजतन, इसी साल 25 मई को हाईकोर्ट ने इस निकाह को गैरकानूनी मानते हुए रद्द कर दिया और माना कि इस शादी की कानून की नजर में कोई अहमियत नहीं है.
हादिया और शफीन के निकाह का मामला तो ‘लव जिहाद’ की तलवार पर बड़ी अदालतों में लटका हुआ है, लेकिन हमारे देश में अपनी जातबिरादरी या धर्म से बाहर प्यार और उस के बाद शादी करने वाले जोड़ों पर सितम ढाने वाली गांवों की पंचायतें भी किसी से कम नहीं हैं.
बात साल 2016 की है. बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के महेशवारा गांव में एक लड़के को गांव की ही एक लड़की से प्यार हो गया और 14 दिसंबर को वे दोनों गांव से भाग कर एक रिश्तेदारी में चले गए और शादी कर ली.
पता चलने पर लड़की के पिता और गांव वाले उन्हें वापस गांव ले आए और 17 दिसंबर की रात को पंचायत हुई. लड़के ने लड़की के साथ रहने की इच्छा जताई, तो पंचायत ने तालिबानी फैसला सुनाते हुए गांव से बाहर शादी करने को कहा और गांव में रहने के एवज में
51 हजार रुपए और 5 मन चावलदाल देने की सजा सुनाई.
लड़के के घर वालों ने यह शर्त मानने से इनकार कर दिया, तो दबंगों ने लड़कालड़की को जम कर पीटा और गांव से बाहर निकाल दिया.
साल 2013 में छत्तीसगढ़ में एक दलित लड़के द्वारा अंतर्जातीय शादी करने पर उसे कड़ी सजा मिली. दरअसल, रामगढ़ जिले के कोसमंदा गांव के निर्मल सारथी ने दूसरी जाति की एक लड़की सुमन से अगस्त, 2010 में घर वालों को बिना बताए घर से भाग कर शादी कर ली थी.
इस के बाद सारा गांव नाराज हो गया. पंचायत बैठी, तो निर्मल सारथी की मां रामबाई और छोटे भाई को बुलाया गया और उन की पिटाई की गई. वे दोनों किसी तरह अपनी जान बचा कर भागे.
अगले दिन रामबाई अपने परिवार वालों के साथ थाने पहुंची, पर उन लोगों की रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई. पुलिस सुपरिंटैंडैंट और कलक्टर से भी शिकायत की गई, पर कोई फायदा नहीं हुआ.
उधर गांव की पंचायत ने अंतर्जातीय शादी करने वाले निर्मल सारथी और उस के परिवार वालों को गांव में नहीं रहने का लिखित फरमान जारी कर दिया.
इस सिलसिले में वहां के विधायक शुक्राजीत नायक का कहना था, ‘‘एक विधायक होने के नाते मैं अंतर्जातीय शादी के हक में हूं, लेकिन आप को समझना होगा कि जाति और समाज की पंचायत को किनारे कर के ऐसा कुछ करना मुमकिन नहीं है. किसी को अगर शादी करनी है, तो इस में सब की रजामंदी होनी चाहिए.’’
निर्मल सारथी से शादी करने वाली सुमन का मानना था, ‘‘हम ने कोई गुनाह नहीं किया है. हम बालिग हैं, लेकिन हमारे चलते मेरे पति के परिवार वालों को सताया जा रहा है. गांव में मेरे परिवार वालों और दूसरी बड़ी जातियों के डर के चलते कोई भी हमारी मदद नहीं कर रहा है.’’
हालांकि बाद में कुछ सामाजिक संगठनों के दखल से निर्मल सारथी और सुमन गांव लौट आए, लेकिन उन्हें बाद में भी तरहतरह से सताने की कोशिश की गई.
बिहार के समस्तीपुर जिले में एक प्रेमी जोड़े को अंतर्जातीय शादी करना महंगा पड़ गया. वहां के मोहिउद्दीन नगर थाना क्षेत्र के नगर बाजार की महादलित परिवार की लड़की विभा कुरसाहा गांव के एक लड़के राजवल्लभ राय से प्यार करती थी. उन दोनों ने
27 अगस्त, 2016 को शादी कर ली थी. लेकिन नाराज पंचायत ने उन्हें गांव छोड़ देने का फरमान सुना डाला और उन के साथ मारपीट की.
ये तो चंद उदाहरण हैं. कई मामलों में तो इस तरह की शादियों में औनर किलिंग तक हो जाती है. शादी के बाद लड़का और लड़की को भाईबहन की तरह रहने की सजा सुनाई जाती है, चाहे वे एक बच्चे के मांबाप बन चुके हों. दूसरे धर्म में शादी या किसी दूसरी बिरादरी में गठबंधन कर लेना पंचायतों को इतना खलता है कि वे अपने हाथ खून से रंग लेती हैं.
औनर किलिंग के मामले में हरियाणा बदनाम रहा है. उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार समेत दूसरे राज्यों में भी ऐसी शादी करने वालों पर कहर बरपाने वाली पंचायतें बैठी हैं, जिन की फूली नाक ऐसे रिश्तों को कतई बरदाश्त नहीं करती है.
दुख की बात तो यह है कि पंचायतें सरेआम अपराध करती हैं या अपराध करने के लिए उकसाती हैं, इस के बावजूद सरकार और पुलिस प्रशासन इन के खिलाफ कोई कड़ी कार्यवाही नहीं कर पाते हैं या ऐसा करने से बचते हैं.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी इन पंचायतों की वकालत करते हुए इन्हें समाज सुधार का अहम हथियार बता देते हैं.
सवाल उठता है कि ऐसी क्या वजह है, जो ऐसी शादियों के खिलाफ वे ही लोग खड़े हो जाते हैं, जिन से इंसाफ पाने की उम्मीद की जाती है?
दरअसल, चाहे आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, लेकिन हमारे देश के ज्यादातर लोगों की सोच रूढि़वादी मानसिकता से ऊपर नहीं उठ पाई है. ऐसी शादियों को वे अपनी आन, बान और शान पर बट्टा लगा मानते हैं और उन के खिलाफ जा कर शादी करने वालों की वे हत्या कर देने में झिझक महसूस नहीं करते हैं.
ज्यादातर मामलों में तो पंचायत का अंदरूनी मामला समझ कर प्रशासन उस से कन्नी काट लेता है. हां, ज्यादा दबाव पड़ता है, तो पुलिस दिखावे के लिए एफआईआर दर्ज कर लेती है, लेकिन उस के बाद कार्यवाही करने से बचती है. कभी कोई पुलिस वाला समाज के खिलाफ जा कर मामले की तह तक पहुंचना भी चाहता है, तो पंचायत की एकजुटता के चलते उसे सुबूत ही नहीं मिल पाते हैं.
अगर ऐसी शादियों को करने वाली लड़कियों के नजरिए से देखा जाए, तो वे बहुत बोल्ड कदम उठाती हैं. उन्हें मालूम होता है कि ऐसा करने की सजा के एवज में उन की जान पर भी बन सकती है. तो क्या लड़कियों के फैसलों को दबाने के लिए मर्दवादी पंचायत उन के सपनों को कुचलने की चाल चलती हैं? एक लड़की हो कर हमारे खिलाफ जाएगी, इसे तो सजा मिलनी ही चाहिए, पंचायतों की यही सोच उन्हें गांव से बेदखल करने, आबरू लूटने या जान से मार देने के बेतुके फरमान सुना देती हैं, ताकि और लड़कियां ऐसा कदम उठाने से पहले सौ बार सोचें.
पंचायतों की इस तानाशाही का इलाज क्या है? झूठी शान दिखाने के लिए 2 हंसतेखेलते लोगों की जिंदगी मुहाल कर देने में कौन सी मर्दानगी है? इस का सब से आसान इलाज तो यही लगता है कि जनता में ऐसी शादियों को ले कर जागरूकता आनी चाहिए, पर ऐसा करना भी टेढ़ी खीर है, क्योंकि पंचायतों से ज्यादा तो वे परिवार आगबबूला होते हैं, जिन के बच्चों ने यह हिम्मती कदम उठाया होता है.
पंचायतों में घर के लोग ही अपनी औलाद की फजीहत ज्यादा करते हैं. शर्म की बात तो यह है कि ऐसी दरिंदगी होने के बावजूद कोई पीडि़त को बचाने का जोखिम नहीं उठाता है.
सख्त कानून बना कर ऐसे मामलों को रोका जा सकता है, लेकिन उस में पुलिस प्रशासन का सहयोग होना बहुत जरूरी है. वह पुख्ता सुबूत जुटाए, लड़कालड़की को सिक्योरिटी दे, मांबाप व पंचायत को समझाए, तो ऐसी शादियों को ले कर होने वाले अपराधों में भी कमी आ सकती है.
इस के अलावा सियासी दलों को भी ऐसी शादियों को बढ़ावा देने में पहल करनी चाहिए. सरकार चाहे तो कुछ भी कर सकती है. उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल सरकार अंतर्जातीय शादी करने वाले जोड़ों को 50 हजार रुपए बतौर उपहार देती है. तमिलनाडु में ऐसा करने वाले जोड़ों को सरकारी नौकरी में मदद मिलती है.
जब भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे ‘राष्ट्रहित’ में सही मानते हुए मान्यता दे दी है, तो छोटी पंचायतों को देश की सब से बड़ी पंचायत का सम्मान करना चाहिए, तभी इस देश से सही माने में जातिवाद की बुराई दूर हो पाएगी.