सिक्की घास से भी जिंदगी में मुकाम पाया जा सकता है. सुनने और पढ़ने में यह भले ही अजीब लग सकता है, लेकिन सच है. सिक्की घास से बिहार के गांवदेहात के इलाके की बहुत सी औरतें अपनी कला का आकर्षक नमूना तो पेश कर ही रही हैं, साथ ही वे अपना व अपने परिवार का पेट भी पाल रही हैं. सालों पुरानी गांव की इस परंपरा के दम पर मधुबनी की औरतें दूसरों को भी अपने पैरों पर खड़ा होने का संदेश दे रही हैं.

मुन्ना देवी की पहल

सिक्की घास से बनी कलाकृतियों को गांव से निकल कर शहर में पहुंचाने में मुन्नी देवी का अनोखा रोल है. इस कला की शुरुआत कैसे हुई? सवाल पूछने पर मुन्नी देवी बताती हैं, ‘‘यह तकरीबन 18 साल पहले की बात है. शादी के बाद जब मैं ससुराल आई, तब मैं ने देखा कि वहां सिक्की घास की कई तरह की कलाकृतियां बनाई जा रही हैं.

‘‘मन में थोड़ी उत्सुकता हुई कि घास से कैसे कोई सामान बनाया जा सकता है? मेरे मायके में इस तरह की कोई चीज नहीं होती थी. घर में सास, ननद सभी इस काम को कर रही थीं. उत्सुकता में आ कर मैं ने भी इसे सीखना शुरू किया. धीरेधीरे शुरू हुआ यह काम अब रफ्तार पकड़ चुका है.’’

इस कला में अपना एक अलग मुकाम बना चुकी मुन्नी देवी बताती हैं कि सिक्की घास से कई तरह के सामान बनते हैं. जैसे चंगेरी, रोटी का डब्बा, कछुआ, चाबी रिंग, कलम सैट, चेन, चिडि़या, गले का हार, चूड़ी, पायल, कान की बाली वगैरह.

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