आज एक नई बाजार संस्कृति का प्रसार तेजी से हो रहा है. हर शहर में मौल्स खुल रहे हैं. साथ ही मल्टीप्लैक्स भी हैं, जहां खरीदारी से पहले या बाद में फिल्म देखी जा सकती है. हां, यह बात अलग है कि इस के लिए आप को काफी महंगा टिकट खरीदना पड़ता है. इतना ही नहीं, अब तो महंगे रैस्टोरैंट और बार की सुविधाएं भी इस नई बाजार संस्कृति का हिस्सा बन रही हैं.

युवाओं के मन में हमेशा यह चाह रहती है कि वे स्मार्ट बनें. इस चक्कर में वे बाइक से जगहजगह घूमते हैं. मौल्स में जा कर कम कीमत की चीजें खरीदते नजर आते हैं, लेकिन सचाई कुछ और ही होती है.

यह बात जरूर है कि इस संस्कृति के चलते सभी चीजें एक छत के नीचे उपलब्ध हो जाती हैं, लेकिन साथ ही कुसंस्कृति को भी बढ़ावा मिल रहा है और आगे चल कर यह युवाओं को कहां ले जाएगी, कहा नहीं जा सकता. भारतीय युवाओं पर इस के दुष्परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं. यह संस्कृति जीवनयापन की नई समस्या ले कर आई है. हमारा देश सभ्यता और संस्कृति के लिए विख्यात है. आज अमेरिका और इंगलैंड जैसे देश भी हमारी संस्कृति को अपना रहे हैं, लेकिन हमारी युवापीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति दीवानी है.

नई बाजार संस्कृति युवाओं को अपने कब्जे में ले रही है. बड़ी कंपनियां औफर्स दे कर युवाओं को आकर्षित कर रही हैं. ये दूसरी चीजों पर खुले बाजार से अधिक कीमत वसूल कर बड़ी चालाकी से उस की भरपाई कर लेती हैं. युवा आसानी से इन के जाल में फंस जाते हैं. उन्हें लगता है कि बाजार से कम कीमत पर चीजें खरीद कर उन्होंने अच्छा सौदा किया है, लेकिन सचाई कुछ और ही है.

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