आज के समय में सिंगल पेरैंटिंग समाज के लिए अजूबा मुद्दा नहीं रह गया है. समाज भी सिंगल पेरैंट को सम्मान की नजर से देखता है. सिंगल पेरैंट में ज्यादातर महिलाएं ही होती हैं. यह बात जरूर है कि अब सिंगल पेरैंट को नई चुनौतियों से गुजरना पड़ रहा है. बच्चों के पालनपोषण से ले कर उन के कैरियर, शादी और बाद के जीवन का भी ध्यान रखना पड़ता है.
वैष्णवी को उन की मां ने सिंगल पेरैंट की तरह ही पाला था. 30-40 साल पहले सिंगल पेरैंट के सामने बहुत चुनौतियां थीं. वैष्णवी को सब याद है. अपनी मां के संघर्ष को देखते हुए आज वे उन का बहुत सम्मान करती हैं. वैष्णवी की अपनी 12 साल की बेटी माग्रेट है. उस के पिता लिसले मैकडोनाल्ड अपनी बेटी को बहुत प्यार करते हैं. वैष्णवी को लगता है कि आज के दौर में बच्चों को संभालना ज्यादा मुश्किल काम हो गया है.
वैष्णवी को लोग ‘शक्तिमान’ की गीता विश्वास के रूप में पहचानते हैं. ‘वीराना’, ‘सपने सुहाने लड़कपन के’ और ‘मिले जब हमतुम’ वैष्णवी के चर्चित सीरियल हैं. वैष्णवी ने ‘बंबई का बाबू’, ‘लाडला’ और ‘बाबुल’ जैसी तमाम फिल्में भी कीं. इन दिनों वे जी टीवी के शो ‘टशन ए इश्क’ में लीला तनेजा का किरदार निभा रही हैं. वैष्णवी से घर, परिवार और कैरियर पर लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उस के कुछ खास अंश:
24 साल के करीब आप का फिल्मी कैरियर हो गया है. अब टीवी शो में मां का किरदार निभाना कैसा लग रहा है?
देखिए, उम्र का अपना असर होता है. अब मुझे मां वाले रोल ही मिलेंगे. इन्हें स्वीकार करने में कोई हरज नहीं है. ‘टशन ए इश्क’ में लीला तनेजा का रोल करने से पहले जब मैं ने इस की कहानी सुनी तो मुझे अपना बचपन और अपनी मां के संघर्ष के दिन याद आ गए. मेरी मां जौब करती थीं. जब सिंगल पेरैंट के रूप में मेरे पालनपोषण की जिम्मेदारी उन पर आई तो उन्होंने जौब छोड़ दी. मुझे उस समय की याद आई और मैं ने यह किरदार करने का फैसला कर लिया. मैं अपनी मां से बहुत प्यार करती हूं. वे आज भी मेरे साथ रहती हैं. मुझे लगता है कि नए दौर में सिंगल पेरैंटिंग में जो परेशानियां आ रही हैं उन का समाधान लोगों को समझा कर किया जा सकता है.
जब आप छोटी थीं और आप की मां आप का पालनपोषण कर रही थीं और अब जब आप अपनी बेटी का पालनपोषण कर रही हैं, तो दोनों में क्या अंतर देखती हैं?
मेरी मां ने मुझे सिंगल पेरैंट की तरह पाला था जबकि मेरे साथ मेरे पति भी बेटी की देखभाल करते हैं. मेरे से ज्यादा वे बेटी की केयर करते हैं. ऐसे में मुझे मां जैसे हालात का सामना नहीं करना पड़ रहा. इस के बाद भी मुझे लगता है कि पहले के मुकाबले बच्चों को अब पालना मुश्किल हो गया है. आज बच्चों को बड़ी ही समझदारी से समझाना पड़ता है. वे पहले के बच्चों से अधिक जागरूक हैं. सवाल ज्यादा करते हैं. कई बार मनमानी भी ज्यादा करने की कोशिश करते हैं. अगर पेरैंट्स ने बहुत चालाकी से उन्हें हैंडल नहीं किया तो बच्चे दूर हो जाते हैं. आज के बच्चों के शौक भी बदल गए हैं.
आप का बचपन कैसा था?
मैं पढ़ाई में काफी होशियार थी. मुझे साइंस पसंद थी. मनोविज्ञान मेरा पसंदीदा विषय था. मेरा सपना था कि मैं मनोविज्ञानी बनूं. 10वीं कक्षा के बाद मैं पढ़ाई जारी नहीं रख सकी. बाद में कई बार सोचा कि पढ़ाई पूरी कर लूं पर नहीं कर पाई. मुझे पढ़ने का बचपन में बहुत शौक था. मैं जहां भी किताब देखती थी पढ़ने लगती थी.
बचपन में ‘चंपक’ पत्रिका बहुत पढ़ी. हमारे घर के पास एक दुकान होती थी, जिस में किताबें पढ़ने के लिए किराए पर मिलती थीं. हमें जो जेबखर्च मिलता था उस से हम ‘चंपक’ खरीद कर पढ़ते थे. बाद में ‘गृहशोभा’ भी पढ़ी. गृहशोभा के लेख मुझे बहुत पसंद आते हैं. इस पत्रिका ने हमेशा ही महिलाओं को नई राह दिखाने का काम किया है. सच, किताबों से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता.
आप ने क्रिश्चियन धर्म अपनाया. कोई परेशानी नहीं आई?
मेरा पहले का नाम वैष्णवी महंत था. जब मेरे नाम के साथ मैकडोनाल्ड लगा तो लोगों को लगा कि मैकडोनाल्ड कंपनी मेरी है. यह भ्रम हर जगह दूर करना पड़ता है. क्रिश्चियन धर्म स्वीकार करने के बाद कोई परेशानी नहीं हुई. पतिपत्नी के बीच रिश्ता हमेशा आपसी सहयोग और प्यार पर निर्भर करता है. इस का जाति और धर्म से कोई लेनादेना नहीं होता. अब समाज का बड़ा हिस्सा ऐसी बातों को महत्त्व नहीं देता. अब लोगों की दूसरों के जीवन में ताकझांक करने की आदत कम हो गई है.
पहले और अब के कलाकारों में क्या फर्क देखती हैं?
हम लोग जब फिल्मी दुनिया में आए थे तो किसी तरह का कोई ज्ञान नहीं था. रोल करते समय डायरैक्टर के समझाने पर सीखते गए. अब के युवा फिल्मी लाइन में आने से पहले पूरी तैयारी कर के आते हैं. इसे फिल्मी बोली में गू्रमिंग कहते हैं.
कहानी की सफलता में क्या बातें माने रखती हैं?
हर कहानी की सफलता में 5 तत्त्व ही होते हैं- लव, लव ट्राइऐंगल, जैलसी, ऐक्शन और सस्पैंस. हर कहानी इन्हीं के आसपास घूमती है.