गांव की चौहद्दी से बाहर उस ने पहली बार कदम रखा है दिल्ली में. बदन पर मैलीकुचैली फटीचिथड़ी शौल. पति वर्षों से मानसिक रोगी है. पूरे घर और परिवार की जिम्मेदारी है उस पर. गांव में दुनियाजहान से बेखबर पति और 5 छोटे बच्चों को छोड़ कर काफी दिनों से वह दिल्ली में है. एक अनजाने डर और सिहरन को अपने कलेजे में समेटे हुए ठिठुरनभरी रात में सड़क पर सिर झुकाए उकडूं हो कर बैठी है यह औरत. आखिर कौन है यह औरत?

दिल्ली की चलती बस में दरिंदगी से बलात्कार की घटना में मुख्य अभियुक्त नाबालिग राजू की मां है यह औरत. दिसंबर की उस बदनाम रात को चलती बस में गैंगरेप मामले में हुई बेटे की गिरफ्तारी के बाद से यह औरत दिल्ली में थी. अब कहां है, किसी को खबर नहीं. उस का बेटा राजू 6 साल पहले रोजगार तलाशने अपने कुछ दोस्तों के साथ 11 साल की उम्र में गांव से दिल्ली आया था. गांव में आलू के खेत में मजदूरी से पूरे घर का पेट नहीं भर पाता था. इसीलिए बेटे ने कमाने के मकसद से घर छोड़ा और दिल्ली जा पहुंचा. शुरूशुरू में राजू ने बसस्टैंड में बसों को धोनेपोंछने से ले कर ड्राइवरोंकंडक्टरों की जीहुजूरी करने तक का काम किया. फि र गाड़ी में हैल्पर बना. हर महीने 600 रुपए भेजा करता था. तब इस औरत को बेटे में अपना बड़ा सहारा नजर आया था. पर बाद में, पहले पैसे आने बंद हो गए, फि र चिट्ठीपत्री भी.

मां ने सोचा, बेटे की कोई मजबूरी होगी. बहुत छानबीन की पर कुछ पता नहीं चला. फि र एक दिन उस की चौखट पर पुलिस आ कर खड़ी हो गई. उस ने बताया, ‘कालेज की किसी लड़की के साथ बलात्कार के आरोप में उस के बेटे को गिरफ्तार कर लिया गया है,’ यह सुन कर वह एकदम से हताश हो गई.  यह तो दिल्ली की घटना है. दिल्ली चूंकि राजधानी है इसलिए वहां घटी किसी भी घटना का शोर ज्यादा होता है. अन्य शहरों में भी ऐसी घटनाएं घटती रहती हैं, पर पूरा देश बेखबर ही रह जाता है.

आइए, एक नजर अब कोलकाता पर भी डालें. कोलकाता में 5 साल की छोटी सी बच्ची का बलात्कार करने में असफ ल 2 बच्चों ने उस की हत्या कर दी. हत्या के अभियुक्त इन बच्चों की उम्र 10 और 12 साल थी.

कोलकाता के अलीपुर के पास हेस्टिंग में सेना के जवान के रिहायशी कौंप्लैक्स में रहती थी 5 साल की झुमझुम दास. कुछ समय पहले ही वह अपनी मां गौरी दास के साथ इस कौंप्लैक्स में आई थी. अभियुक्त दोनों बच्चों के अभिभावक सेना के आवासीय कौप्ंलैक्स में अधिकारियों के घर बरतनझाड़ूपोंछा का काम करते हैं. गौरी दास इसी कौंप्लैक्स में कर्नल डी के जोशी के यहां काम करती थी. नियमानुसार यहां काम करने वाले नौकरचाकरों को अपने परिवार के साथ अलग से बने क्वार्टर में रहना पड़ता है. इसी कौंप्लैक्स के दूसरे ब्लौक की छत से झुमझुम की लाश मिली थी. इसी ब्लौक के 12 साल के सुमन वैद्य और 10 साल के मोहम्मद जहांगीर पर बच्ची के साथ बलात्कार करने में असफ ल होने के बाद डर से गला दबा कर हत्या करने का आरोप है.

अंधेरे में भविष्य
किशोर अपराध की जब कभी चर्चा हो, सजल बारुई और एक अन्य मामले में सुदीपा पाल की याद बरबस आ ही जाती है. दमदम (कोलकाता) के सजल बारुई (16 साल) ने 5 दोस्तों की मदद से अपने पिता, सौतेली मां और सौतेले भाई की बेरहमी से हत्या कर दी थी. इस खबर से पूरा शहर सकते में आ गया था. बताया जाता है कि बड़े ही ठंडे दिमाग से सजल ने बाकायदा योजना बना कर परिवार के सदस्यों की हत्या चाकू से गोदगोद कर की और उस के बाद सरसों के तेल से उस ने चाकू को साफ किया. फि र पारिवारिक सदस्यों की लाशों और चारों तरफ  फैले खून के बीच अपने दोस्तों के साथ फ्रिज में रखी मिठाइयां डाइनिंग टेबल पर बैठ कर सजल ने खाईं. पूरी योजना को अंजाम देने के बाद पुलिस को गुमराह करने के लिए उस के दोस्त सजल को कुरसी से बांध कर चले गए. ऐसा कर के यह साबित करने की कोशिश की गई थी कि हत्यारे बाहरी लोग थे और उन का मकसद डाका डालना था. लेकिन खुफिया पुलिस को शुरू से ही सजल पर शक था. लेकिन तहकीकात में पुलिस ने पाया कि सौतेली मां और भाई से दुश्मनी निकालने के लिए सजल ने ही इस पूरी घटना को अंजाम दिया. कड़ी जिरह के दौरान सजल टूट गया और उस ने अपना अपराध कुबूल कर लिया. अदालत ने सजल को आजीवन करावास की सजा सुनाई. अभी हाल ही में वह जेल की चारदीवारी से मुक्त हुआ.

किशोर उम्र में अपराध की सजा काटने के बाद भी सजल में कोई सुधार नहीं हुआ है. जेल में रहने के दौरान किडनीजनित समस्या के कारण उसे अस्पताल में भरती किया गया था. लेकिन अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात पुलिस वाले को शराब पिला कर वह भाग गया और मुंबई जा पहुंचा. वहां उस ने ब्याह किया और पत्नी को ले कर वापस आसनसोल पहुंचा था कि पुलिस की गिरफ्त में आ गया. फ रार होने का मामला अलग से चल रहा है. दमदम के सजल बारुई के अलावा किशोर अपराध का एक और मामला उत्तर 24 परगना के नोआपाड़ा में सुदीपा पाल नाम की एक लड़की का है. शादीशुदा ट्यूटर के प्रेम में पड़ कर सुदीपा ने अपने पूरे परिवार को रसगुल्ले में पोटैशियम साइनाइट मिला कर खिला दिया था.

एक और मामले में मामूली बात को ले कर हुए झगड़े के बाद एक किशोर ने अपने दोस्त को मुहल्ले के पोखर में डुबो कर उस के मुंह में जलीय पौधा डाल दम घोट कर मार डाला था. चौथी कक्षा के एक बच्चे ने मूंगफ ली को ले कर हुए झगड़े के बाद दोस्त को ईंटभट्ठे में ले जा कर सिर कुचल कर मार डाला. दक्षिण कोलकाता में चेतला की घटना में किशोर शुभ्रज्योति घोष का मामला भी बड़ा गंभीर है. उस के पिता ने पारिवारिक झगड़े के कारण आत्महत्या कर ली थी. पिता की आत्महत्या के लिए शुभ्रज्योति अपनी बूआ और दादी को जिम्मेदार मानता था. बदले की भावना से शुभ्रज्योति ने स्कूल से जाते समय कालीघाट से हंसिया खरीद कर बैग में रख लिया और स्कूल के बाद सीधे अपने दादा, दादी के घर जा पहुंचा. वहां उस ने खाना खाया, टीवी देखा और वीडियो गेम खेलता रहा. दोपहर में मौका देख कर सब से पहले उस ने बूआ पर हमला किया. बाद में बूआ को बचाने की कोशिश करते दादादादी की भी हत्या कर दी.

बाल अपराध के आंकड़े
राष्ट्रीय बाल अपराध के आंकड़े देखें तो ये बड़े चौंकाने वाले हैं. देश के विभिन्न शहरों में बाल अपराध की घटनाओं में इजाफा हुआ है. राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 2001 में बलात्कार के मामले में 399 किशोर अभियुक्त थे. 10 साल बाद यानी 2011 में यह संख्या 1,419  पहुंच गई. (केवल दिल्ली में 942 है.) हत्या के मामले में 2001 में जो संख्या 51 थी वह 2011 में 888 हो गई. अगर 2011 की बात करें तो उस साल 16-18 साल के उम्र के कुल 21,657 अभियुक्तों की गिरफ्तारियां हुईं. 12-16 साल तक कुल 11,019 और 7 साल से 12 साल तक 1,211 गिरफ्तारियां हुईं. 2011 में कुल 33,387 गिरफ्तारियों में 6,122 निरक्षर पाए गए. प्राथमिक स्तर तक शिक्षाप्राप्त अभियुक्तों की संख्या 12,803 रही. वहीं, माध्यमिक स्तर पर फेल हो जाने वालों की संख्या 10,519 और पास होने वालों की संख्या 4,443 है.

एनसीआरबी के आंकड़ों की मानें तो साल 2003 से 2013 के बीच 10 वर्षों के दौरान करीब 379,283 नाबालिग अपराधियों को गिरफ्तार किया गया. 2013 में 16 से 18 साल के 28,860 बाल अपराधियों को अलगअलग मामलों में पुलिस ने पकड़ा. दिलचस्प तौर पर इन में लड़कियों का प्रतिशत करीब 4.3 था यानी 1,867 लड़कियां बाल अपराध में गिरफ्तार की गईं. सिर्फ 2013 में समूचे देश में 43,506 किशोर अपराधी गिरफ्तार किए गए. इन में मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र का नाम क्रमश: पहले व दूसरे स्थान पर आता है.

आंकड़ों के मुताबिक साल 2003 से 2013 के दरम्यान मध्य प्रदेश में जहां 75,307 बाल अपराधी पकड़े गए वहीं महाराष्ट्र में किशोर अपराधियों की गिरफ्तारी का यह आंकड़ा 72,154 था. बाल अपराध से जुड़े ये आंकड़े वाकई हैरान करने वाले हैं. 

बहस और कानून में बदलाव
इन दिनों पूरे देश में बहस है कि ऐसे दरिंदों को क्या वाकई नाबालिग होने के नाम पर सजा से छूट मिलनी चाहिए? बाल सुधार गृह में रहने के बाद क्या इन में कोई बदलाव आएगा? ऐसे दरिंदों को समाज में रहने का क्या अधिकार दिया जाना चाहिए? इन सवालों का जवाब पाने की कोशिश में एक बार दिल्ली गैंगरेप की शिकार दामिनी की मां के उद्गार पर नजर डाल लेना बेहतर होगा.

पहली बार जब उन्होंने मुंह खोला तो कहा, ‘‘जिस लड़के को सब नाबालिग कह रहे हैं, उसी ने मेरी बेटी को पहले लोहे की रौड से मारा. उस के शरीर में रौड डाल कर आंतों को बाहर निकाल लिया. रो कर जब वह दया की भीख मांग रही थी, तब उस ने गंदीगंदी गालियां दीं. बावजूद इस के, कानून उसे नाबालिग कह कर छूट देगा. यह कैसा न्याय है.’’ और अब यह पूरे देश में चर्चा का विषय है. बाल अपराध के आंकडे़ कहते हैं कि इस पर बहुत पहले समीक्षा की जानी चाहिए थी.

इसी बहस के मद्देनजर नाबालिग कहलाने की उम्र सीमा को 18 से घटा कर 16 वर्ष कर दिए जाने की बाबत देशभर पर लंबी बहस चली. आखिरकार विभिन्न जघन्य अपराधों में नाबालिगों की भागीदारी के मामले में किशोर अपराधियों को वर्ष 2000 के जूवेनाइल जस्टिस ऐक्ट के तहत किसी तरह की राहत का लाभ न दिए जाने पर विभिन्न तबकों की ओर से विशेष जोर दिया गया. 

टीवी व सिनेमा का कुप्रभाव
हाल की कुछ घटनाओं के मद्देनजर मनोचिकित्सक और समाजशास्त्री इन घटनाओं के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विश्लेषण में जुट गए हैं. दिनोंदिन बाल अपराध की बढ़ती घटनाओं के लिए समाजशास्त्री और मनोचिकित्सक फिल्मों, डांस रिऐलिटी शो और धारावाहिकों के जरिए समाज में फैल रही अपसंस्कृति को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. इस संबंध में जूवेनाइल वैलफेयर बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और मनोचिकित्सक डा. हिरण्यमय साहा का कहना है कि पिछले 10 सालों में हमारे देश में हर जगह अपरिपक्व मन में 10.15 फीसदी की दर से हिंसक प्रवृत्ति और यौन अपराध में वृद्धि देखी जा रही है. उन का यह भी कहना है कि बेरोजगारी और अभाव के बीच असहिष्णुता और आपराधिक प्रवृत्ति में लगातार इजाफ ा हो रहा है. खासतौर पर निम्न और निम्नमध्यवर्ग में इस तरह की प्रवृत्ति कुछ अधिक देखने में आ रही है. उन के अनुसार, बच्चों के कोमल मन में आपराधिक प्रवृत्तियों के हावी होने में परोक्ष रूप से टीवी जिम्मेदार है. यह बुद्धू बक्सा हमें महज बुद्धू नहीं बना रहा है, बल्कि हमारे बच्चों के कच्चे मन की गहराइयों में आपराधिक प्रवृत्तियों की जड़ें भी जमा रहा है.

डा. साहा का कहना है कि मनोवृत्ति की बात अगर कहें तो हम सभी के मन में प्रेम, लगाव, खुशी की सकारात्मक प्रवृत्ति की ही तरह राग, द्वेष, क्रोध, हिंसा जैसी नकारात्मक प्रवृत्ति जन्म के साथ मौजूद रहती है. लेकिन माहौल के अनुरूप ये प्रवृत्तियां हम पर हावी होती हैं. इन दिनों समाज में विभिन्न तरह की असमानताओं के बीच बच्चों के मन में हिंसक प्रवृत्ति दबे पांव जडें जमाती जा रही है. टीवी पर अंधविश्वास और भूतप्रेत की कहानियों वाले धारावाहिक दिखाते हैं तो खबरों के चैनलों में भी आपराधिक वारदातों का नाट्य रूपांतर कच्चे मन पर हिंसा के बीज बो देता है. आजकल खबरों के चैनलों से ले कर मनोरंजन चैनलों तक में अपराध व अंधविश्वास सब से अधिक बिकाऊ कार्यक्रम हैं. इन कार्यक्रमों के रास्ते बच्चे वयस्कों की ‘गुप्त’ दुनिया में पहुंच जाते हैं.

डा. हिरण्यमय का कहना है कि ऐसी घटनाएं परिवार में भाईबहनों के बीच भी घटती हैं लेकिन वहां महज यौन जिज्ञासा प्रमुख होती है. ठंडे दिमाग से हत्या जैसी घटना नहीं घटती जो कि इन दोनों के बच्चों के मामले में देखने में आया है. यहां बेरहमी से की गई हत्या की वजह मनोविकार भी हो सकता है.

हाल की इन घटनाओं के मद्देनजर एक और बात उजागर होती है और वह यह है कि 90 के दशक में उदारवादी नीति के चलते आर्थिक सुधार की जो हवा चली उस से देश तथाकथित विकास के रास्ते चल पड़ा. सही माने में विकास की रोशनी समाज के सभी तबकों तक नहीं पहुंची. यही कारण है 2002 में बाल अभियुक्तों की संख्या में बढ़ोतरी हुई थी. और इन दिनों एक बार फि र से आर्थिक सुधार की बयार चल पड़ी है.

बदलाव की जरूरत
मोदी सरकार के आने से भी कुछ खास बदलाव नहीं नजर आ रहा है. बेरोजगारी और महंगाई की मार में गरीब और गरीब होते जा रहे हैं. मध्यवर्ग, निम्नमध्यवर्ग सभी निम्नवर्ग बनने की ओर जा रहे हैं. हर साल कम से कम 20 लाख लोग मजबूरी में गांव से शहरों की ओर निकल पड़ते हैं. अपनी जड़ों से कट कर जब ये लोग शहरों में आते हैं, तब शहरों में इन का ठिकाना गंदी, बदहाल बस्ती में होता है. शहरी चकाचौंध के बीच कमियों का एहसास हताशा को जन्म देता है. तब समाज के प्रति गुस्से के कारण जानेअनजाने में आपराधिक प्रवृत्तियां हावी हो जाती हैं.

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