साल 2016 के सोनपुर मेले में ज्यादा चहलपहल नहीं दिखी. कारोबारी भी यही मानते हैं कि नोटबंदी का असर मेले पर भी हुआ है.

घोड़े के कारोबारी ओमप्रकाश सिंह कहते हैं कि वे पिछले 12 सालों से इस मेले में आ रहे हैं. मेले के पहले दिन ही 30 से 40 घोडे़ बिक जाते थे, लेकिन इस साल एक भी घोड़ा नहीं बिका.

उद्घाटन के दिन ही तकरीबन 2 सौ गाएं बिक जाती थीं, लेकिन इस बार गाय को खरीदने के लिए कोई खरीदार नहीं पहुंचा.

खिलौनों का कारोबार करने वाले उत्तर प्रदेश के बलिया से पहुंचे परशुराम सिंह कहते हैं कि इस साल रोजाना 300-400 रुपए के ही खिलौने बिक पाए, जबकि पिछले साल वे हर दिन 4-5 हजार रुपए के खिलौने बेच लेते थे.

मेले में स्टाल लगाने वाले कारोबारी एक हजार और 5 सौ के पुराने नोट नहीं ले रहे हैं. जो भी खरीदार मेला पहुंच रहे हैं, उन में से 99 फीसदी लोग पुराने नोट ले कर ही आए.

कम खरीदारों के आने के बाद भी ज्यादातर कारोबारी कहते हैं कि धीरेधीरे ही सही, पर मेले की रौनक लौटी है.

हर साल एक महीने तक चलने वाले एशिया के सब से बड़े पशु मेले में देशी और विदेशी नस्लों के मवेशियों की खरीदबिक्री बड़े पैमाने पर की जाती है. गाय, भैंस, बकरी, कुत्ता, हाथी, घोड़े, ऊंट, सूअर समेत कई तरह के पक्षियों को प्रदर्शन के लिए रखा जाता है.

बता दें कि पिछले साल सोनपुर मेले में 25 हजार पशुओं की बिक्री हुई थी. मवेशियों के अलावा हस्तशिल्प की चीजें, फर्नीचर, खिलौने, खेती के औजार व मशीनें, आर्टिफिशियल गहने, खादी के कपड़े, गलीचे, दरी, चादर, बरतन वगैरह के भी रंगबिरंगे स्टाल बनाए जाते हैं. साथ ही, मनोरंजन के लिए कुएं में मोटरसाइकिल चलाना, साइकिल रेस, घोड़ा और भैंसों की दौड़, मुरगों की लड़ाई का भी इंतजाम किया जाता है.

पटना से महज 25 किलोमीटर की दूरी पर सोनपुर में गंगा और गंडक नदी के संगम पर सोनपुर मेला लगता है. हर साल कार्तिक महीने की पूर्णमासी को सोनपुर मेले की शुरुआत होती है और यह एक महीने तक चलता है.

इस साल मेला 32 दिनों तक यानी 10 दिसंबर, 2016 तक चला. इसे ‘हरिहर क्षेत्र मेला’ और ‘छत्तर मेला’ भी कहा जाता है. इस मेले की खासीयत यह है कि यहां सूई से ले कर हाथी तक खरीदा जा सकता है.

सोनपुर मेले की खासीयत और पहचान वहां का थिएटर भी रहा है. थिएटर में चलने वाले सैक्सी डांस को देखने के लिए लोग दूरदूर से खिंचे चले आते हैं.

थिएटर में होने वाले फूहड़ डांस पर रोक लगाने की मांग हर साल की जाती है, पर तमाम विरोधों के बाद भी थिएटर सोनपुर मेले की खूबसूरती में चार चांद लगाता रहा है.

शोभा सम्राट थिएटर, चांदनी थिएटर और गुलाब थिएटर की रंगीन रोशनियों से नहाए और सजेसजाए तंबू के अंदर का माहौल रात के जवान होने के साथ गरम होता जाता है. ‘चुम्मांचुम्मां दे दे’, ‘भतार बिना गरमाइल बिया’, ‘नीचे के नटबोल्ट खोल द’, ‘लहंगा उठा के’ जैसे भोजपुरी गानों पर थिरकती डांसरों को देख कर थिएटर में मौजूद भीड़ खूब मजे लूटती रहती है.

हर थिएटर में 25-30 डांसरों की फौज होती है. शाम ढलते ही थिएटर के बाहर फूहड़ गाने बजने लगते हैं और जनता का जमावड़ा होने लगता है. सब से आगे की सीट पर बैठ कर थिएटर का मजा लेने के लिए एक हजार रुपए ढीले करने पड़ते हैं. उस के बाद की टिकटों के दाम 5 सौ रुपए, 2 सौ रुपए, सौ रुपए तक हैं. इस के बावजूद भी थिएटर दर्शकों से खचाखच भरा रहता है.

रात के 12 बजते ही थिएटर के अंदर की जनता के चिल्लाने की आवाजें बढ़ जाती हैं. डांसर एकएक कर अपने बदन से कपड़े उतारना चालू करती है. उस समय थिएटर अपने शबाब पर होता है. भोजपुरी गीतों पर डांसरों की फूहड़ हरकतों को देख कर हर कोई अपना आपा खो बैठता है.

इस साल मेला परिसर में 20 स्विस कौटेज लगाए गए. एक कौटेज के अंदर 2 कमरे, बाथरूम और गरम पानी का भी इंतजाम किया गया. हर कौटेज को सौ स्क्वायर फुट में बनाया गया.

एक कौटेज का किराया 5 हजार रुपए रहा और इस के अलावा 950 रुपए टैक्स भी देना था. जैसेजैसे मेले के खत्म होने की तारीख नजदीक आती गई, वैसेवैसे किराए को भी घटाया गया.

बिहार की पर्यटन मंत्री अनीता देवी ने बताया कि सोनपुर मेले को अंतर्राष्ट्रीय रूप देने की तैयारियां चल रही हैं. पुष्कर और सूरजकुंड मेले की तर्ज पर इसे भी विकसित किया जाएगा. पहले दिन आए इटली और जापान के बहुत से पर्यटकों ने इस मेले को देख कर कहा था, ‘वंडरफुल’.                           

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