गीता एक ऐसी गुत्थी का नाम है, जो सुलझाने की कोशिशों में इतनी उलझती जा रही है कि कभीकभी  तो लगता है, कहीं इंसानियत के नाम पर हम उस पर जुल्म तो नहीं ढा रहे हैं.

हालांकि इस बात से इत्तफाक रखने वालों की तादाद न के बराबर ही होगी क्योंकि हर किसी की आदत किसी भी घटना या व्यक्ति को मीडिया और सरकारी नजरिए से देखने की पड़ती जा रही है. गीता इसी नजरिए की कैद में छटपटाती आज भी अपनी पहचान की मोहताज है. इस की जिम्मेदारी लेने के लिए किसी न किसी को आज नहीं तो कल सामने आना ही होगा.

कौन है गीता, क्या है उस की कहानी और क्यों रचा गया था उस के स्वयंवर का ड्रामा, यह सब जानने से पहले गीता की कहानी को जानना जरूरी है. गीता के अतीत को 2 भागों में बांट कर देखा जाना सहूलियत वाली बात होगी.

उस की जिंदगी का दूसरा अतीत जो ज्ञात है, वह साल 2003-04 से शुरू होता है, जिस की ठीकठाक तारीख किसी को नहीं मालूम. इस के पहले गीता क्या थी, यह वह खुद भी नहीं जानती. चूंकि उस का पहला अतीत अज्ञात है, इसलिए स्वाभाविक रूप से वह रहस्यरोमांच से भरा है. जिस के चक्रव्यूह में खुद गीता अभिमन्यु की तरह फंसी हुई है.

ईधी फाउंडेशन ने बेटी की तरह पाला गीता को

भारत और पाकिस्तान के संबंध विभाजन के बाद से बारूद के ढेर पर सुलगते रहे हैं, जिन में से कभी दोस्ती की महक नहीं आई. दोनों देशों के लोग एकदूसरे को कट्टर दुश्मन मानते हैं. इस धर्मांधता और कट्टरवाद से इतर इत्तफाक से यहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वाकई मानवता के लिए जीतेमरते हैं.

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