भोपाल महिला थाने की इंचार्ज इंस्पैक्टर संध्या मिश्रा इन दिनों हैरान भी हैं और परेशान भी क्योंकि दांपत्य विवादों के ऐसे मामले आना आम बात हो चली है जिन में अधिकांश पति सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और शिकायतकर्ता यानी पीडि़ताओं के बाल सफेद हो चुके हैं. मांबाप या फिर दादादादी, नानानानी की उम्र के पतिपत्नियों के ये विवाद बड़े दिलचस्प हैं जिन के बारे में पुलिस वालों को समझ नहीं आ रहा कि वे आखिर करें भी तो क्या करें.

अरेरा कालोनी, भोपाल का पौश इलाका है जहां संपन्न और प्रतिष्ठित लोग रहते हैं. यहां की एक 62 वर्षीया वृद्ध महिला ने थाने आ कर यह शिकायत की थी कि उन के पति को रिटायर हुए 1 साल होने को है पर उन्होंने अभी तक घर में एक रुपया भी पैंशन का नहीं दिया है. इन दोनों के एक बेटा और एक बेटी है जिन की शादियां हो चुकी हैं और वे अलग रहते हैं.

इस बुजुर्ग महिला ने अपनी शिकायत में यह भी रोना रोया था कि उन्होंने अपने स्तर पर खोजबीन की तो पता चला कि पति के किसी दूसरी महिला से संबंध हो गए हैं और वे उस पर ही सारा पैसा उड़ा रहे हैं. इस बाबत पूछने पर वे दोटूक व रूखा सा जवाब यह देते हैं, ‘मेरा पैसा है जैसे चाहूं खर्च करूं मेरी मरजी.’

एक और मामले में भोपाल के ही कोलार निवासी 62 वर्षीया महिला ने शिकायत की है कि उन के पति को रिटायर हुए 3 साल हो गए हैं. पिछले एक साल से उन्होंने घर में पैसा देना बंद कर दिया है जबकि रिटायरमैंट के पहले वे पूरी पगार उन के हाथ में देते थे. पुलिस में जाने से पहले इस महिला ने अपने जेठ और अलग रह रहे बेटे से इस आशय की शिकायत की थी पर उन्होंने कुछ करने में असमर्थता जता दी थी. इस महिला को शक है कि पति किसी और के चक्कर में पड़ पैंशन का पैसा उड़ा रहे हैं.

ऐसी शिकायतों पर काउंसलिंग भी की जाती है. एक मामले में काउंसलर रीता तुली ने बताया कि पत्नी की इस शिकायत पर कि पति दूसरी महिलाओं पर पैसा खर्च कर रहे हैं, पूछने पर पति भड़क उठा और पूरी अकड़ से बोला कि उस ने पूरी जिंदगी अपनी जिम्मेदारियां ईमानदारी से निभाई हैं और घर चलाने लायक पैसे पत्नी को दे रहा है. ऐसे में उसे शिकायत क्यों है. उस का पैसा है, वह जैसे चाहे खर्च करे.

गौरतलब बात यह है कि ऐसी शिकायतें सेवानिवृत्त कर्मचारियों की ही मिल रही हैं, व्यापारी या किसी दूसरे वर्ग की नहीं. एक अन्य मामले के पति की बातों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि यह एक मध्यवर्गीय पुरुष है जिस के व्यवहार में रोमांस कम, उस की भड़ास ज्यादा है.

रोमांस कम, भड़ास ज्यादा

परस्त्री गमन को भड़ास कहना इसलिए बेहतर है क्योंकि वाकई एक मध्यवर्गीय पुरुष नौकरी के दौरान घर और बाहर की जिम्मेदारियां उठातेउठाते एक अलग तरह की कुंठा व तनाव का शिकार हो जाता है. ‘मैं ने सब के लिए किया, अब रिटायर होने के बाद खुद अपनी जिंदगी जी लूं तो हर्ज क्या है’ यह सोच तेजी से वृद्धों में पनप रही है. एक पत्नी ही है जो इस आजादखयाली की राह में आडे़ आती है जिसे वे हर स्तर पर नजरअंदाज करना शुरू कर देते हैं.

60 के पार की पीढ़ी की अपनी परेशानियां हैं जो संस्कारों और वर्जनाओं में पलीबढ़ी है. लेकिन एकाएक ही 2 दशकों में परिवार व समाज में आश्चर्यजनक बदलाव आए हैं, मसलन अधिकांश लोगों के बच्चे उन के साथ नहीं रहते, दूसरे शहर में नौकरी करते हैं. पुराने दोस्तयारों के कहीं अतेपते नहीं हैं, टीवी, सिनेमा, मोबाइल और कंप्यूटर में इन का मन नहीं लगता.

सब से बड़ी दिक्कत वह अर्धांगिनी है जो फुरसत में पति को अकेला और असहाय पा कर उस के कान खाती रहती है कि मैं जिंदगीभर तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिए खटती रही, एवज में मुझे क्या मिला. तुम ने मुझे परेशान किया पर मैं चुपचाप ज्यादती झेलती रही और अब जब थोड़ी फुरसत मिली तो भी तुम मुझ पर ध्यान नहीं देते, अपने मन की चलाते रहते हो.

ऐसे में झल्लाया पति भी यह सोचने को मजबूर हो जाता है कि उसे क्या मिला और अब आराम के दिनों में पत्नी क्यों रिश्तेदारी और परिवार के लिए किए गए का लेखाजोखा खोल कर बैठ गई है. जिन बच्चों को पैदा कर बड़ी उम्मीदों से पालापोसा, वे बेरहमी दिखाते अलग हो गए हैं. हालत यह है कि नातीपोतों को खिलाने तक को तरसना पड़ता है यानी पूरी दुनिया ही जब बेरहम हो चली है तो मैं ही क्यों घुटघुट कर जिऊं, अपने मन की क्यों न करूं.

मन की करूं यानी बाहर कहीं सुकून ढूंढ़ू क्योंकि घर में घुटन और कलह है और मन में उदासी और अवसाद है. दुनिया में ऐसा कोई मिल जाए जिस से दिल की बात की जा सके और इस बाबत उस पर कुछ पैसा खर्च भी करना पड़े तो सौदा घाटे का नहीं. आखिरकार, पैसा सिर पर रख कर तो ले जा नहीं सकते. यह भड़ास 60 पार पुरुषों को बाहर भागने को उकसाती है और बाहर कोई न कोई चाहनेसुनने वाली भी मिल जाती है. ऐसे में इन की जिंदगी गुलजार हो उठती है. लगता है किशोरावस्था और यौवन के बीच के दिन वापस आ गए हैं. दिल फिर से किसी के लिए यह सोचते हुए धड़कने लगा है कि जब दुनिया को हमारी परवा नहीं, तो हम उस का लिहाज क्यों करें.

आसानी से मिलती है पार्टनर

60 पार के वृद्ध कोई ऐयाशी नहीं करते. उन की कथित प्रेमिकाएं कोई नवयौवनाएं नहीं होतीं, न ही बाजारू तितलियां होती हैं बल्कि 40 वसंत देख चुकी, तनहा रह रही महिलाएं होती हैं, जिन से इन की पटरी अच्छी बैठती है. कभीकभी तो पटरी इतनी अच्छी बैठती है कि उन्हें देख लगता है कि वे कहीं आपस में शादी ही न कर बैठें.

हाल ही में एक हाईस्कूल से रिटायर हुए प्रिंसिपल गोपाल सक्सेना कहते हैं कि रिटायर लोगों की व्यक्तिगत व पारिवारिक परेशानियां कोई नहीं समझता. उलटे, कहीं दोस्ती या प्यार हो जाने पर उन पर तोहमत लगाने वाले और हंसने वाले थोक में मिल जाते हैं. और अब वे भी कम हो चले तो पत्नियां थाने में जा कर शिकायतें कर रही हैं और वह भी सिर्फ पैसों के लिए. पति के लिए तो इन के दिल में जगह ही नहीं हैं, अगर होती तो यह नौबत ही क्यों आती.

गोपाल बताते हैं कि उन के एक सहकर्मी इसी हालत से गुजरते हुए एक शिक्षिका के यहां आनेजाने लगे जिन्होंने शादी नहीं की थी और अकेले रहती थीं. दोनों नए प्रेमियों जैसे घंटों बतियाते रहते, साथ खातेपीते, घूमतेफिरते और गजलें व कविताएं सुननेसुनाने का अपना शौक पूरा करते थे. इस सहकर्मी ने कोई गुनाह नहीं किया था बल्कि एक सुकून भर ढूंढ़ा था जो उसे अपनी पत्नी के साथ नहीं मिल पा रहा था.

इस मामले में भी बात बढ़ी और पत्नी ने बच्चों व देवर से शिकायत की तो उन्होंने हाथ खड़े कर दिए कि हम कुछ नहीं कर सकते. आप दोनों जानो, बड़े हो, समझदार हो, आप ने ज्यादा दुनिया देखी है और हमारे कहने से तो कुछ होने से रहा. अब मुमकिन है यह पत्नी भी यों ही फरियाद करती हुई कभी महिला थाने जा पहुंचे कि मैं 64 साल की हूं और पति से परेशान हूं जो पैसा किसी दूसरी औरत पर उड़ा रहे हैं. कोई कानून हो तो उस का इस्तेमाल करते हुए उन्हें रोकिए.

उधर, वह अधेड़ शिक्षिका भी किसी की चिंता नहीं करती जिस ने अब तक की जिंदगी अकेले गुजार दी. अपने परिपक्व प्रेमी का इंतजार करते हुए वह गजलों की सीडी लगाती है और फिर दोनों दुनियाजहान की बातों में खो जाते हैं.

दरअसल, बढ़ते शहरीकरण ने कई महिलाओं के हिस्से में भी तनहाई लिख दी है. उन महिलाओं ने, वजह कुछ भी हो, शादी नहीं की या फिर तलाकशुदा या विधवा हैं. उन्हें भी एक ऐसे पुरुष की जरूरत पड़ने लगती है जिस से कोई खतरा न हो और जिस की जेब में खर्च करने को पैसे हों. इस रिश्ते में लेनदेन नहीं होता, यह कहना ज्यादती होगी.

नए भोपाल के एक महिला मार्केट में सिलाई की दुकान चलाने वाली एक महिला के पास एक रिटायर्ड इंजीनियर का आनाजाना आम है. लोग उन्हें आतेजाते देख फुसफुसाते हैं पर हाथ में समोसे का पैकेट लिए ये रिटायर्ड इंजीनियर साहब किसी की तरफ आंख उठा कर नहीं देखते. उन्होंने सिलाईकढ़ाई की दुकान वाली को व्यवसाय बढ़ाने के लिए खासी रकम दे रखी है. बदले में,  उन्हें जो मिलता है, वह सुकून है जिसे वे रिटायरमैंट के बाद से तलाश रहे थे.

जाहिर है बदलती परिवार व्यवस्था का असर रिटायर्ड लोगों पर अलग तरह से पड़ रहा है जो पतिपत्नी के रिश्ते को ढोते रहे और जिम्मेदारियां पूरी होने के बाद अब अपनी मरजी से जी रहे हैं.

गलती उन पत्नियों की भी कम नहीं है जिन्हें यह अंदाजा या एहसास नहीं कि सेवानिवृत्ति के बाद पति को जो भावनात्मक सहारा चाहिए था वह उसे वे नहीं दे पाईं. उलटे, अतीत का बहीखाता खोल अपने किए का हिसाबकिताब करने बैठ गईं और जिंदगीभर मुट्ठी में रहा पति जब हाथ से फिसल गया तो थानों के चक्कर लगा रही हैं. जहां से उन्हें सिवा आश्वासनों और समझाइश के कुछ और यानी न्याय नहीं मिलना क्योंकि पति कोई अपराध, ज्यादती या हिंसा नहीं कर रहा. जाहिर है पति परिवार के दबाव से मुक्त है, इसलिए उस पर कानूनी और सामाजिक दबाव बनाने की कोशिश में बुजुर्ग महिलाएं गच्चा खा रही हैं.

अगर यह समस्या है, तो इस का और बढ़ना तय दिख रहा है क्योंकि पत्नी यह मान कर चलती है कि रिटायरमैंट के बाद पति के कोई माने नहीं और अब पैसा ही अहम है. भोपाल में सामने आए सभी मामलों में किसी के पास पैसों की कमी नहीं थी, सब के बच्चे खासा कमा रहे हैं और मां अगर मांगे तो इतने क्रूर भी नहीं हैं कि 5-10 हजार रुपए महीने उसे न दें.

पर असल फसाद दांपत्य का खाई में तबदील होना और ऊबे पुरुषों का खुद से यह कहना है कि कोल्हू के बैल की तरह काम बहुत कर लिया, बच्चों की जिंदगी बना दी, किसी को कोई कमी नहीं होने दी और शादी के 35-40 साल बाद भी पत्नी उन्हें समझने में नाकाम रही है तो वे खुद से ही कह रहे हैं कि इस तरह के वृद्धों को समाज और भविष्य की चिंता नहीं. उन के पास वक्त कम है. अब तक दुनिया देख वे समझ चुके हैं कि लोगों का काम है कहना, जो वे बदस्तूर करते रहेंगे. दरअसल, इसे वे पत्नी के साथ ज्यादती भी नहीं मानते. उलटे, यह मानते हैं कि पत्नी उन के साथ ज्यादती कर रही है, इसलिए क्यों उसे पैसा दिया जाए.     

परेशानी की इंतहा

जरूरी नहीं कि 60 पार के सभी पति दूसरी महिलाओं पर पैसा उड़ाएं या जिंदगीभर की भड़ास रोमांस कर निकालें, कई मामलों में पत्नियों से परेशान पति ऐसी अजीबोगरीब हरकतें करने को मजबूर हो जाते हैं कि वाकेआ सुन हंसी आती है और तरस भी आता है, खासतौर से उन के बच्चों पर जो उम्र के समीकरणों की चक्की में बेवजह पिसते हैं. 11 सितंबर को भोपाल के कोलार इलाके के 63 वर्षीय रिटायर्ड सरकारी अधिकारी कामता प्रसाद गुप्ता अपनी पत्नी आशा को ले कर जबलपुर जाने को कह कर निकले थे पर जा पहुंचे हमीदिया रोड स्थित एक होटल गोपी में. वहां उन्होंने कमरे में पत्नी को बंद कर उस से तलाक मांगा. आशा के मना करने पर उन्होंने उसे कमरे में बंधक बना लिया. जैसेतैसे इस मामले की जानकारी होटल कर्मचारियों को लगी तो उन्होंने उन के बेटे आलोक को खबर की. इस दौरान होटल कर्मचारियों ने किसी अनहोनी के डर से नजदीकी हनुमानगंज थाने में रिपोर्ट भी लिखा दी. जाहिर है यह धुआं बगैर आग का नहीं था. कामता प्रसाद अपनी पत्नी से परेशान थे. वे उस के साथ लंबा अरसा गुजारने के बाद छुटकारा चाहते थे. इस बाबत उन्होंने अव्यावहारिक तरीका चुना और अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो पाए.

ऐसे मामलों से यह उजागर होता है कि 60 पार के ज्यादातर दंपतियों के बीच सबकुछ ठीकठाक नहीं है. पतिपत्नी के दिलों में एकदूसरे के प्रति भड़ास भरी है. पति चूंकि इस दौर में भी आर्थिक रूप से सक्षम होते हुए भारी पड़ता है इसलिए वह, वह सबकुछ करता है जिस से पत्नी परेशान हो. मुमकिन है यह पूर्व में पत्नी द्वारा की गई ज्यादतियों का बदला हो. पर समाज के लिहाज से बात चिंता की है. सामाजिक बंधनों और पारिवारिक जिम्मेदारियों तले दबे पतिपत्नी एकदूसरे को अरसे तक ढोते रहते हैं और बुढ़ापे में आक्रामक हो कर अलगाव की हद तक आ जाते हैं, यह सब के लिए चिंता का विषय है.

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